10 दिस॰ 2008

गुड्डू के बांके भैया

भैया
कहो दादा
जीत गए
हओ जीत गए
अपने गुड्डू के लानें
"सब हो जाएगा दादू अब निसफिकर रैना "
"काय, गुड्डू का बड़ा भाई भी मेई आऊं और मां भी बाप भी तुम चिंता नै करना "
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भैया , जा पंच बरसी सुई जीत लई....?
हओ,दादा
अपने गुड्डू को
अरे दादा, तुम काय चिंता कर रए हो, जा बार मैं मंत्री बन गओ तो गुड्डू
समझो.....?
"बूडा गोपाल हतप्रभ किंतु आशा भरी निगाहों से बांके लाल को देख रहा था
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गुड्डू चुनावी झंडे बैनर ढोता, खम्बों पे लगाता , बांके भैया का परम सेवक पूरा दिन रात एक करता तीसरी बार भी यही सब कुछ करने जा रहा था कि सियासी जंग में घायल हो गया टांगें काटनी पड़ी . एक अपाहिज जिंदगी जो हर पल बांके की ओर आशा भरी नज़र से अपलक शून्य में तांक रहा था . बूडे बाप आंखों में अब उसे अपाहिज देखने की भी शक्ति न थी . फ़िर भी घसिटता हुआ बूदी बाखर की ओर चल पड़ा उसे पता जो चला था कि बांके भैया आए हैं .
लंबे इंतज़ार के बाद भईया जी के दर्शन पाकर आशा भरी निगाहों से उसे निहारता कि भैया जी ने कहा "दाऊ गुड्डू की मुझे चिंता अपन अपराधियों को सजा दिलवाएंगे जेल भेज देंगे अब तो हम मंत्री हो गए न "
सफ़ेद कार में सट से दाखिल भईया जी रवाना हुए . धूल का गुबार उडाता काफिला निकल पडा . दाऊ को अब कुछ नहीं दिख रहा था , दूर तलक

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सटीक व मार्मिक प्रसंग प्रस्तुत किया।यही कुछ दीख रहा है आज की स्वार्थी दुनिया में।बहुत बढिया पोस्ट लिखी है।

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  2. भैया जी ने कहा "दाऊ गुड्डू की मुझे चिंता अपन अपराधियों को सजा दिलवाएंगे जेल भेज देंगे अब तो हम मंत्री हो गए न "
    "" सच कहा, बेहद मार्मिक प्रस्तुती , पर क्या गुड्डू को न्याय मिलेगा ??"

    Regards

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  3. परम जीत जी सीमा जी
    सादर अभिवादन के साथ आभार
    वास्तव में हर स्थान पर ऐसे
    हादसे सहजता से देखे जा सकते हैं

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!