मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
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30 मई 2010
मुक्तिका: .....डरे रहे. --संजीव 'सलिल'
मुक्तिका
.....डरे रहे.
संजीव 'सलिल'
*
हम डरे-डरे रहे.
तुम डरे-डरे रहे.
दूरियों को दूर कर
निडर हुए, खरे रहे.
हौसलों के वृक्ष पा
लगन-जल हरे रहे.
रिक्त हुए जोड़कर
बाँटकर भरे रहे.
नष्ट हुए व्यर्थ वे
जो महज धरे रहे.
निज हितों में लीन जो
समझिये मरे रहे.
सार्थक हैं वे 'सलिल'
जो फले-झरे रहे.
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दूरियों को दूर कर
जवाब देंहटाएंनिडर हुए, खरे रहे.
ये ही आज किसी भी बदलाव को लाने में सक्षम हो सकता है |
छोटी बहर में मर्मस्पशी गजल....बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंBADHAI AAP KO IS KE LIYE
Achchaa hai
जवाब देंहटाएंरिक्त हुए जोड़कर
जवाब देंहटाएंबाँटकर भरे रहे.
नष्ट हुए व्यर्थ वे
जो महज धरे रहे.
बहुत ख़ूबसूरत और दिल को छू लेने वाली ग़ज़ल!
बहुत सुंदर जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता ।
जवाब देंहटाएंधन्य शुभाशीष पा
जवाब देंहटाएंशीश पर धरे रहे.