वर का पिता गाँव के स्नेहियों,परिजनों इष्ट मित्रों के साथ बारात लेकर आता है साथ ही वर पक्ष ग्यारह या तेरह वस्त्र जिसमें पुरूष वस्त्र [जो वधु के छोटे भाई के लिए होतें हैं],स्वर्णाभूषण,सूखे मेवे,ताजे-फल,वधु के लिए सम्पूर्ण श्रृंगार-प्रसाधन, लेकर आता है।
"इतना ही नहीं वर पक्ष आते ही वधु पक्ष के सम्मान का ध्यान भी रखता इस हेतु लाया जाता है गुलाब जल,इत्र,गुलाल,पान-सुपारी,वर का पिता अपने पुत्र,दामाद,बंधू-बांधवों के साथ वधु के परिजनों को सम्मानित करता है "
कुमकुम कन्या जौल्या [सफ़ेद रेशमी साड़ी] में लिपटी दुल्हन के हाथ गंगा जल के समान जल से भरे तांबे के पात्र में जिसे "गंगाल" कहा जाता है वर के हाथ में सौंप देता है वधु का पिता । तब पीला या हलके लाल रंग का अन्तर पट वैदिक मंत्रोच्चार के साथ खोल देतीं है सुवाएं यानी सौभाग्य वतियाँ ......ताम्रपात्र की गंगा की प्रतीकात्मक साक्ष्य में संपन्न होता है "पाणिग्रहण".....!
यानी कुल मिला कर विवाह परम्परा कामोबेश एक ही तरह की होती है। जैसा अन्य भारतीय हिंदू परिवारों में होता है तो "इन इन-ब्राहमणोंविवाह पद्धति" में नया क्या है...?
पाठको , इन ब्राहमणों में ठहराव कर वर बेचना आज भी अपराध है. जब हर जाति में दहेज़ का दावानल कई वधुएँ जला चुका हो इस समाज में इस बुराई को कोई स्थान नहीं है. नारी को इस समाज में दोयम दर्जा नहीं है. यदि दहेज़ है तो उसका स्त्रीधन स्वरुप आज भी बरकरार है.सौभाग्य से मुझे इस जाति में जन्म लेने का अवसर मिला मैं ईश्वर का कृतज्ञ हूँ . नार्मदेय-ब्राहमण-समाज नर्मदा के किनारे बसे ब्राहमण हैं जिनका धर्म सदाचार ही है वरना सभी जानते है मया महा ठगनी हम जानी "
"इतना ही नहीं वर पक्ष आते ही वधु पक्ष के सम्मान का ध्यान भी रखता इस हेतु लाया जाता है गुलाब जल,इत्र,गुलाल,पान-सुपारी,वर का पिता अपने पुत्र,दामाद,बंधू-बांधवों के साथ वधु के परिजनों को सम्मानित करता है "
कुमकुम कन्या जौल्या [सफ़ेद रेशमी साड़ी] में लिपटी दुल्हन के हाथ गंगा जल के समान जल से भरे तांबे के पात्र में जिसे "गंगाल" कहा जाता है वर के हाथ में सौंप देता है वधु का पिता । तब पीला या हलके लाल रंग का अन्तर पट वैदिक मंत्रोच्चार के साथ खोल देतीं है सुवाएं यानी सौभाग्य वतियाँ ......ताम्रपात्र की गंगा की प्रतीकात्मक साक्ष्य में संपन्न होता है "पाणिग्रहण".....!
यानी कुल मिला कर विवाह परम्परा कामोबेश एक ही तरह की होती है। जैसा अन्य भारतीय हिंदू परिवारों में होता है तो "इन इन-ब्राहमणोंविवाह पद्धति" में नया क्या है...?
पाठको , इन ब्राहमणों में ठहराव कर वर बेचना आज भी अपराध है. जब हर जाति में दहेज़ का दावानल कई वधुएँ जला चुका हो इस समाज में इस बुराई को कोई स्थान नहीं है. नारी को इस समाज में दोयम दर्जा नहीं है. यदि दहेज़ है तो उसका स्त्रीधन स्वरुप आज भी बरकरार है.सौभाग्य से मुझे इस जाति में जन्म लेने का अवसर मिला मैं ईश्वर का कृतज्ञ हूँ . नार्मदेय-ब्राहमण-समाज नर्मदा के किनारे बसे ब्राहमण हैं जिनका धर्म सदाचार ही है वरना सभी जानते है मया महा ठगनी हम जानी "
पान तलाई के किसान श्री सुरेश जोषी जी कहतें है:-मुझे लगता है नार्मदेय ब्राहमण समाज जैसी विवाह परम्परा सर्वत्र हो तो सारा भारत स्वर्ग बन जाएगा ।
बिल्लोरे जी, इस अनूठी जानकारी के लिए धन्यवाद के पात्र हैं.
जवाब देंहटाएंअच्छा बना है हलवा। आभार
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए आभारी हूँ
जवाब देंहटाएंकिंतु टिप्पणी में हलवे का स्वाद..?
ब्याज स्तुति के आसार दिखे क्या आप को भी
भरोसा नहीं है....!
Smart Indian एवं शोभा दी का आभार
एक नयी जानकारी के लिए आभार।ऐसा हो जाए तो अच्छा ही है।
जवाब देंहटाएंएक नयी जानकारी के लिए आभार।ऐसा हो जाए तो अच्छा ही है।
जवाब देंहटाएंthanks bali jee kintu kuch bharosaa hee naheen karate yadi yaqeen n bhee karen to bhee hamen koi etaraz naheen
जवाब देंहटाएंहम एक दूसरे से आडम्बरयुक्त आचरण तो सीख लेते हैं। फिल्मों में मेंहदी, संगीत, नाचने आदि की रस्में देख देखकर सब समाज यह सब करने लगे हैं। यदि अच्छी बातें भी सीखते तो कितना अच्छा होता। आपका लेख अच्छा लगा। ऐसे ही हर समाज की अच्छी बातें जानने सीखने से ही कुछ अच्छा हो पाएगा।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ईश्वर का,
कि हमने उनका अनुकरण न कर पाने के
दस बहाने अविष्कृत कर लिये हैं, पर बेचारे
नार्मदेय हमारा अनुसरण करने में अब तक
अपने को फ़िस्सड्डी साबित करते आ रहे हैं ।
धन्यवाद ईश्वर का..