22 दिस॰ 2009

ब्रिगेड के एक नियमित पाठक कवि बसंत मिश्र

3 टिप्‍पणियां:

  1. बसंत जी का ब्रिगेड पर आने का आभार. आनन्द आया उनकी रचना सुनकर:

    अब अक्सर दुश्मन होते हैं हाथ मिलाने वाले लोग....

    -क्या बात कही है. मेरी बधाई प्रेषित करें.

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  2. बसंतं जी के दर्शन पा कर खुशी हुई, बधाई

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  3. बसंत जी से मिल कर बहुत खुशी हुयी रचना बहुत सुन्दर लगी । धन्यवाद्

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!