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बाल गीत:
लंगडी खेलें.....
आचार्य संजीव 'सलिल'
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आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
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एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
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आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
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मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। श्री कृष्ण-जन्माष्टमी पर ढेर सारी बधाइयाँ !!
जवाब देंहटाएंअरे वाह आप ने तो बचप याद दिला दिया, इस लगडी मै मै कभी नही हारता था,बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
aap sabko dhanyavad. langadee khelen, swasthya rahen.
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