मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
28 अप्रैल 2009
19 अप्रैल 2009
विवेक रंजन जी और सलिल जी ने पारी सम्हाल ली
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17 अप्रैल 2009
आलोचक ही नहीं सभी तो बीस-बीस वाला मैच खेल रहे हैं ....!! .
इस पर मेरी सहमति अधिक तल्ख़ और चुभने वाली लग सकती है । जबलपुर तो एक उदाहरण है पूरेc देश में आलोचक बीस-बीस वाला मैच खेल रहे हैं इस बात के उदाहरण अनवरत आपको मिलेंगे ।डाक्टर मलय शर्मा भी इस तरह की उपेक्षा का शिकार रहे हैं। जबकि बुन्देली लोक भाषा के कवि एवं कथाकार "गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त "
आलोचक ही क्यों आयोजक और हम सभी के लिए सोचना ज़रूरी है कि "हम कुछ चुनिन्दा के इर्द गिर्द ही क्यों डोलते फिरतें हैं " हाँ इस के विरोध के स्वर उभरते तो हैं जिसको पागलपन कहा जाता है जैसा कि कई बार मैंने भोगा और सुना है।
विगत तीन चार बरस पहले की बात है हमने कोशिश शुरू की थी नगर और बाहर के सृजन धर्मियों की कृतियों का पठन पाठन हो उस पर चर्चा हो पाठक मंच की तरह तब स्वर्गीय श्री राम ठाकुर दादा के अलावा किसी ने इस हेतु सहयोग नहीं दिया इसका अर्थ क्या था कई दिनों तक सोचता रहा था मैं एक दिन तो बात यहाँ तक पहुँच गयी कि इस तरह के मासिक आयोजन की भीड़ को कम करने प्रायोजित-समानान्तर-आयोजनों का सिलसिला शुरू कर दिया गया । कुल मिला कर आत्म-मुग्धता का सर्वोत्तम ऐसे उदाहरणों से हम क्षतिग्रस्त हुए जिसका परिणाम यह है कि:-"श्री ओंकार ठाकुर जैसे महान रचनाकारों की उपेक्षा का दंश सबको चुभ रहा है किन्तु उनको नहीं जो यह ऐलान करतें हैं कि वे साहित्य और सृजन शीलता के प्रोत्साहक हैं "
अस्तु मेरा सवाल ये नहीं की सिर्फ़ आलोचक ही जिम्मेदार होते हैं....मैं सहमत नहीं जिम्मेदार तो हम सभी हैं साहित्य के लिए हिन्दी के सार्थक सृजन को प्रोत्साहित कराने उनके समय पर मूल्यांकन के लिए । वैसे मुझे यह मालूम है की इस आलेख को आप कुंठा ही कहेंगे किंतु ऐसा नहीं है मुझे आपसे यह अनुरोध करना है कि यदि आपके शहर में ऐसे कोई उपेक्षित से साहित्यकार हों तो उनको उनका सम्मान ज़रूर दिलाएं यदि आप यह कर सकें तो बेहद रचनात्मक कार्य होगा ।
विशेष विनम्र अनुरोध :-इस पोस्ट को केवल जबलपुर से जोड़कर न देखें यह हर जगह की स्थिति की रपट है
गुमशुदा मानसून
कुछ पर्यावरण प्रेमियों के,
प्रकृति को बचाने की कोशिशें,
जिनके हाथ लगती है-
एक तपती हुई दोपहरी
और तड़पती देहों का मेला।।
मौसम विभाग की सलाह
अनदेखे ऊसरी दस्तावेज़,
मुँह चिढ़ाते,
धूप में खेतिहर मजूर-
साधना के वादे निभाते।।
उन्हें भी हासिल है,
तपती दोपहरी,
और तड़पती देह का मेला।।
मेधा से बहुगुणा तक अनशनरत तपस्वी,
रियो-डि-जेनरियो के दस्तावेज़।
उगाने को तत्पर-
नई प्रकृति - नए अनुदेश।
मिलेगी-हमें-
दरकती भू
तपती दोपहरियाँ
और तड़पती देहों का मेला।
चित्र साभार : यहाँ से यानी गूगल बाबा की झोली से
12 अप्रैल 2009
तक़रीर की एवज़ में रोटी ही दिखा देते ।।
10 अप्रैल 2009
जनता सब देख रही है
ऐसा हूँ
तुमको लगा होगा ऐसा हूँ....?
जूली के बिना ...?
हैं न
अपना गुल्लू
कल भाषण से रहा था
फ़िर उसकी ऐसी दशा हुई
"बोल अब गला कटेगा,॥?
रोलर चलाने की धमकी देगा "
किसी को पूतना कहेगा...?
बोल...
जनता सब देख रही थी
लगाए फिरते हैं तस्वीरें शहीदों की भुनाएंगे
हमने मुफलिसों के तलवे देखे हैं
दफ़न करने इस लाश के पहले
होते बीसियों बलवे देखें हैं
****************
इश्क वफ़ा इकरार ऐतबार
सजे उस की जुबाँ पे
इससे बड़ा झूठ क्या होगा ?
****************
लगाए फिरते हैं तस्वीरें शहीदों की भुनाएंगे
ये नेता हैं इनको तिजारत भी सिखाई है
****************
8 अप्रैल 2009
जूता जो अब आवाज़ बनेगा ...?
जापानी जूता जो गुनगुनाया गया
इराकी जूता गर्माया
जीजू का जूता,जो छिपाया गया
और ये एक जूता
जूता जिसने शर्मसार किया
भारतीय चिंतन को
तार तार किया
आप
क्या सोचतें हैं
बताइये
बताने आ रहें हैं तो
आइए
किंतु
नंगे-पाँव
मैं आम आदमीं हूँ
सभ्यता
सांस्कृतिक
सौजन्यता
मुझमें बाक़ी है !!
7 अप्रैल 2009
समीर कृत बिखरे-मोती :मित्रों के बीच
आप कितने बड़े मैजीशियन हों
सच में आप कितने भी बड़े जादूगर हैं किंतु गाजर से बड़े नहीं हो सकते । इसका प्रमाण आपके सामने है । अस्तु मित्रों
बाजीगर अथवा जादूगरी से बढकर होती है ज़मूरे के पेट की आग उसे बुझाइये फ़िर हौले से छा जाइए । भारत वर्ष के सन्दर्भ में अगर वर्तमान में चुनाव के सन्दर्भ में इसे देखें अथवा किसी अन्य सन्दर्भ में देखें तो तय है उपरोक्त कार्टून फ़िल्म सम-सामायिक ही है।
6 अप्रैल 2009
संगम जबलपुर में होगा : भाग दो
आपने ये तो बांच ही लिया होगा यहाँ
हम सबएक कहानी सुनियेगा जी सॉरी पढियेगा पढिये न पढिये छाप देता हूँ । सो सुनिए बवाल जी एक पत्थर था सड़क पर बीचों बीच पडा एक समस्या की तरह । इन चार ने एक के अनुरोध पे सड़क पे पड़े उस पत्थर को हटाने की कोशिश की ताक़त चारों मिल कर लगा तो रहे थे किंतु पत्थर न तो टस हुआ न मस तभी अपनेडूबे जी ने संजू ब्लॉगर जो हमारी बीच के लाल बुझ्कड़ से पूछ कर तरकीब सोची पत्तर हटाने की । वो भी ना कामयाब रही आनन् फानन समीर जी मीत के गीत सुनाने निकले कोलकता वहाँ से महाशक्ति को इलाहाबाद में ही न्योत आए की भैया पत्थर हटाना है चलो जबलपुर । सो आ गए भाई जी देखें इस कहानी में कौन सा मोड़ आता है ?
जो भी होगा कल देर रात बांचियेगा तब तक कुछ सोचने दीजिए ।
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
सोचा की कोई और अर्थ न निकाले इस गरज से आज ही लिख के किस्सा ख़तम किए देता हूँ सो सुनिए
संजू ब्लॉगर जी के पास सड़क पे खड़े समस्या रूपी पत्थर को हटाने की जब कोई तरकीब न मिली तो अपनी शैली बिटिया ने अजय त्रिपाठी स्टार न्यूज़ वाले भैया जी से पूछा कि :-भैया बताओ इस कैसे हटाएँ ?
अजय त्रिपाठी :- शैली,सुनो ज़रा देखना पत्थर हटाने ये लोग क्या कर रहें है ...?
शैली ने उस जगह का मुआइना कर ख़बर दी :-"भैया... ये सभी, चारों और से पत्थर को ढका रहें हैं.....! बताओ ऐसे कैसे हटेगा पत्थर.....!
अजय:"सही तो है ऐसी कोशिशें नाकाम ही होतीं हैं "
शैली ने सभी को एक ही ओर खडा कर दिया । जोर से पत्थर को फूंकने को कहा । बस फ़िर क्या था पत्थर खिसक गया रुई के फाहे सा सड़क से बाहर.......
यही है "हमसब " की ताक़त कलकत्ता/इलाहाबाद/कानपुर/झांसी/दिल्ल्र्र/रायपुर यानी समूचे भारत की ताक़त
बड़ी नाव की ज़रूरत है अब
उन दिनों फिर भी कम लोग ही थे अब तो लिस्ट में नए नाम दर्ज हो रहे हैं रोजिन्ना ही
सभी ब्लॉगर की और से शुभ कामनाएं
दुबे जी शीघ्र ही बड़ी नाव बनाने जा रहे है इन सबके लिए
महेंद्र मिश्र जबलपुर
गिरीश बिल्लोरे जबलपुर
डूबे जी जबलपुर
डाक्टर विजय तिवारी जबलपुर
शैली खत्री जबलपुर
विवेकरंजन श्रीवास्तव जबलपुर
अजय त्रिपाठी जबलपुर
संजीव वर्मा "सलिल" जबलपुर
साज़ जबलपुरी जबलपुर
पंकज गुलुश जबलपुर
आचार्य भागवत दुबे जबलपुर
गार्गी शरण मिश्र जबलपुर
आनंद कृष्ण जबलपुर
जिन ब्लागर्स का उल्लेख नहीं हो सका भूल के लिए माफी दैदो
5 अप्रैल 2009
संगम जबलपुर में होगा : भाग दो
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हम सब
एक कहानी सुनियेगा जी सॉरी पढियेगा पढिये न पढिये छाप देता हूँ । सो सुनिए बवाल जी एक पत्थर था सड़क पर बीचों बीच पडा एक समस्या की तरह । इन चार ने एक के अनुरोध पे सड़क पे पड़े उस पत्थर को हटाने की कोशिश की ताक़त चारों मिल कर लगा तो रहे थे किंतु पत्थर न तो टस हुआ न मस तभी अपनेडूबे जी ने संजू ब्लॉगर जो हमारी बीच के लाल बुझ्कड़ से पूछ कर तरकीब सोची पत्तर हटाने की । वो भी ना कामयाब रही आनन् फानन समीर जी मीत के गीत सुनाने निकले कोलकता वहाँ से महाशक्ति को इलाहाबाद में ही न्योत आए की भैया पत्थर हटाना है चलो जबलपुर । सो आ गए भाई जी देखें इस कहानी में कौन सा मोड़ आता है ?
जो भी होगा कल देर रात बांचियेगा तब तक कुछ सोचने दीजिए ।
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सोचा की कोई और अर्थ न निकाले इस गरज से आज ही लिख के किस्सा ख़तम किए देता हूँ सो सुनिए
संजू ब्लॉगर जी के पास सड़क पे खड़े समस्या रूपी पत्थर को हटाने की जब कोई तरकीब न मिली तो अपनी शैली बिटिया ने अजय त्रिपाठी स्टार न्यूज़ वाले भैया जी से पूछा कि :-भैया बताओ इस कैसे हटाएँ ?
अजय त्रिपाठी :- शैली,सुनो ज़रा देखना पत्थर हटाने ये लोग क्या कर रहें है ...?
शैली ने उस जगह का मुआइना कर ख़बर दी :-"भैया... ये सभी, चारों और से पत्थर को ढका रहें हैं.....! बताओ ऐसे कैसे हटेगा पत्थर.....!
अजय:"सही तो है ऐसी कोशिशें नाकाम ही होतीं हैं "
शैली ने सभी को एक ही ओर खडा कर दिया । जोर से पत्थर को फूंकने को कहा । बस फ़िर क्या था पत्थर खिसक गया रुई के फाहे सा सड़क से बाहर.......
यही है "हमसब " की ताक़त कलकत्ता/इलाहाबाद/कानपुर/झांसी/ दिल्ली/रायपुर यानी समूचे भारत की ताक़त
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4 अप्रैल 2009
नाम और यूं आर एल से टिप्पणी का जुगाड़...!!
मैंने अपना मामला तो एक सायबर ज्ञानी जी को रेफर कर दिया है। जो शीघ्र ही विस्तार से जानकारी भेजेंगे देखूंगा कि सायबर ज्ञानी अंकित की भेजी जानकारी में क्या खुलासा होता है ।
बहरहाल इस बात को यहीं विराम देते हुए एक रुचिकर समाचार की और आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहूंगा समाचार क्या आम ज़िंदगी से जुड़ी बात है कई बार मना करने के बावजूद बाबूजी ने मेरे ड्रायवर को निर्माल्य {पूजा से बचे फूलों } को नर्मदा नदी में विसर्जित करने की जिद्द पकड़ ली थी । बुजुर्गों को सीधे सीधे इनकार करना खतरे से खाली नहीं होता सो हमने उस निर्माल्य को अपने साथ लिया और चल पड़े तय शुदा व्यवस्था के तहत उस किसान परिवार के पास जिसने जैविक खाद के लिए "नाडेप संरचना तैयार कर रखी है। अपशिष्ट प्रबंधन के इस नायाब प्रयोग से मुझे भी बागवानी के लिए खाद मिलेगी अपने घरेलू गमलों के वास्ते माँ नर्मदा भी दूषित नहीं होगी हमारी अंध-भक्ति के कारण ।
3 अप्रैल 2009
बवाल,प्रेम,समीर लाल,और किसलय जी की गीतों भरी कहानी
हर ब्लॉगर के सपने बस एक से ही हैं ......सभी लिखतें हैं लगातार बड़ी मेहनत मशक्कत से लोग बांचें अपनी बात सार्वभौमिक रूप से छा जाने की तमन्ना लिए दिल में एग्रीगेटर के पहले पन्ने के 40 श्रेष्ठों में आने और छाने की आकांक्षा लिए हम लोग ज्यों ही टिपियाने का महत्त्व समझ लेते हैं तो "सबको टिपियाते चले जाते हैंबिना किसी भेद भाव के। किन्तु इसे हम एक इनवैस्टमेंट मानतें हैं ।और इस का सीधा सम्बन्ध है वही ब्लॉग के लोकप्रिय होने का यही तमन्ना होती है
किंतु रिकार्ड बनाने के चक्कर में बनाए ब्लॉग केवल ख़ुद के पड़ने के काम आतें हैं , कभी ख़ुद पे कभीइस ब्लॉग पे रोना आता है और हमारे पास यही गाना गुनगुनाने को शेष रहता है दिन ढल जाए बिन टीप पाए
तब शुरू होती है ओरों के ब्लागों पे टिपियाने की कहानी रफ्त:रफ्त:यही करतें हैं
तब आतीं हैं अपने ब्लॉग पर टिप्पणियाँ मित्र /सखी फ़िर चुटकी लेते हैं जानू जानू रे कैसे पायीं तीन टिपियाँ 15 से ज़्यादा टिपियाना हुआ की मन गा उठता है ब्लागिया आज तुझे नींद नही आएगी भले शरीके हयात कितने बार चीख चीख के बेजार होके ये गावें न जावो सैंयाँ पर हम हैं की देर रात तक निटियाते ही रहेंगें {रहतें हैं } अब जब ब्लागिंग के मोहपाश में बाँध ही गए हों हम तो सबके कथन का आर्थ खोजने की कवायद शुरू कर देतें हैं कुछ इस तरह से जाने क्या तुने कही जाने क्यों तूने कही
भले ही हमको नादान भंवरा माना जाए ।
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना होतीं हैं ,
तब हताश मन एक बार फ़िर सोचता है बीसियों नहीं सैकड़ों कमेन्ट वाली पोस्ट के लिएजाने वो कैसे ब्लॉग हैं जिनपे कमेन्ट हज़ार मिला
इसी उहा पोह में कुछ नुस्खे आज़माने का दौर चलता है देर रात तक नीद आती है तो कम्प्युटर गोया गुनगुनाता नज़र आता है अभी न जाओ छोड़कर और ब्लॉगर गुनगुनाता है अपनी धुन में खोया खोया चाँद _