30 दिस॰ 2008

श्री राम ठाकुर दादा नहीं रहे


जबलपुर 29 दिसम्बर 2008

जबलपुर के श्रीराम ठाकुर "दादा",व्यंग्यकार लघु कथाकार श्री राम ठाकुर दादा का अल्प बीमारी के उपरांत दु:खद निधन हो गया अपनी सत्यवादिता एवं विनोद के पर्याय एवं मित्रता के निर्वहन के लिए मशहूर दादा को कई राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए उनके बारे में विस्तार से जानकारी के लिए यहाँ ,या यहाँ क्लिक कीजिए स्वर्गीय दादा की अन्तिम यात्रा में परिजनों के अलावा ज्ञान रंजन सहित संस्कार धानी जबलपुर के साहित्यकार,पत्रकार,विचारक, शामिल थे।


जन्म : 28 जनवरी 1946 बारंगी ,जिला : होशंगाबाद अवसान: 28 दिसम्बर 2008 जिला:जबलपुर





अनवरत स्मृतियों को नम आंखों में संजोए भाव पूर्ण श्रद्धांजलियां
शोकाकुल
जबलपुर के समस्त साहित्यकार



28 दिस॰ 2008

ये नन्हें मज़दूर : ये रोटी की तलाश में मज़बूर


देख रहे हैं न आप ये चित्र ?
बोलती आंखों से बात बांचेगा कौन
क्यों हो मौन
गौर से देखो चित्र
मेरी...?
तुम्हारी....?
हम सब की
जिम्मेदारी है मित्र !!
(सभी फोटो भाई संतराम चौधरी )

10 दिस॰ 2008

गुड्डू के बांके भैया

भैया
कहो दादा
जीत गए
हओ जीत गए
अपने गुड्डू के लानें
"सब हो जाएगा दादू अब निसफिकर रैना "
"काय, गुड्डू का बड़ा भाई भी मेई आऊं और मां भी बाप भी तुम चिंता नै करना "
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भैया , जा पंच बरसी सुई जीत लई....?
हओ,दादा
अपने गुड्डू को
अरे दादा, तुम काय चिंता कर रए हो, जा बार मैं मंत्री बन गओ तो गुड्डू
समझो.....?
"बूडा गोपाल हतप्रभ किंतु आशा भरी निगाहों से बांके लाल को देख रहा था
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गुड्डू चुनावी झंडे बैनर ढोता, खम्बों पे लगाता , बांके भैया का परम सेवक पूरा दिन रात एक करता तीसरी बार भी यही सब कुछ करने जा रहा था कि सियासी जंग में घायल हो गया टांगें काटनी पड़ी . एक अपाहिज जिंदगी जो हर पल बांके की ओर आशा भरी नज़र से अपलक शून्य में तांक रहा था . बूडे बाप आंखों में अब उसे अपाहिज देखने की भी शक्ति न थी . फ़िर भी घसिटता हुआ बूदी बाखर की ओर चल पड़ा उसे पता जो चला था कि बांके भैया आए हैं .
लंबे इंतज़ार के बाद भईया जी के दर्शन पाकर आशा भरी निगाहों से उसे निहारता कि भैया जी ने कहा "दाऊ गुड्डू की मुझे चिंता अपन अपराधियों को सजा दिलवाएंगे जेल भेज देंगे अब तो हम मंत्री हो गए न "
सफ़ेद कार में सट से दाखिल भईया जी रवाना हुए . धूल का गुबार उडाता काफिला निकल पडा . दाऊ को अब कुछ नहीं दिख रहा था , दूर तलक

7 दिस॰ 2008

तुम अनचेते चेतोगे कब समझ स्वयं की देखोगे कब

तुम अनचेते चेतोगे कब
समझ स्वयं की देखोगे कब
जागो उठो सवेरा समझो
देखो एक सलोनी छाजन बुनालो
बेल अंकुरित सेम की देखो
खोज रही हैं सहज सहारा .!
आज सोच लो सोचोगे कब
सुनो आज बस सुर इक गाना
वंदे मातरम गीत सुहाना
भारत में भारत ही होगा
मत विचार क़र्ज़ के लाओ

तुम अनचेते चेतोगे कब समझ स्वयं की देखोगे कब

तुम अनचेते चेतोगे कब
समझ स्वयं की देखोगे कब
जागो उठो सवेरा समझो
देखो एक सलोनी छाजन बुनालो
बेल अंकुरित सेम की देखो
खोज रही हैं सहज सहारा .!
आज सोच लो सोचोगे कब
सुनो आज बस सुर इक गाना
वंदे मातरम गीत सुहाना
भारत में भारत ही होगा
मत विचार क़र्ज़ के लाओ

3 दिस॰ 2008

बुआ वाला भोपाल

कला बुआ वाला भोपाल
मामाजी वाला भोपाल
मेरा नही हम सबका भोपाल
जिसे निगला था मिथाइल आइसो सायानाईट के
धुंएँ ने जो
समा गया था देहों में उन देहों में
जो निष्प्राण हो गयीं
जो बचीं वे ज़र्ज़र आज भी कांपते हुए जी रहीं हैं
उनमे मेरी कला बुआ जो देह में बैठे प्राण को आत्म-साहस के साथ
सम्हाले रखीं हैं ,
बुआ रोज जीतीं हैं एक नई जिंदगी
उन लोगों को याद भी करतीं हैं
शाह्ज़हानाबाद की आम वाली मस्जिद में उनके आसपास रहने वाली आशा बुआ, अब्दुल चाचा,
जोजफ सतबीर
यानी वो सब जिनकी अलग अलग इबादतगाहें