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24 फ़र॰ 2011

सच तुम जो भी हो आभासी नही

साभार : ब्लॉग "लाइफ" से
तुम्हारी प्यार भरी
भोली भाली बातें
सुन
बन जातीं हैं रातें लम्बी रातें
तुम कौन हो ? क्यों हो ?
इस आभासी दुनिया
के उस पार से
जहां एक तिनके की आड़ लेकर
देख रहीं हो कनखियों से
कह देतीं हो वो
जो
कलाकार गढ़तें है
वही जो गीतकार रचते हैं
फ़िर भी खुद से पूछता हूं
कल पूछूंगा उनसे तुम कौन हो ?
सच तुम जो भी हो आभासी नही
 प्रेम की मूर्ति
 हां वही हो जो
गढ़तें हैं लिखते हैं
कलाकार गीतकार

3 टिप्‍पणियां:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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