धनतेरसपर विशेष गीत...
प्रभु धन दे...
संजीव 'सलिल'
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प्रभु धन दे निर्धन मत करना.
माटी को कंचन मत करना.....
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निर्बल के बल रहो राम जी,
निर्धन के धन रहो राम जी.
मात्र न तन, मन रहो राम जी-
धूल न, चंदन रहो राम जी..
भूमि-सुता तज राजसूय में-
प्रतिमा रख वंदन मत करना.....
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मृदुल कीर्ति प्रतिभा सुनाम जी.
देना सम सुख-दुःख अनाम जी.
हो अकाम-निष्काम काम जी-
आरक्षण बिन भू सुधाम जी..
वन, गिरि, ताल, नदी, पशु-पक्षी-
सिसक रहे क्रंदन मत करना.....
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बिन रमेश क्यों रमा राम जी,
चोरों के आ रहीं काम जी?
श्री गणेश को लिये वाम जी.
पाती हैं जग के प्रणाम जी..
माटी मस्तक तिलक बने पर-
आँखों का अंजन मत करना.....
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साध्य न केवल रहे चाम जी,
अधिक न मोहे टीम-टाम जी.
जब देना हो दो विराम जी-
लेकिन लेना तनिक थाम जी..
कुछ रच पाए कलम सार्थक-
निरुद्देश्य मंचन मत करना..
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अब न सुनामी हो सुनाम जी,
शांति-राज दे, लो प्रणाम जी.
'सलिल' सभी के सदा काम जी-
आये, चल दे कर सलाम जी..
निठुर-काल के व्याल-जाल का
मोह-पाश व्यंजन मत करना.....
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मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
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आध्यात्म और भक्ति रस के चरम को स्पर्श करता यह गीत दिव्य नर्मदा पर भी पढ़ा था ...बहुत बहुत मनभाया. आज फिर पढ़ाने के लिए आप दोनों का बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
बहुत उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंवाह आचार्य जी वाह
सुकुमार गीतकार राकेश खण्डेलवाल
बहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंधन तेरस पर आज कोई रचना पढ़ने को ही नही मिली थी!
आपने मेरी प्यास बुझा दी!
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प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।
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आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!