तुम
जो आईने को अल्ल-सुबह मुँह चिढाती
फिर तोते को पढाती ....!
तुम
जो अलसाई आँखें धोकर
सूरज को अरग देतीं....!
मुझे वही तुम
नज़र आतीं रहीं दिनभर
घर लौटा जो ...
तुमको न पाकर लगा
हाँ ....!
तुम जो मेरी स्वप्न प्रिया हो
शायद मिलोगी मुझे आज
रात के सपने में ...!
उसी तरह जैसा मेरे मन ने
देखा था
"मुँह अंधेरे आए सपने में "
तुम
जो आईने को अल्ल-सुबह मुँह चिढाती
फिर तोते को पढाती ....!
तुम
जो अलसाई आँखें धोकर
सूरज को अरग देतीं....!
*गिरीश बिल्लोरे "मुकुल
जो आईने को अल्ल-सुबह मुँह चिढाती
फिर तोते को पढाती ....!
तुम
जो अलसाई आँखें धोकर
सूरज को अरग देतीं....!
मुझे वही तुम
नज़र आतीं रहीं दिनभर
घर लौटा जो ...
तुमको न पाकर लगा
हाँ ....!
तुम जो मेरी स्वप्न प्रिया हो
शायद मिलोगी मुझे आज
रात के सपने में ...!
उसी तरह जैसा मेरे मन ने
देखा था
"मुँह अंधेरे आए सपने में "
तुम
जो आईने को अल्ल-सुबह मुँह चिढाती
फिर तोते को पढाती ....!
तुम
जो अलसाई आँखें धोकर
सूरज को अरग देतीं....!
*गिरीश बिल्लोरे "मुकुल
बहुत उम्दा.
जवाब देंहटाएंफोटो तो मुझे ट्विंकल (सारेगामपा) की लग रही है.
ABHAR
जवाब देंहटाएंAB THEEK HAI BHAI SAHAB
bhut badhiya. kya baat hai. jari rhe.
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