23 मई 2010

ज़टिल और कुंठित पोस्ट से ब्लाग अरुचिकर हो जाते हैं

                                                                ब्लाग को पढ़ने लायक बनाना एक अहम सवाल है ज़रूरी है कि ब्लाग-पोस्ट लिखने के पहले विषय का चुनाव सही, समयानुकूल, सार्थक हो ..... ब्लाग लेखकों के अलावा  कम लोग ही पोस्ट पढ़ने को आतें हैं. आते ही अगर वे किसी विषय में प्रवेश करतें हैं तो उनको उसके [पोस्ट के ] सूत्र जुटाने की ज़हमत उठानी होती है. यानी मानसिक-तनाव का एक और कारण जब उनको ब्लाग पठन में मिले तो शायद ही वे ब्लाग्स के स्थाई पाठक हो सकते हैं. हिन्दी ब्लागिंग का असल रूप यही है . प्यास नहीं बुझा पा रहे हैं ब्लाग पाठकों की तभी तो पाठक जुटा नही पाते ये ब्लागस. यानी वही पाठकों का टोटा ....! आज के हिन्दी ब्लागर्स केवल लेखन के इस साधन का उपयोग आत्मप्रदर्शन के लिये सहज सुलभ साधन की तरह कर रहे हैं. मैं पुन: उसी सवाल के ज़वाब की तलाश में हूं जो कन्टैंट की ओर इशारा करता है. हर ब्लागर को ब्लागिंग में समय ज़ाया करने के पहले सोचना है कि उसके अपने विचारों  से समाज को क्या क्या मिलेगा. हाल ही में हमारे बीच एक युवा पत्रकार का जीवन बचाने का आह्वान एक पोस्ट में हुआ. तहकीकात हुई बात सही थी सो सम्वेदनाएं पहुंच गईं सहयोग के आकार में  अक्षय कात्यानी तक . अब अक्षय के जीवन की प्रत्याशा साठ प्रतिशत से अधिक है. यानी विषय जो ज़रूरी हैं उन तक पहुंचना उसे सामने लाना बहुत ज़रूरी है. . अनावश्यक जटिल और कुंठित विषय फ़ौरी तौर पर ज़रूर आपको सुखी कर सकतें हैं किन्तु बाहरी पाठक जो वाकई पाठक होते हैं जुटाने में असफ़ल ही रहतें है.
हम  क्या लिखना पसन्द करतें हैं.....?
हिन्दी ब्लागर्स इस पक्ष को देख पाते हैं मुझे कदाचित इस बात का ज्ञान नहीं किन्तु यह अवश्य जानता हूं कि बहुधा ब्लागर्स सनसनीखेज़,उन्मादी,विषयों को प्राथमिकता देतें हैं. किन्तु जब सर्च में{हिन्दी में नेट पर उपलब्ध }किसी विषय विशेष के मैटर की तलाश के लिये प्रयास करना चाहें तो अंग्रेज़ी के सापेक्ष्य बेहद अकिंचन स्थिति है. इसे आप सहज ही आज़मा सकतें हैं.
हमें  क्या लिखना  हैं.....? 
हमें क्या लिखना है अक्सर यही भूल हो जाती है.......हमसे हमारा विषय चयन अक्सर अजीब होता है. सामाजिक मुद्दों की श्रेणी में रखे जाने वाले ब्लाग बहुधा उस श्रेणी से इतर नज़र आते हैं. तो कहीं मौलिक लेखन की धज्जियां उड़तीं नज़र आतीं हैं.
क्रमश: जारी

14 टिप्‍पणियां:

  1. यह तो एकदम सही बात है कि अगर कोई नया पाठक ब्लॉग पर आए और उसे ब्लॉगजगत पे लफड़े झगड़े से संबंधित पोस्ट पढ़ने मिले तो फिर लौट कर क्यों आएगा वह।
    आपके विचारों से सहमत हूं अगली किश्त की प्रतीक्षा।

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  2. आपके विचारों से सहमत हूं अगली किश्त की प्रतीक्षा।

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  3. आपका सुझाव सीमित रूप में लागू है। अगली कड़ी में शायद कुछ और पते की बात मिले, मगर इस बारे में तो यही कहना पड़ता है कि जो हिन्दी की सेवा, या पत्रकारिता के एक अन्य माध्यम के रूप में ब्लॉगरी को ले रहे हों, उनके लिए तो यह बात पूरी तरह सही है। बहुत से लोग ब्लॉग लिखने को न आत्ममुग्धता-आत्मप्रशंसा मानते हैं और न ही ऐसा अभिव्यक्ति का माध्यम जो उन्हें दमित अभिव्यक्ति की इच्छाओं को पूरा करने के काम आए, निरंकुश। बहुधा तो लोग शौकिया ही हाथ आज़माने चले आते हैं। अन्य भी बहुत से कारण होते हैं ब्लॉग लेखन के।
    उनके लिए यह सुझाव पूरी तरह लागू नहीं होता है। इस सुझाव के लागू कर लेने से भी पाठकों में बहुत अन्तर नहीं पड़ने वाला। सिवाय ब्लॉग लेखकों के कम ही शुद्ध पाठक आते हैं ब्लॉग पढ़ने।
    ज़्यादातर लोग जो ब्लॉग सिर्फ़ पढ़ते हैं वे अन्य सामाजिक नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से ही आते हैं, और उतना ही पढ़कर कौट जाते हैं जो उन्हें यहाँ खींचकर लाया होता है।
    जब तक यहाँ ऐसा मौलिक लेखन नहीं होता जो अन्यत्र उपलब्ध न हो, शुद्ध पाठकों की अपेक्षा बेमानी ही है।

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  4. विवादास्पद पोस्टों की प्रवृत्ति तेजी से उभर रही है. सस्ती लोकप्रियता एक खास वर्ग को आकर्षित करती है पर उसे भी लम्बे समय तक नहीं. लेखन का आकर्षण जरूरी है.
    विषयो की कमी नहीं है.
    किसी ने कहा भी है :
    आज के लेखको की समस्या
    यह नहीं कि
    कमी है विषयों की
    वरन
    उसका आधिक्य ही
    उसे सताता है
    और वह ठीक से चुनाव
    नहीं कर पाता है

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  5. सही दिशा में चिन्तन है..जारी रहिये.

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  6. बिलकुल सही सोच है, पर इधर देखने में आ रहा है कि कुछ लोग केवल सस्ती लोकप्रियता (ज्यादा कमेंट्स, ज्यादा हिट) पाने के लिए कुछ भी अनाप शनाप या फिर सनसनीखेज लिखते रहते हैं, जिसमें पढने लायक तो कुछ नहीं होता है बस पोस्ट का शीर्षक बड़ा आकर्षक होता है !

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  7. ब्लॉग हमारे समाज जैसा ही है जहां सब तरह के लोग हैं जहां सब जानते हुए भी आपको उनके बीच ही रहने की आदत डालनी होगी। सबके लिए एक समान नियम बनाने या अपनी परिभाषा के अनुसार सही-गलत तय करने की कोई भी कोशिश नाकाम होगी। यह सोचना भी भ्रम ही है कि सबको स्तरीय या साहित्यिक चीजें ही पसंद आती हैं। सबको अपनी-अपनी करने देना चाहिए ताकि पाठक स्वयं कुछ को चलता होने पर मज़बूर कर दें क्योंकि हर चीज की एक सीमा होती है।

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  8. दादा कैसे हैं?
    गर्मी का दिन है आईस्क्रीम खाइए
    ठंडा लगेगा.

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  9. प्रत्येक व्यक्ति के पास कुछ ना कुछ विशेष जानकारी अवश्य ही होती है जैसे कि पाबला जी तकनीक के विशेषज्ञ हैं तो ललित जी ग्राफिक्स के, कोई फोटोग्राफी का धुरन्धर होता है तो किसी के पास फिल्मों के विषय में नायाब जानकारी रहती है।

    यदि हम ब्लोगर्स अपने पोस्ट में इस प्रकार की जानकारी दें तो ऐसा कोई भी कारण नजर नहीं आता कि हिन्दी ब्लोग्स को पढ़ने के लिये पाठक ना आयें।

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  10. मै आपकी पोस्‍ट सहमत हूँ, आज कल एक ही विषय पर लोग भ्रमक लिख कर क्‍या सिद्ध करना चाहते है यह समझ से परे है। ब्‍लाग विधा की सकारत्‍मकता को हमे देखना चाहिये न कि उसी कमी हो और यदि कमी हो भी तो भी हमें उसी अपना मान सज्‍जनता से दूर करने का प्रयास हो।

    लेखन ऐसा हो जिससे आपके लेखन के कारण आपकी पहचान बने, सही विषय चुना आपने आज इसी की जरूरत थी।

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  11. पोस्ट का डायरेक्शन बरोबर माफ़िक है,
    समापन और उपसँहार की प्रतीक्षा में..
    टिप्पणी लम्बित है !

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!