Ad

29 जुल॰ 2008

तुम जो आईने को ...!!

तुम
जो आईने को अल्ल-सुबह मुँह चिढाती
फिर तोते को पढाती ....!
तुम
जो अलसाई आँखें धोकर
सूरज को अरग देतीं....!
मुझे वही तुम
नज़र आतीं रहीं दिनभर
घर लौटा जो ...
तुमको न पाकर लगा
हाँ ....!
तुम जो मेरी स्वप्न प्रिया हो
शायद मिलोगी मुझे आज
रात के सपने में ...!
उसी तरह जैसा मेरे मन ने
देखा था
"मुँह अंधेरे आए सपने में "
तुम
जो आईने को अल्ल-सुबह मुँह चिढाती
फिर तोते को पढाती ....!
तुम
जो अलसाई आँखें धोकर
सूरज को अरग देतीं....!
*गिरीश बिल्लोरे "मुकुल

3 टिप्‍पणियां:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

Free Page Rank Tool

यह ब्लॉग खोजें