मुक्तिका:
शतदल खिले..
संजीव 'सलिल'
*
*
प्रियतम मिले.
शतदल खिले..
खंडहर हुए
संयम किले..
बिसरे सभी
शिकवे-गिले..
जनतंत्र के
लब क्यों सिले?
भटके हुए
हैं काफिले..
कस्बे कहें
खुद को जिले..
छूने चले
पग मंजिलें..
तन तो कुशल
पर मन छिले..
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मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
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बहुत
जवाब देंहटाएंसुन्दर