20 मई 2008

टूटते दरकते संयुक्त परिवार

मित्रो ये एक सच घटना है। आज देर रात तो नहीं हुई थी , एक पैंतालीस वर्षीय बरस का व्यक्ति अपने सामूहिक परिवार में लौटा अपनी पत्नी के साथ लौटा तफरीह पर गए थे । दौनों बाज़ार में हल्का फुल्का चाट लेकर घर में आए बहन के बच्चों के लिए आइसक्रीम लेकर , घर के बच्चे भी अपने माँ-बाप की प्रतीक्षा में थे । घर पहुँचते ही बूड़े पिता की शह पर बडे भाई ने पत्नी के सामने उसे देर से का लाँछन लगाते हुए न केवल अपमानित किया बल्कि मारा भी। घर के मुखिया बूड़े व्यक्ति ने आग में घी डालने का काम किया । हिंसा होती रही । रिश्ते तार-तार होते रहे । जीत गया अंहकार,सत्ता , धन, का घमंड । हार गया अकिंचन स्नेह.....
संयुक्त परिवारों में होती इस प्रकार की हिंसाओं का अंत एकल परिवार की आधार शिला बनता है।इसी तरह टूटते हैं संयुक्त परिवार जो बचेखुचे हैं।
संयुक्त परिवारों की आधार शिला सम-भावों पे केन्द्रित है।
संयुक्त परिवार सिर्फ और सिर्फ इसी वजह से टूटतें हैं कि आर्थिक आधारों पर घर का बुजुर्ग बर्ताव करता है। समता के भावों का अंत होता है तो टूटन,दरकन स्वाभाविक है।
आप इस समस्या को सुलझाना चाहतें हैं अथवा संयुक्त परिवार के ढकोसलों से समाज को मुक्त कराना चाहेंगे . साथ ही मानवीय हिंसा पर आपकी क्या राय है......?

2 टिप्‍पणियां:

  1. जब तक संयुक्त परिवार का मुखिया जिम्मेदार नहीं होता संयुक्त परिवार बना रह ही नहीं सकता. aaj nahin to kal us parivar ne tutna hi hai.

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  2. हर घटना के दो पक्ष होते हैं. जरा विस्तार से बतायें. कुछ साफ नहीं हो पाया कि हुआ क्या. एक घटना मात्र से संयुक्त परिवार की सुदृढ़ता एवं व्यवाहरिकता पर कुछ भी कहना उचित न होगा.

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!