8 दिस॰ 2009

ब्रिगेडियर अंकुर बिल्लोरे की पोस्ट



_____________________________________________________________________________
___________________________________________________________________________
अजय कुमार झा साहब एवं बी एस पाबलाजी का हार्दिक स्वागत
मेरा नमन स्वीकारिये सच कहूं मुझे ज़्यादा हिंदी पोस्ट लिखना नहीं आता किन्तु कोशिश है की जो लिखूं आपको और सबको पसंद आये . आज जबलपुर-ब्रिगेड पर मुझे विजय अंकल की पोस्ट पड़ने से लगा की सभी एग्रेसिव मीडिया के विरोधी हैं. सही भी है मीडिया सबको बन्दर समझे यह अनुचित है. मीडिया को आदर्श स्वरुप में आना ही होगा वरना मेरे बाद की पीड़ियाँ इस का कोई और विकल्प तलाश ही लेंगी. समाज के कल्याण के लिए सभी को तैयार रहना है. सभी को स्वयं में बदलाव लाने है चाहे ब्यूरोक्रेसी हो मीडिया हो अथवा सरकार और जनता . किसी भी प्रकार से दो और दो का जोड़ पांच बनाने की कोशिशें तरक्की के लिए हर्डल साबित होंगी. हम युवा देश का सच में विकास चाहतें हैं तभी तो हमने अपने रास्ते खोज ही लिए किन्तु आज भी देश के अधिकाँश लोग जिस उबाऊ व्यवस्था को सीने से चिपकाए हैं और विकास का नारा बुलंद करतें हैं तो लगता है की कोई खिलौने बेचने वाला हमें झुन झुना बजा के रिझा रहा है.धर्म के नाम पर जाती वर्ग आय के नाम पर जो देश का बंटवारा हुआ है उससे हम युवाओं को सबसे बड़ा आघात मिला है. जब भी कभी हम सोचतें है की देश किधर जा रहा है तो लगाता है देश उस दिशा में जा रहा है जो दिशा किसी भी शहीद ने न सोची थी और न उस और सोचने के सूत्र ही दिए थे. मीडिया चिंतन से दूर है, व्यवस्था दूषित राजनीति से प्रभावित है,कार्य पालिका भयभीत है तो इस देश की दशा और दिशा क्या होगी आप ही अंदाज़ लगाइए,आपने सोचा यदि समूचा विश्व हम पर हावी हो भी जाए तो हम परास्त नहीं हो सकते यदि हम में "पाजिटिव=उर्जा" है तो.....!
भारत के सम्पूर्ण विकास के लिए हमें लक्ष्यों को साधना है वह भी धैर्य के साथ बिना किसी पूर्वाग्रह के
आपका शुभाकांक्षी

4 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा लिखा भाई
    यकीन है
    की सदा उम्दा ही लिखोगे

    जवाब देंहटाएं
  2. अंकुर भाई आपने बहुत अच्‍छी बात इतने कम शब्‍दो में कह दिया है, लिखना इसी को कहते है।

    जवाब देंहटाएं
  3. स्वागत है अंकुर का...जय हो...नियमित लिखें.

    जवाब देंहटाएं

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!