मुक्तिका:
ज़ख्म कुरेदेंगे....
संजीव 'सलिल'
*
*
ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..
छिपे हुए को बाहर लाकर क्या होगा?
रहा छिपा तो पीछे कहीं लगन होगी..
मत उधेड़-बुन को लादो, फुर्सत ओढ़ो.
होंगे बर्तन चार अगर खन-खन होगी..
फूलों के शूलों को हँसकर सहन करो.
वरना भ्रमरों के हाथों में गन होगी..
बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी..
आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो वरना कल से अनबन होगी..
नेह नर्मदा 'सलिल' हमेशा बहने दो.
अगर रुकी तो मलिन और उन्मन होगी..
*************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
Ad
1 जुल॰ 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
हिल गये पत्ते, मचा हड़कम्प कितना,
जवाब देंहटाएंमानिये, किसी उन्माद में पवन होगी ।
बहुत खुब जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
जवाब देंहटाएंकब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी..
सच कहा बीती बातों को भूल जाना ही बेहतर है
आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो वरना कल से अनबन होगी..
हक़ीक़त है हमें अगली पीढ़ी की भावनाओं को समझना और उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिये ,यही दोनों पीढ़ियों के लिये बेहतर होगा