मित्रों सभी जानतें हैं की ब्लागिंग में आजकल क्या हो रहा है विनोद भाव से एक सार्थक लेखन को चित्रित करने की कोशिश को इतना नकारात्मक लिया की मुझे अपनी दौनों पोस्ट हटानी पड़ीं इतनी ज़्यादा नकारात्मकता की उम्मीद मुझे ब्लागिंग जगत से नहीं थी
ये पोस्ट क्रमश:
एक:इन ब्लॉगर जी को पहचानिये और इनाम में पाइए "*मुफ्त-टिप्पणियाँ "
दो:रिजुल्ट आ गया ...... पहचानिये और इनाम में पाइए थीं इसके जो भी अर्थ लगाएं जावें मुझे लग रहा है कि सोच में नकारात्मकता को स्वयं भगवान् भी नहीं मिटा पाए
एक दिन प्रभू विष्णु जी ने लक्ष्मी जी से कहा;-" एक विप्र को जो अमुक देश- भाग का निवासी है उसे संतुष्ट करना मुझे कठिन लग रहा है आप मदद कीजिए ? लक्ष्मी तैयार हो गयीं और फ़िर उस विप्र को इन्द्र से कह कर स्वर्ग के सभी सुख स्वर्ग में सम्मान से लाकर दिए गए .
महालक्ष्मी ने स्वयं बिदाई दी और फीड बैक चाहा ........... विप्र ने कहा : माँ........... इतना भी ठीक नहीं
मित्रों नकारात्मकता की जय है अत: शेष चकाचक अब कोई और फोटो तलाश रहा हूँ
मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
31 मई 2009
28 मई 2009
27 मई 2009
प्रतिचिन्तन .
संवेदना संसार:
आलेख में आपने कर्म काण्ड को अनुपयुक्त बताया आज के सन्दर्भ में मानी है किन्तु तत्कालीन परिस्थितियों में कार्यानुसार अर्थ व्यवस्था का आधार रहे हैं ये कर्म काण्ड . इसे जानने-समझाने के लिए बतादूँ कि आप किसी भी क्रिया को देखिए आपको तस्वीर का यह भाग भी दिखेगा. जन्म के समय से मृत्यु तक के संस्कार को कर्मकांड से जोड़ कर एक व्यवस्था को जन्मा भारतीय समाज ने. मृत्यु के 40 दिन तक शोक काल सभी धर्मों में मान्य है 13 दिवस अति महत्व पूर्ण होते हैं , चूंकि समाज का अधिसंख्यक भाग ग्रामीण था सो तदनुसार नियम बने . अब आप शवदाह करने वाले का शमशान घाट में स्नान करना परिवार का सादा रहना सर मुड़वाना आपकी नज़र में गलत हो सकता है किन्तु सच तो यह है कि कर्मकांड के इस उदाहरण में साफ़ तौर पर मृत्यु उपरांत शोक को महत्व दिया है जो मानवीयता से सम्बन्धित तथ्य है.
कभी लगता है भारतीय सामाजिक व्यवस्था में कर्म काण्ड तत्कालीन व्यवस्था के लिए परिहार्य थे .
वर्तमान में भले ही समयातीत हो चुके हैं . मुझे भी कर्मकांड से अरुचि सी है क्योंकि एक पंडित इसे
जिस तरह से प्रस्तुत करता है वो गलत है . इसके सटीक उदाहरण हैं प्रयाग राज के पंडे जो गिरोह बंद होकर
भावुक मन को धर्म के नाम पर ब्लेक-मेल करते हुए क्षतिग्रस्त करतें पावन व्यवस्थाओं को . इसका अर्थ ये कदापि नहीं
की मूल रूप से कर्मकान्ड सदैव गलत है.
ऐसा भी ठीक नहीं हैं कि हम और आप को तत्कालीन कर्मकांडों को यथा रूप स्वीकार ही करना चाहिए . किन्तु कर्मकांड को किस स्वरुप में स्वीकार्यना आप को तय करना है. वास्तव में वैकल्पिक व्यवस्थाओं का मार्ग सदैव कर्म काण्ड में खुला है . यहाँ मैं जयंत चौधरी की टिप्पणी से सहमत हूँ वे कहते हैं :संगीता जी,-सच है...जैसे मेरे पिता जी कहते हैं... हम लोग उन कर्म कांडों के पीछे के अर्थ और कारण से अनजान हैं.
इसका बहुत बड़ा कारण मुसलमान शासकों के द्वारा किया दमन (पंडितों और धार्मिक किताबों का) भी है.
तो कुछ पंडितों के अज्ञान और ज्ञान ना बाटने का भी है..
किन्तु इसका यह अर्थ नहीं की सब बकवास हैं और हमें उन्हें त्याग देना चाहिए!!!
बहुत विचारणीय लेख.
बधाई..
इस आलेख में सब कुछ सार्थक और सटीक लिखा
मैं भी सहमत हूँ शेष आलेख पूर्णतया सहमत हूँ
आलेख में आपने कर्म काण्ड को अनुपयुक्त बताया आज के सन्दर्भ में मानी है किन्तु तत्कालीन परिस्थितियों में कार्यानुसार अर्थ व्यवस्था का आधार रहे हैं ये कर्म काण्ड . इसे जानने-समझाने के लिए बतादूँ कि आप किसी भी क्रिया को देखिए आपको तस्वीर का यह भाग भी दिखेगा. जन्म के समय से मृत्यु तक के संस्कार को कर्मकांड से जोड़ कर एक व्यवस्था को जन्मा भारतीय समाज ने. मृत्यु के 40 दिन तक शोक काल सभी धर्मों में मान्य है 13 दिवस अति महत्व पूर्ण होते हैं , चूंकि समाज का अधिसंख्यक भाग ग्रामीण था सो तदनुसार नियम बने . अब आप शवदाह करने वाले का शमशान घाट में स्नान करना परिवार का सादा रहना सर मुड़वाना आपकी नज़र में गलत हो सकता है किन्तु सच तो यह है कि कर्मकांड के इस उदाहरण में साफ़ तौर पर मृत्यु उपरांत शोक को महत्व दिया है जो मानवीयता से सम्बन्धित तथ्य है.
कभी लगता है भारतीय सामाजिक व्यवस्था में कर्म काण्ड तत्कालीन व्यवस्था के लिए परिहार्य थे .
वर्तमान में भले ही समयातीत हो चुके हैं . मुझे भी कर्मकांड से अरुचि सी है क्योंकि एक पंडित इसे
जिस तरह से प्रस्तुत करता है वो गलत है . इसके सटीक उदाहरण हैं प्रयाग राज के पंडे जो गिरोह बंद होकर
भावुक मन को धर्म के नाम पर ब्लेक-मेल करते हुए क्षतिग्रस्त करतें पावन व्यवस्थाओं को . इसका अर्थ ये कदापि नहीं
की मूल रूप से कर्मकान्ड सदैव गलत है.
ऐसा भी ठीक नहीं हैं कि हम और आप को तत्कालीन कर्मकांडों को यथा रूप स्वीकार ही करना चाहिए . किन्तु कर्मकांड को किस स्वरुप में स्वीकार्यना आप को तय करना है. वास्तव में वैकल्पिक व्यवस्थाओं का मार्ग सदैव कर्म काण्ड में खुला है . यहाँ मैं जयंत चौधरी की टिप्पणी से सहमत हूँ वे कहते हैं :संगीता जी,-सच है...जैसे मेरे पिता जी कहते हैं... हम लोग उन कर्म कांडों के पीछे के अर्थ और कारण से अनजान हैं.
इसका बहुत बड़ा कारण मुसलमान शासकों के द्वारा किया दमन (पंडितों और धार्मिक किताबों का) भी है.
तो कुछ पंडितों के अज्ञान और ज्ञान ना बाटने का भी है..
किन्तु इसका यह अर्थ नहीं की सब बकवास हैं और हमें उन्हें त्याग देना चाहिए!!!
बहुत विचारणीय लेख.
बधाई..
इस आलेख में सब कुछ सार्थक और सटीक लिखा
मैं भी सहमत हूँ शेष आलेख पूर्णतया सहमत हूँ
25 मई 2009
अज़गर नुमां अफसरों की ज़रूरत नहीं है ।
एक दिन एक मित्र ने कहा "भाई,पवन जी तो हमेशा अपना ही रोना रोते हैं "
हम- भाई साहब ,कुछ लोगों की आदत होती है।
मित्र-इससे सभी सहकर्मियों का उत्साह कम होता है।
हम सभी के बीच ऐसे लोगों की भरमार होती है जो दूसरों से तो अच्छे और सफल काम की अपेक्षा करतें हैं किंतु ख़ुद कुछ करने से बुन्देली बोली में कहूं "जींगर-चोट्टाई" करतें हैं ।
मेरे मित्र दूसरे मित्र का परम प्रिय वाक्य है "कुछ अज़गर से सीखो अफसरी दिन रात काम करके करोगे तो कोई स्पेशल गिफ्ट दे देगी ये सरकार ?....अरे अजगर कोई काम करता है कभी अरे सब अल्लाह-भगवान-प्रभू पर छोड़ दो अज़गर जैसे । "
अब इस देश को अज़गर नुमां अफसरों की ज़रूरत नहीं है । जो अज़गर नुमां अफसर हैं भी उनको जनता एक पल भी बर्दाश्त नहीं करेगी। मित्रों ये तो एक विचार था सो लिख दिया अब आप कुछ नया काम अंतर्जाल पे करना चाहें तो यहाँ क्लिक कीजिए कुछ नया ज़रूर कर पाएंगें ये तय है ।
हम- भाई साहब ,कुछ लोगों की आदत होती है।
मित्र-इससे सभी सहकर्मियों का उत्साह कम होता है।
हम सभी के बीच ऐसे लोगों की भरमार होती है जो दूसरों से तो अच्छे और सफल काम की अपेक्षा करतें हैं किंतु ख़ुद कुछ करने से बुन्देली बोली में कहूं "जींगर-चोट्टाई" करतें हैं ।
मेरे मित्र दूसरे मित्र का परम प्रिय वाक्य है "कुछ अज़गर से सीखो अफसरी दिन रात काम करके करोगे तो कोई स्पेशल गिफ्ट दे देगी ये सरकार ?....अरे अजगर कोई काम करता है कभी अरे सब अल्लाह-भगवान-प्रभू पर छोड़ दो अज़गर जैसे । "
अब इस देश को अज़गर नुमां अफसरों की ज़रूरत नहीं है । जो अज़गर नुमां अफसर हैं भी उनको जनता एक पल भी बर्दाश्त नहीं करेगी। मित्रों ये तो एक विचार था सो लिख दिया अब आप कुछ नया काम अंतर्जाल पे करना चाहें तो यहाँ क्लिक कीजिए कुछ नया ज़रूर कर पाएंगें ये तय है ।
23 मई 2009
" तुम साहिल वाले क्या जानो ...."
भाई विनोद कुमार पांडेयजी ,सादर अभिवादनयहाँ टिप्पणी के लिए । भाई एक मित्र ने अलाहाबाद से दोस्ती की हमसे आज बनारस से आप आए । मिलकर खुश हैं हम सभी ।
अंशु तिवारी के सवाल में नए ब्लॉगर का उछाह वहीं समीर जी ने सवाल किया तो मन में जबलईपुर वारो मित्रभाव दिखा . भाई विजय तिवारी इन दिनों बेहद व्यस्त हैं सो आप जान ही गए होंगे सो भाइयो ये वह सूची है जो जिसके सभी ब्लॉगर जबलपुरिया हैं . जब डूबे जी ने इस बात को जाना तो वे ज़हाज़ बनाने का सामान लेने गुरंदी मार्केट निकल पड़े. रहा संजू भैया का सवाल सो वे सदर से लगे केंट इलाके में रह रहे आर्मी आफिसर्स से इस बात की पता साजी के वास्ते निकल पड़े कि जबलपुर में बंदरगाह कैसे बनेगा.दिव्य नर्मदा वाले संजीव सलिल जी ने बताया की बंदर जहाँ भी होंगे अपनी आराम गाह बना लेंगे तब कहीं जाकर संजय तिवारी ’जी माने । साफ़ तौर पर ये तयशुदा है कि "बन्दर-गाह बरगी की उन पहाडियों में आसानी से बन सकतें हैं जहाँ बन्दर बहुतायत में हों "......... हों क्या हजूर हैं ही ।
आज फोन पर शैली बिटिया ने पूछा चिट्ठाजगत के मठाधीश !! कौन हैं और कैसे होते हैं...?
अपन भी लालबुझक्कड से बड़े वाले हैं बोल दिया-बेटे किसी ऐसे व्यक्ति को मठाधीश कहतें हैं जो मठे की दूकान चलातें हैं।
शैली जब संतोष कर लिया । अपने नाटक मंडली - वाले हिमांशु राय की सबसे ताज़ा पोष्ट 6 दिन बासी थी । इनको ईश्वर ने हवा में पोष्ट टांग देने का अनोखा वरदान दिया है तभी तो इनकी पोष्ट शीर्षक-विहीन होतीं हैं ।
"मल्लाहों को इल्जाम न दो तुम साहिल वाले क्या जानो "
ये तूफ़ान कौन उठाता है,ये कश्ती कौन डुबोता है॥ ['हफीज'जालंधरी]
अंशु तिवारी के सवाल में नए ब्लॉगर का उछाह वहीं समीर जी ने सवाल किया तो मन में जबलईपुर वारो मित्रभाव दिखा . भाई विजय तिवारी इन दिनों बेहद व्यस्त हैं सो आप जान ही गए होंगे सो भाइयो ये वह सूची है जो जिसके सभी ब्लॉगर जबलपुरिया हैं . जब डूबे जी ने इस बात को जाना तो वे ज़हाज़ बनाने का सामान लेने गुरंदी मार्केट निकल पड़े. रहा संजू भैया का सवाल सो वे सदर से लगे केंट इलाके में रह रहे आर्मी आफिसर्स से इस बात की पता साजी के वास्ते निकल पड़े कि जबलपुर में बंदरगाह कैसे बनेगा.दिव्य नर्मदा वाले संजीव सलिल जी ने बताया की बंदर जहाँ भी होंगे अपनी आराम गाह बना लेंगे तब कहीं जाकर संजय तिवारी ’जी माने । साफ़ तौर पर ये तयशुदा है कि "बन्दर-गाह बरगी की उन पहाडियों में आसानी से बन सकतें हैं जहाँ बन्दर बहुतायत में हों "......... हों क्या हजूर हैं ही ।
आज फोन पर शैली बिटिया ने पूछा चिट्ठाजगत के मठाधीश !! कौन हैं और कैसे होते हैं...?
अपन भी लालबुझक्कड से बड़े वाले हैं बोल दिया-बेटे किसी ऐसे व्यक्ति को मठाधीश कहतें हैं जो मठे की दूकान चलातें हैं।
शैली जब संतोष कर लिया । अपने नाटक मंडली - वाले हिमांशु राय की सबसे ताज़ा पोष्ट 6 दिन बासी थी । इनको ईश्वर ने हवा में पोष्ट टांग देने का अनोखा वरदान दिया है तभी तो इनकी पोष्ट शीर्षक-विहीन होतीं हैं ।
"मल्लाहों को इल्जाम न दो तुम साहिल वाले क्या जानो "
ये तूफ़ान कौन उठाता है,ये कश्ती कौन डुबोता है॥ ['हफीज'जालंधरी]
ब्लॉग जो कहने को ब्लॉग हैं
ब्लॉग बन गया हुर्रे ! हिप हिप हुर्रे.....!! या फ़िर यूरेका कहा चीखे और शांत हो लिए । नीचे की लिस्ट यही कुछ बयाँ कर रही है जो भी हो "ब्लॉग तो बनाया ?" का ज़वाब मेरे पास नहीं किंतु इस बात की पड़ताल ज़रूर कर रहा हूँ की ब्लॉग को लेकर गंभीर क्यों नहीं हैं हम लोग । चलो इस बात को छोड़ भी दें तो इस बात की पड़ताल ज़रूर करनी होगी की हममें से कितने/किस आयु लोग टिकाऊ ब्लॉगर हैं तो देखा गया युवा ब्रिगेड ब्लागिंग के लिए टिकाऊ नहीं है । मध्य आयु के व्यक्ति ब्लागिंग के लिए बेहद टिकाऊ साबित हो रहे हैं । नीचे दी गई सूची में हरे रंग को छोड़ कर शेष केवल ब्लॉग बनाने में सफल हुए हैं लिखने में नहीं
1. Prem Farrukhabadi
2. Rohit Prakash
3. chaitanya bhatt
4. arpit661
5. हिमांशु राय॥: इप्टावार्ता हिंदी
6. दिव्य नर्मदा
7. shuchita mudgil
8. rahul_unbound
9. vikassrao
10. mridul singhai
11. Avii
12. Gaurav Bahare
13. VARUN SHAKYA
14. Sanjay Mukerjee
15. ANTRIKSH Shrivastava
16. SRDTHFD
17. Mata Gujri Women's College, Jabalpur
18. VIJAY VISHWAKARMA
19. Ruchika Yadu Jain
20. SIDDHU
21. Himanshu
22. sidharth
23. simbol
24. DEEPANKAR KHANDELWAL
25. Amrit Kaur
26. sandeep sahu
27. sandeep sahu
28. Vikas Gupta
29. Himanshu Singh
30. Rudreshwar Goswamy
31. Vijay Vishwakarma
32. JAGRIT MINOCHA
33. Hirdesh Singh Rajput
34. Ashish Tiwari
35. Avinash Sharma
36. Tsuki Nakajima
37. SHAKTI PRAJAPATI
38. vinay kumar jha
39. Krazzy 4
40. Jona
41. SIDDHARTH SRIVASTAVA
42. Shoumie Mukherjee
43. shreeja
44. Ashish Pathak
45. Soft Space Creation's
46. lucky Dewani
47. NARAYAN GHOSH
48. Ritu Raj Asati
49. animalrights.jbp
50. Indrani Bhattacharjee
51. Indrani bhattacharjee
52. Tribhuwan Kumar Varma
53. saransh jain
54. mathew abraham
55. Ajay Singh Mahobia
56. UMESH SAHU OAZ
57. Saaz Jabalpuri
58. Ajay Tripathi
59. मुझे भी कुछ कहना है
60. Ajeet Golani
61. bharat singh
62. ANAND BASU
63. Devanshu
64. Azad Sikander
65. Prashant Singh
66. Ankur Rajvanshi
67. rashmiray
68. THE ONE & ONLY >>> J ! M C A R R Y
69. grace
70. Ankit Sahu
71. nitin
72. टोटल रिलेक्स
73. Stephan Charles
74. Sanjay Umre
75. Rajul Dubey
76. LOKENDRA GAUR
77. Eddy
78. ...
79. Kartik Iyer (Blog Author)
80. FREEDOM OF EXPRESSION
81. Mohit Jha
82. Preet
83. ®คJē$ĦWค® MคìΠì
84. ShWeTa JaIn
85. चक्रेश सूर्या "सूफी"
86. Nick
87. Indu Mishra
88. Niral DMello
89. Hemant Sharma
90. Aditya Solomon
91. Anurag Singh
92. grace
93. Anshul singh.....!!!!
94. Abhijeet Sarkar
95. Serjesh Sharma
96. Prabeen Kund
97. Ankit Chouksey
98. Summitsingh Thakur
99. infotechdev
100.kamlesh
101.Prem Farrukhabadi
102.vikky
103.koushikindian99
104.Alok
105.AACHARY BHAGWAT DUBEY
106.SIKANDAR
107.sumit dubey
108.PANKAJ AGRAWAL
109.Abhishek Dubey
110.sanjay soni
111.kartikshyam
112.Gaurav
113.Kshitij Sharma
114.Nitin
115.mohammad shahid ali
116.Navin David
117.Ashwin nayak
118.net rockers
119.MAYANK RAJ
120.sarwanjeet singh
121.Saurabh Pandey
122.sankalp nagar
123.vikas kumar chouksey
124.Parag Agrawal
125.ANKUR KHARE
126.Divy
127.Lover Of Srk
128.Rochan Rocks
129.SHRI SAI ENTERPRISES
130.@bhishek
131.sumit tomar
132.Vikas Gupta
133.Gee Nema
134.sunil mishra
135.dipanker
136.Achin
137.venkatesh janakiraman
138.S R
139.AKHIL GUPTA
140.Clix Sense.Com
141.prakash tulsani
142.DJ
143.Giby George
144.Divya Lall
145.Akshay Dubey
146.EvIL tHe DeVil
147.naresh
148.Navin Samuel David
149.Vishal Bhasin
150.gpats
151.Ashwin
152.Priyankk Mehta
153.ajay tripathi
154.disorientedtracer
155.siddharth
156.Imran
157.vikram pawar
158.Serious Hackers Inside
159.SUNIL SHRIVASTAVA
160.ROHAN RAJ
161.Nishant Stephen
162.Aravind
163.Kartik Speaks
164.Kalpesh
165.Edwin Pinto
166.Arnab Mukherjee
167.Ashutosh गुप्ता
21 मई 2009
सरहदे अक्ल से गुज़रे तो यहाँ तक पहुंचे "
बिस्मिल आशिक की आर्त पुकार को "हफ़ीज़" जालंधरी ने बड़ी संजीदा सलाह देकर शांत कराया
क्यों हिज्र के शिकवे करता है ,क्या दर्द के रोने रोता है
अब इश्क किया तो सब्र भी कर,इस में तो यही कुछ होता है
तभी हफ़ीज़ जो होशियारपुर से आए आते ही फलसफा दिया उस आशिक को अब इश्क किया तो सब्र भी कर,इस में तो यही कुछ होता है
"तेरी मंजिल पे पहुँचना कोई आसान न था
सरहदे अक्ल से गुज़रे तो यहाँ तक पहुंचे "
इन हफीजों के बीच "राज़"- "अपनी....?" समस्या लेकर आए
क्या बात थी कि जो भी सूना अनसुना हुआ
दिल के नगर में शोर था कैसा मचा हुआ
शोर से अपना कोई नाता न था बताने आए अब्दुल हमीद 'अदम' ने राज़ साहब के दिल में मचे में अपना हाथ होने से साफ़ साफ़ इनकार कुछ यूं किया
मयक़दा था चांदनी थी मैं न था : इक मुजस्सम बेखुदी थी मैं न था ।
तमाम दुनियाई बातों से उकताए भरे "ज़हीर" काश्मीरी बोल उठे
कितने ही इंकलाब शिकन दर शिकन मिले
आज अपनी शक्ल देख मैं दंग रह गया ।
शिकेब ज़लाली तैश में थे दुनियाँवी हरकतों से कुछ नाराज़ लगे किस्मत की लकीरों का खात्मा करने बज़िद -
मैं हाथ की लकीरें मिटाने पे हूँ बज़िद : गो जानता हूँ नक्श नहीं ये सलेट के ।
यह मुशायरा देर तक चलता अगरचे मुझे चलिए छोडिए मुशायरे मुसलसल जारी हैं । मेरी गुज़ारिश है कि "मुशायरों में कहे जाने वाले कलाम मुकम्मल तब होते हैं जब कि सोच में सकारात्मक परिवर्तन हो "पर यह हो न पाएगा कारण साफ़ है कि हमने अक्ल की सरहदें पार कर लीं हैं ।
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गूगल बाबा की झोली से फोटो उठाएं है किसी भी आपत्ति का स्वागत होगा मौन स्वीकृति के लिए अग्रिम आभार
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