#शुतुरमुर्ग_बुद्धिजीवियो, फूहड़ मंचीय कवियों, साहित्यकारों को चुनौती
सृजन धर्मियो चार दिनों से तुम सबके चेहरे साफ साफ देख रहा हूँ। बीजापुर सुकुमा में हिडमा ने 24 जवानों को शहीद कर दिया । तुम्हारी कलम की तेज धार किधर गई ? शायद तुम्हारी कलम और चेतना दोनों नपुंसक हो गई है। प्रेमचंद कबीर तुलसी कराहते थे ! तुम हो कि-" नक्सलवाद के खिलाफ वातावरण नहीं बना सकते..?"
हां चुनौती दे रहा हूं...! जब मानवता सरेआम तार तार होती है तब तुम्हारी भूमिका क्या है..?
या तो तुम आयातित विचारधारा के गुलाम हो या अपने कंफर्ट जोन से बाहर ना निकलने की कसम खा चुके हो ?
संस्कारधानी हो या मालवा बुंदेलखंड बघेलखंड बड़ी-बड़ी बातें करना मंच पर बैठकर फूहड़ चुटकुलों और गले बाजी करने वाले कवियों क्या बीजापुर तुम्हारे वतन का हिस्सा नहीं है ?
तुम क्या जानो की दूर पहाड़ में रहने वाला आदिवासी कितने गुमराह किए जा रहे हैं। पढ़ते नहीं हो न और फिर तुम्हारी कलम में धार नहीं है और साथ ही साथ तुम एक विशिष्ट विचारधारा के षड्यंत्र को समझ नहीं पा रहे..! मेरी पोस्ट को पढ़ने के बाद या तो साहित्यकार होने का ऐलान मत करना या आईने के सामने खड़े होकर खुद को तमाचा मारना।
- अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है लिखो उसके पहले पढ़ो ताकि समाज को समझ में आए कि यह देश किसी आयातित विचारधारा का गुलाम नहीं ।
सृजन और साहित्य की ठेकेदारी बंद करो समाज में सही दिशा देने के लिए साहित्यकार के रूप में राष्ट्र धर्म का पालन करो और यह नहीं कर सकते तो सृजन धर्मी होने का दावा मत करो आने वाली पीढ़ियां सब समझ जावेंगी आप क्या थे..!
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!