मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
28 नव॰ 2009
मेरे जन्म दिन की पूर्व सांझ पर जबलपुर ब्रिगेड के कमान्डर घोषित
जबलपुर ब्रिगेड ने 28 नवम्बर 2009 को अपने ऐतिहासिक फैसले में मेरे जन्म दिन की पूर्व संध्या पर सी० एम० प्रसाद साहब के इस प्रस्ताव पर :- हमे कमान्डर का इन्तेज़ार है :एक मतेन निर्णय लेकर मध्य प्रदेश विद्युत बोर्ड से दिनांक 30/11/09 को स्वैच्छिक सेवा निवृत्त ले रहे ब्रिगेडियर महेन्द्र मिश्र को अपना कमांडर मान लिया है . साथ ही सभी ने उस शपथ-मसौदे पर भी विचार किया जिसमें कमांडर के प्रति हमारी प्रतिबध्दताएं कई होंगी तथा उनका स्वरुप क्या होगा.इस सूचना के लिखे जाने तक अजय कुमार झा के प्रस्ताव पर भी गंभीर चिंतन जारी है . ब्रिगेड में और किन किन को न्योता जाए ? वैसे सभी इच्छुक चर्चाकारों के नाम पर आम सहमति बन चुकी है. शेष जारी
27 नव॰ 2009
ब्रिगेडियर महेन्द्र मिश्र का हार्दिक स्वागत
आज की सुबह सुहानी थी दोपहर सरकारी दौरे के दौरान माँ नर्मदा के तट पर दोपहर के भोजन का स्वाद ही कुछ अदभुत सा था सुबह 9:00 बजे से लगातार फील्ड पर रहने के दौरान कैमरे का इस्तेमाल कर ही लिया देखिये सुश्री माया मिश्रा एवं सुषमा जी आकाश में जाने क्या देख रहीं थी कि अपनी क्लिक ! जी हाँ बरगी टूर के दौरान मुझे सरकारी रेस्ट हाउस से बेहतर लंच लेने के लिए यही स्थान लगता है. ईश्वर की अनुपम धरोहर को नष्ट करता विकास ये वो ज़गह है जिस स्थान से माँ नर्मदा को अपलक निहारा करता हूँ कदाचित माँ कहती है कि "यहीं बस जा मेरे पास "
इस जगह से कैसा अपना पन हो गया है मुझे यहाँ आते ही स्वर्गीया सव्यसाची की गोद में मिलने वाला सुकून नेह का गुनगुना एहसास जो भौतिक रूप से मुझे अब अगले जन्म तक नहीं मिलने वाला है यहाँ उसका आभास हो ही जाता है. नदी और माँ के बीच अंतर्संबंध समझता मेरा मन सहकर्मियों के अनुरोध को टाल न सका समय की मांग थी कि हम उस जगह को छोड़ें सुश्री मिश्रा के अनुरोध पर बमुश्किल 10 मिनट बाद हम रवाना हुए अगले पाइंट के लिए मन ही मन माँ नर्मदा से फिर आने की बात कह कर हम रवाना हुए . वहां रुकने से मेरे कई काम निपट जातें हैं जैसे उस भूरे कुत्ते से मुलाक़ात हो जाती है जिसे लगभग एक बरस से एकाध नेह निवाल दे देता हूँ कुछ चींटियाँ जिनके लिए रोटिया उपयोगी होतीं है साथ ही माँ से मुलाक़ात यानी यानी अब गूंगे से गुड की मिठास का विवरण नहीं दिया जाता है . ________________________________________________________________________________________
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और ये अपन पता नहीं कब सुषमा जी ने कैमरा क्लिक कर दिया
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का हार्दिक स्वागत है जबलपुर ब्रिगेड पर
शाम ब्रिगेड का पन्ना खोला तो सारे ब्रिगेडियर के अलावा हमारी वरिष्ठ समीर भाई के बाद के और हम सबसे सीनियार ब्लॉगर महेंद्र मिश्र जी आमंत्रण स्वीकार चुके नज़र आए इधर हम अपना मेल इनबाक्स बार बार देख रहें हैं मिश्र जी का मेल चर्चा वाले पन्ने के लिए आता ही होगा. इस बीच खर ये है कि बवाल कल से जो ट्रक लेकर गए हैं बेगानी जी के पास से कपिला जी के पास फिर मंगलूर की एक चर्च में सुसमाचार सुन रहे हैं , शरद कोकासजी विजय तिवारी "किसलय"जी , ठण्ड की वज़ह से रजैया में दुबके ब्लागिंग कर रहें हैं . उधर ब्रिगेडियर महाशक्ति की स्थिति बेहद खराब है पापा जी कहे थे कि इस जन्म दिन के पहले बिहाय देगें किन्तु ब्रिगेड के वीटो के मद्देनज़र "सुदिन" नहीं हो पाया . अस्तु प्रमेन्द्र तुम्हारी बरात जबलपुर में आना तय है . क्यों भाई संजीव सलिल जी ठीक हैं ? जबलपुर में जाडे से बचने हमने दीपक से 'मशाल ' मशाल से अलाव जगा रखे हैं मालूम हुआ है कि रवीन्द्र प्रभात जी की परिकल्पनापर कोई जुगाड़ हुआ तो एकाध जबलपुरिया-ब्लॉग जुड़ेगा वर्ना समीर जी की के बाद जात्रा आगे बढ कर एक जनवरी 2010 को एक दूजे को हेप्प्या न्यू इयर कहता नज़र आयेगा . वैसे आज़कल अलबेला खत्री का मार्केट तेज़ है, उधर एक दम अपने ये मुन्ना सर्किट तेज़ी से आगे निकलते नज़र आ रए हैं ... टपोरी टाइप की बोली का मज़ा ही कुछ और है,
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मुंबई हादसें के शहीदों के पुन्य स्मरण के साथ धार्मिक आतंकवादी आकांक्षाओं के समूल समापन के आव्हान करते हुए इति !
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26 नव॰ 2009
गीतिका: अपने मन से हार रहे हैं -संजीव 'सलिल'
गीतिका
आचार्य संजीव 'सलिल'
अपने मन से हार रहे हैं।
छुरा पीठ में मार रहे हैं॥
गुलदस्ते हैं मृग मरीचिका।
छिपे नुकीले खार रहे हैं॥
जनसेवक आखेटक निकले।
जन-गण महज शिकार रहे हैं॥
दुःख के सौदे नगद हो रहे।
सुख-शुभ-सत्य उधार रहे हैं॥
शिशु-बच्चों को यौन-प्रशिक्षण?
पाँव कुल्हाडी मार रहे हैं॥
राष्ट्र गौड़, क्यों प्रान्त प्रमुख हो?
कलुषित क्षुद्र विचार रहे हैं॥
हुए अजनबी धन-पद पाकर।
कभी ह्रदय के हार रहे हैं॥
नेह नर्मदा की नीलामी।
'सलिल' हाथ अंगार रहे हैं॥
*********************
divyanarmada.blogspot.com
salil.sanjiv@gmail.com
आचार्य संजीव 'सलिल'
अपने मन से हार रहे हैं।
छुरा पीठ में मार रहे हैं॥
गुलदस्ते हैं मृग मरीचिका।
छिपे नुकीले खार रहे हैं॥
जनसेवक आखेटक निकले।
जन-गण महज शिकार रहे हैं॥
दुःख के सौदे नगद हो रहे।
सुख-शुभ-सत्य उधार रहे हैं॥
शिशु-बच्चों को यौन-प्रशिक्षण?
पाँव कुल्हाडी मार रहे हैं॥
राष्ट्र गौड़, क्यों प्रान्त प्रमुख हो?
कलुषित क्षुद्र विचार रहे हैं॥
हुए अजनबी धन-पद पाकर।
कभी ह्रदय के हार रहे हैं॥
नेह नर्मदा की नीलामी।
'सलिल' हाथ अंगार रहे हैं॥
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शपथ लो अब कोई हेमंत करकरे
नेस्तनाबूद कर दो
उस शरीर को जो धर्म के नाम पर आतंक मचाये
रेत के किलों से डहा दो
उन महलों को जहां से
उगतीं हैं धर्मांध पौध...........!
कोई पाप न होगा अगर तुम एक बार बचा लोगे
एक करकरे को
तुम जो नि:शब्द खड़े
धर्म के मामलों पर कुतर्क
सुन लेते हो
तुम जो खिड़कियाँ बंद कर व्यवस्था को गरियाते हो
तुम जो सुबह दफ्तर जाते हो
तुम जो सड़क पर गिरे घायल को
अनदेखा कर निकलते हो...
छोड़ दो ये चमड़ी बचाने की आदत
उठो हुंकारों शंखनाद करो नि:शब्द में शब्द भरो
फहरा दो विश्व में शान्ति का परचम
बहकाने न दो बच्चों के कदम
सिखाओ मानव धर्म
बेशक कठोर हो जाओ जब देश की प्रतिष्ठा को कोई आंच आए
विश्व का अंत करने वाली सोच का सर कुचल दो
शान्ति द्रोहियों को ठीक वैसे ही मारो जैसे
एक बन्दर सांप का सर पकड़ कर तब तक रगड़ रगड़ के मारता है जब तक उसका अंत न हो जाए
कोई अपराध नहीं है साथ दो हौसला दो वीरों को
शपथ लो
अब कोई हेमंत करकरे अकारण न शहीद होगा
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उस शरीर को जो धर्म के नाम पर आतंक मचाये
रेत के किलों से डहा दो
उन महलों को जहां से
उगतीं हैं धर्मांध पौध...........!
कोई पाप न होगा अगर तुम एक बार बचा लोगे
एक करकरे को
तुम जो नि:शब्द खड़े
धर्म के मामलों पर कुतर्क
सुन लेते हो
तुम जो खिड़कियाँ बंद कर व्यवस्था को गरियाते हो
तुम जो सुबह दफ्तर जाते हो
तुम जो सड़क पर गिरे घायल को
अनदेखा कर निकलते हो...
छोड़ दो ये चमड़ी बचाने की आदत
उठो हुंकारों शंखनाद करो नि:शब्द में शब्द भरो
फहरा दो विश्व में शान्ति का परचम
बहकाने न दो बच्चों के कदम
सिखाओ मानव धर्म
बेशक कठोर हो जाओ जब देश की प्रतिष्ठा को कोई आंच आए
विश्व का अंत करने वाली सोच का सर कुचल दो
शान्ति द्रोहियों को ठीक वैसे ही मारो जैसे
एक बन्दर सांप का सर पकड़ कर तब तक रगड़ रगड़ के मारता है जब तक उसका अंत न हो जाए
कोई अपराध नहीं है साथ दो हौसला दो वीरों को
शपथ लो
अब कोई हेमंत करकरे अकारण न शहीद होगा
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हेमंत करकरे (जन्म १९५४-२६ नवंबर २००८) मुंबई के आतंक विरोधी दस्ते के प्रमुख थे। वे २६ नवंबर २००८ को मुंबई में हुए श्रेणीबद्ध धमाकों और गोलीबारी का बहादुरी से सामना करते हुए शहीद हुए। हेमंत करकरे १९८२ बैच के आईपीएस अधिकारी थे। नागपुर के विश्वेश्वर रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री लेने वाले करकरे ने डॉ. केपी रघुवंशी से मुंबई एटीएस के प्रमुख का पदभार ग्रहण किया था।
करकरे ने चंद्रपुर के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में भी काम किया था। नॉरकोटिक्स विभाग में तैनाती के दौरान उन्होंने पहली बार विदेशी ड्रग्स माफिया को गिरगांव चौपाटी के पास मार गिराने का कारनामा कर दिखाया था।[१] वे रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के लिए ऑस्ट्रिया में सात साल तक अपनी सेवाएँ देने के बाद इसी साल महाराष्ट्र कैडर में वापस लौटे थे। इसके तत्काल बाद ही जनवरी में उन्हें एटीएस प्रमुख बनाया गया था। वे इन दिनों २९ सितंबर ०८ को मालेगांव में हुए बम विस्फोट की गुत्थी सुलझाने में जुटे हुए थे। मुंबई पुलिस ने हेमंत करकरे के रूप में एक जांबाज और दिलेर अधिकारी खो दिया है। स्वभाव से बेहद शांत और संयमी करकरे पुलिस महकमे में अपनी ईमानदारी और निष्ठा के लिए जाने जाते थे।
विकी पीडिया से साभार मूल स्रोत : दैनिक भास्कर
25 नव॰ 2009
कपिला जी एवं पंकज जी के जन्म-दिवस पर विशेष व्यवस्थाएं
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निर्मला कपिलाजी जिनका चर्चित ब्लॉग वीर बहूटी है पंकज बेंगाणी जी का जिनका ब्लॉग तरकश है ये तो सभी जानतें हैं पर यह नहीं जानतें की आज उन्होंने सभी चिट्ठाकारों को आमंत्रित किया है अब सब तो जा नहीं सकते सो एक दो तीन या चार जितने ट्रक "शुभकामनाएं" आज इनके जन्मदिन आप सबसे एकत्र होंगीं उसके लिए ट्रक चालक जो ब्रिगेडियर भी हैं तैयार हैं तुरंत रवाना करने को ये चालक है {१}: महाशक्ति {२} :बवाल {३} :विजय तिवारी " किसलय " {४} दीपक 'मशाल '
आप शुभकामनाएं लिख कर नीचे कमेन्ट बाक्स में डाल दीजिये ताकि समय रहते आपकी भावनाएं संबंधितों को भेजी जा सकें ........ हमारी जबलपुर-ब्रिगेड उनके प्रति हार्दिक शुभकामाएं व्यक्त करती है।
नोट- जन्मदिन के उत्साह में, पंकज भाई की जगह उनके ज्येष्ठ भ्राता श्री संजय भाई की फोटो लग गई थी, जोश में होश आने पर इसे ठीक कर दिया गया है। चित्र के अनुसार से पंकज भाई की बधाई संजय भाई के खाते मे जा रही थी। :)
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स्मृति गीत: तुम जाकर भी / गयी नहीं हो... संजीव 'सलिल'
स्मृति गीत:
पूज्य मातुश्री स्व. शांतिदेवी की प्रथम बरसी पर-
संजीव 'सलिल'
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
बरस हो गया
तुम्हें न देखा.
मिति न किंचित
स्मृति रेखा.
प्रतिदिन लगता
टेर रही हो.
देर हुई, पथ
हेर रही हो.
गोदी ले
मुझको दुलरातीं.
मैया मेरी
बसी यहीं हो.
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
सच घुटने में
पीर बहुत थी.
लेकिन तुममें
धीर बहुत थी.
डगर-मगर उस
भोर नहाया.
प्रभु को जी भर
भोग लगाया.
खाई न औषधि
धरे कहीं हो.
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
गिरी, कँपा
सारा भू मंडल.
युग सम बीता
पखवाडा-पल.
आँख बोलती
जिव्हा चुप्प थी.
जीवन आशा
हुई गुप्प थी.
नहीं रहीं पर
रहीं यहीं हो
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
पूज्य मातुश्री स्व. शांतिदेवी की प्रथम बरसी पर-
संजीव 'सलिल'
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
बरस हो गया
तुम्हें न देखा.
मिति न किंचित
स्मृति रेखा.
प्रतिदिन लगता
टेर रही हो.
देर हुई, पथ
हेर रही हो.
गोदी ले
मुझको दुलरातीं.
मैया मेरी
बसी यहीं हो.
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
सच घुटने में
पीर बहुत थी.
लेकिन तुममें
धीर बहुत थी.
डगर-मगर उस
भोर नहाया.
प्रभु को जी भर
भोग लगाया.
खाई न औषधि
धरे कहीं हो.
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
गिरी, कँपा
सारा भू मंडल.
युग सम बीता
पखवाडा-पल.
आँख बोलती
जिव्हा चुप्प थी.
जीवन आशा
हुई गुप्प थी.
नहीं रहीं पर
रहीं यहीं हो
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
23 नव॰ 2009
शोकगीत: नाथ मुझे क्यों / किया अनाथ? संजीव 'सलिल'
पूज्य मातुश्री स्व. शांति देवि जी की प्रथम बरसी पर शोकगीत:
नाथ मुझे क्यों / किया अनाथ?
संजीव 'सलिल'
नाथ ! मुझे क्यों
किया अनाथ?...
*
छीन लिया क्यों
माँ को तुमने?
कितना तुम्हें
मनाया हमने?
रोग मिटा कर दो
निरोग पर-
निर्मम उन्हें
उठाया तुमने.
करुणासागर!
दिया न साथ.
नाथ ! मुझे क्यों
किया अनाथ?...
*
मैया तो थीं
दिव्य-पुनीता.
मन रामायण,
तन से गीता.
कर्तव्यों को
निश-दिन पूजा.
अग्नि-परीक्षा
देती सीता.
तुम्हें नवाया
निश-दिन माथ.
नाथ ! मुझे क्यों
किया अनाथ?...
*
हरी! तुमने क्यों
चाही मैया?
क्या अब भी
खेलोगे कैया?
दो-दो मैया
साथ तुम्हारे-
हाय! डुबा दी
क्यों फिर नैया?
उत्तर दो मैं
जोडूँ हाथ.
नाथ ! मुझे क्यों
किया अनाथ?...
*
नाथ मुझे क्यों / किया अनाथ?
संजीव 'सलिल'
नाथ ! मुझे क्यों
किया अनाथ?...
*
छीन लिया क्यों
माँ को तुमने?
कितना तुम्हें
मनाया हमने?
रोग मिटा कर दो
निरोग पर-
निर्मम उन्हें
उठाया तुमने.
करुणासागर!
दिया न साथ.
नाथ ! मुझे क्यों
किया अनाथ?...
*
मैया तो थीं
दिव्य-पुनीता.
मन रामायण,
तन से गीता.
कर्तव्यों को
निश-दिन पूजा.
अग्नि-परीक्षा
देती सीता.
तुम्हें नवाया
निश-दिन माथ.
नाथ ! मुझे क्यों
किया अनाथ?...
*
हरी! तुमने क्यों
चाही मैया?
क्या अब भी
खेलोगे कैया?
दो-दो मैया
साथ तुम्हारे-
हाय! डुबा दी
क्यों फिर नैया?
उत्तर दो मैं
जोडूँ हाथ.
नाथ ! मुझे क्यों
किया अनाथ?...
*
22 नव॰ 2009
सलीम खान और मियाँ केरानवी ये देश तुम जैसों की वज़ह से बँट नहीं सकता
आज तक की सबसे बेहतरीन पोष्ट राज तंत्र पर है
कितना भी तोड़ने की कोशिश करो थक जाओगे "माँ-भारती " तुम्हारे नापाक इरादों को अंजाम तक नहीं पहुँचाने देगी .
उसे ज़रूर देखना मेरे बच्चो तुम गुमराह हो लौट आओ किताबों में न तो अल्लाह को लिखा जा सकता न ही भगवान को सब यकीनन एक ही हैं. तुम जिस अल्लाह की बात करते हो उसे मैं भाषा में शब्द-संज्ञा की वज़ह से भगवान कहता हूँ. जो अनादी है अनंत है अभेद्य है उसे न तो परिभाषित कर पाया है न कर पाएगा. इस लिए सिर्फ प्रेम करो मुदित रहो मुदिता के अवसर पाओ अवसर दो यही कुरआन और वेदों का मूल तत्व है. परम पिता को पहचानने के लिए खुद को जानना ज़रूरी है. खुद को जानने के लिए सबको पहचानना ज़रूरी है गैर ज़रूरी है कुतर्क करना वो किताबें जो दिमाग पर नकारात्मकता की पालिश करें उनको संदूकों में ही रखना बेहतर है. उनको ताबूती-दिमागों में मत डालो . मेरे गुरु स्वामी शुद्दानंद नाथ ने कहा है "प्रेम ही संसार की नींव है..." इस सचाई को तुम भी जानते हो तो क्यों अधकचरी ज्ञान की पोटली हर दिन खोल रहे हो अल्लाह के किस सन्देश में कहाँ लिखा है की अपने पिता की तारीफ़ में किसी और के पिता को गालियाँ दो मैं तुमको इग्नोर नहीं करूंगा तुम को उस सीमा तक घसीटना है मुझे जहां से तुम्हारी सच्ची पावन सोच शुरू होती है. अल्लाह-मालिक खुदाहाफ़िज़
कितना भी तोड़ने की कोशिश करो थक जाओगे "माँ-भारती " तुम्हारे नापाक इरादों को अंजाम तक नहीं पहुँचाने देगी .
उसे ज़रूर देखना मेरे बच्चो तुम गुमराह हो लौट आओ किताबों में न तो अल्लाह को लिखा जा सकता न ही भगवान को सब यकीनन एक ही हैं. तुम जिस अल्लाह की बात करते हो उसे मैं भाषा में शब्द-संज्ञा की वज़ह से भगवान कहता हूँ. जो अनादी है अनंत है अभेद्य है उसे न तो परिभाषित कर पाया है न कर पाएगा. इस लिए सिर्फ प्रेम करो मुदित रहो मुदिता के अवसर पाओ अवसर दो यही कुरआन और वेदों का मूल तत्व है. परम पिता को पहचानने के लिए खुद को जानना ज़रूरी है. खुद को जानने के लिए सबको पहचानना ज़रूरी है गैर ज़रूरी है कुतर्क करना वो किताबें जो दिमाग पर नकारात्मकता की पालिश करें उनको संदूकों में ही रखना बेहतर है. उनको ताबूती-दिमागों में मत डालो . मेरे गुरु स्वामी शुद्दानंद नाथ ने कहा है "प्रेम ही संसार की नींव है..." इस सचाई को तुम भी जानते हो तो क्यों अधकचरी ज्ञान की पोटली हर दिन खोल रहे हो अल्लाह के किस सन्देश में कहाँ लिखा है की अपने पिता की तारीफ़ में किसी और के पिता को गालियाँ दो मैं तुमको इग्नोर नहीं करूंगा तुम को उस सीमा तक घसीटना है मुझे जहां से तुम्हारी सच्ची पावन सोच शुरू होती है. अल्लाह-मालिक खुदाहाफ़िज़
21 नव॰ 2009
हिंदी सबके मन बसी -आचार्य संजीव 'सलिल'
हिंदी सबके मन बसी
आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा
हिंदी भारत भूमि के, जन-गण को वरदान.
हिंदी से ही हिंद का, संभव है उत्थान..
संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट.
उर्दू की प्रेमिल बहिन, हिंदी परम विशिष्ट..
हिंदी आटा माढिए, उर्दू मोयन डाल.
'सलिल' संस्कृत तेल ले, पूड़ी बने कमाल..
ईंट बने सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य.
भवन भव्य है हिंद का, हिंदी ह्रदय प्रणम्य.
संस्कृत पाली प्राकृत, हिंदी उर्दू संग.
हर भाषा-बोली लगे, भव्य लिए निज रंग..
सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप.
स्नेह पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप..
भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय.
सबसे सबका स्नेह ही, हो लेखन का ध्येय..
उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक.
भाषाएँ अगणित रखें, मन में नेह-विवेक..
भाषा बोलेन कोई भी. किन्तु बोलिए शुद्ध.
दिल से दिल तक जा सके, बनकर दूत प्रबुद्ध..
***************************
आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा
हिंदी भारत भूमि के, जन-गण को वरदान.
हिंदी से ही हिंद का, संभव है उत्थान..
संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट.
उर्दू की प्रेमिल बहिन, हिंदी परम विशिष्ट..
हिंदी आटा माढिए, उर्दू मोयन डाल.
'सलिल' संस्कृत तेल ले, पूड़ी बने कमाल..
ईंट बने सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य.
भवन भव्य है हिंद का, हिंदी ह्रदय प्रणम्य.
संस्कृत पाली प्राकृत, हिंदी उर्दू संग.
हर भाषा-बोली लगे, भव्य लिए निज रंग..
सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप.
स्नेह पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप..
भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय.
सबसे सबका स्नेह ही, हो लेखन का ध्येय..
उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक.
भाषाएँ अगणित रखें, मन में नेह-विवेक..
भाषा बोलेन कोई भी. किन्तु बोलिए शुद्ध.
दिल से दिल तक जा सके, बनकर दूत प्रबुद्ध..
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19 नव॰ 2009
नवगीत:नेह नर्मदा/मलिन हो रही --संजीव 'सलिल'
नवगीत
संजीव 'सलिल'
नेह नर्मदा
मलिन हो रही
'सलिल' बचायें...
*
स्वार्थ लहरियाँ,
लोभ मछलियाँ,
भँवर सुखों की.
डाह पंक,
वासना चोई,
दुर्गन्ध दुखों की.
संयम सहित
समन्वय साधें
विमल बनायें.
नेह नर्मदा
मलिन हो रही
'सलिल' बचायें...
*
श्वासों को
आसों की ताज़ा
प्राण वायु दें.
अपनों को
सपनों की सुखप्रद
दीर्घ आयु दें.
प्राण-दीप
प्रज्वलित दिवाली
दीप जलायें.
नेह नर्मदा
मलिन हो रही
'सलिल' बचायें...
*
मुट्ठी भर
साधन लेकिन
चाहें दिगंत हैं.
अनगढ़ पथ
डगमग पर
राहें अनंत हैं.
चलें, गिरें, उठ,
हाथ मिला, बढ़,
मंजिल पायें.
नेह नर्मदा
मलिन हो रही
'सलिल' बचायें...
*
संजीव 'सलिल'
नेह नर्मदा
मलिन हो रही
'सलिल' बचायें...
*
स्वार्थ लहरियाँ,
लोभ मछलियाँ,
भँवर सुखों की.
डाह पंक,
वासना चोई,
दुर्गन्ध दुखों की.
संयम सहित
समन्वय साधें
विमल बनायें.
नेह नर्मदा
मलिन हो रही
'सलिल' बचायें...
*
श्वासों को
आसों की ताज़ा
प्राण वायु दें.
अपनों को
सपनों की सुखप्रद
दीर्घ आयु दें.
प्राण-दीप
प्रज्वलित दिवाली
दीप जलायें.
नेह नर्मदा
मलिन हो रही
'सलिल' बचायें...
*
मुट्ठी भर
साधन लेकिन
चाहें दिगंत हैं.
अनगढ़ पथ
डगमग पर
राहें अनंत हैं.
चलें, गिरें, उठ,
हाथ मिला, बढ़,
मंजिल पायें.
नेह नर्मदा
मलिन हो रही
'सलिल' बचायें...
*
चर्चित चर्चा के अलावा प्रभावी हो रही इन चर्चाओं को देखिये
चर्चित चर्चा के अलावा प्रभावी हो रही इन चर्चाओं को देखिये तेजी से इनके ग्राफ में उठाव आ रहा है. इब इनको कोई कब तक इग्नोर करेगा शायद आप भी नहीं. हिंदी ब्लागिंग के लिए ज़रूरी है कि जो करें गंभीर हो कर करें चर्चा टिप्पणी,लेखन इसमें सब कुछ शामिल है. आभासी दुनिया में जहां भी कहीं विस्तृत सोच का अभाव रहा तो ज़रूर तय है हिंदी चिट्ठाकारिता के बुरे दिन शुरू होने. वैसे हर गलत काम का विरोध करना बेहद ज़रूरी है इसमें किसी को किसी से नातेदारी निभाने की कोई ज़रुरत नहीं अरे जो गलत है सो गलत है जैसा यदि ब्लॉग का उपयोग सलीम खान ब्रांड दीमकें कुंठा-निकालने के लिए करें तो इसका विरोध न कर उसे इग्नोर करने की सलाह देने वालों को मेरी सलाह है कि नकारात्मकता को समूल नष्ट करनें का प्रयास खुलकर किया जाए दूसरी ओर जो लेखन आपकी दृष्टी में उत्तम है अवश्य सबके सामने लाएं इन तीन चर्चात्मक चिट्ठों ने सबको जोड़ा है विचार और तरीका सहज है. मुन्ना भाई तो अदभुत शैली की वज़ह से प्रभावी बन रहा.... है!
रिफ्रेश महाशक्ति जी का ब्रिगेड में स्वागत है. जबलपुर ब्रिगेड ने तय किया है इनका विवाह जबलपुर में तय कराया जावेगा कोकास जी की जनकपुरी भी यहाँ है
रिफ्रेश महाशक्ति जी का ब्रिगेड में स्वागत है. जबलपुर ब्रिगेड ने तय किया है इनका विवाह जबलपुर में तय कराया जावेगा कोकास जी की जनकपुरी भी यहाँ है
तेवरी के तेवर : दिल ने हरदम चाहे फूल. - संजीव 'सलिल'
दिल ने हरदम चाहे फूल.
पर दिमाग ने बोये शूल..
मेहनतकश को कहें गलत.
अफसर काम न करते भूल..
बहुत दोगली है दुनिया
तनिक न भाते इसे उसूल..
पैर मत पटक नाहक तू
सर जा बैठे उड़कर धूल..
बने तीन के तेरह कब?
डूबा दिया अपना धन मूल..
मँझधारों में विमल 'सलिल'
गंदा करते हम जा कूल..
धरती पर रख पैर जमा
'सलिल' न दिवास्वप्न में झूल..
****************
पर दिमाग ने बोये शूल..
मेहनतकश को कहें गलत.
अफसर काम न करते भूल..
बहुत दोगली है दुनिया
तनिक न भाते इसे उसूल..
पैर मत पटक नाहक तू
सर जा बैठे उड़कर धूल..
बने तीन के तेरह कब?
डूबा दिया अपना धन मूल..
मँझधारों में विमल 'सलिल'
गंदा करते हम जा कूल..
धरती पर रख पैर जमा
'सलिल' न दिवास्वप्न में झूल..
****************
16 नव॰ 2009
चुग्गा-दाना और जबलपुर
कोना कोना याद आता है मुझे मेरा शहर हर वो लोग जो जन्म-भूमि से दूर जाकर याद करते है अपना शहर को ठीक उसी तरह जैसे दाने-चुग्गे की व्यवस्था करते पंछी जिन्हें याद आता है अपना घौंसला
भुलाए नहीं भूलता.तुम्हें मेरे शहर याद आते हो मेरे शहर तब जब देर शाम आफिस से लौटता हूँ अपनी नहीं सी नहीलगती ये शाम यहाँ की शाम में वो बात कहाँ इस शाम सिर्फ दादा जी से बात होती है किन्तु उनका चेहरा नहीं देख पाता हूँ. कालेज से लौटते दादाजी की फरमाइशें गुरु की मनुहार आर्ची की पुकार सब कुछ भूल नहीं पा रहा हूँ.मुझे खीचते चचेरे भाई-बहन भैया ये ला दो वो कर दो......मम्मी से यह कह कर की दोस्तों के साथ जा रहा हूँ एक घंटे में आने का वादा कर तीन घंटे तक निरुद्देश्य घुमाता शहर सदर,मालवीय चौक,इंजीनियरिंग-कालेज,ग्वारीघाट, तेवर,भेडाघाट,बरगी-बाँध,सब कुछ खूब याद है मुझे . वो चाचा की कवि गोष्ठियां,आभास के लिए एस एम् एस कैम्पेनिग, जी हाँ सारा जबलपुर जैसे अपना घर हो निर्भीक होकर घूमते मित्र बिखर गए हैं महानगरों में आलीशान संस्थानों में चुग्गे की व्यवस्था में जुटे हैं. मेरी तरह विदेशों में भी......... घर में बुजुर्ग आँखें हमें देखतीं हैं शायद पथराई सी आँखें यही कहलातीं हैं न ....? उस दिन पूरे चार घंटे सेल फोन पर सुनाया बावरे-फकीरा लांचिंग जश्न पापा ने काश लाइव देख पाता किन्तु चुग्गे-दाने के इंतज़ाम के लिए कुछ तो छूटता ही है वो कुछ जिसे कहतें है घोंसला शायद मेरा भी घोंसला ही छूटा है. आज समझा की क्यों हूक भर के रोतीं हैं बेटियाँ जब छोड़तीं हैं पीहर .....
14 नव॰ 2009
नवोदित ब्रिगेडियर अंकुर का स्वागत है
जबलपुर ब्रिगेड में आपका का स्वागत है, अंकुर मेरा भतीजा है मेरी ब्लागिंग को देख बंगलूरू में बतौर आई० टी० प्रोफेशनल काम कर रहे अंग्रेजी ब्लॉग "Virgin April" बना लिया . अब अंकुर शीघ्र ही हिन्दी ब्लागिंग में अंगुलियाँ आज़माएंगें जबलपुर-ब्रिगेड के इस नवोदित ब्रिगेडियर का स्वागत है
तेवरी : ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव. --संजीव 'सलिल'
तेवरी : संजीव 'सलिल'
ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव.
सस्ता हुआ नमक का भाव..
मँझधारों-भँवरों को पार
किया, किनारे डूबी नाव..
सौ चूहे खाने के बाद
हुआ अहिंसा का है चाव..
ताक़तवर के चूम कदम
निर्बल को दिखलाया ताव..
ठण्ड भगाई नेता ने.
जला झोपडी, बना अलाव..
डाकू तस्कर चोर खड़े.
मतदाता क्या करे चुनाव..
नेता रावण जन सीता
कैसे होगा 'सलिल' निभाव?.
***********
ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव.
सस्ता हुआ नमक का भाव..
मँझधारों-भँवरों को पार
किया, किनारे डूबी नाव..
सौ चूहे खाने के बाद
हुआ अहिंसा का है चाव..
ताक़तवर के चूम कदम
निर्बल को दिखलाया ताव..
ठण्ड भगाई नेता ने.
जला झोपडी, बना अलाव..
डाकू तस्कर चोर खड़े.
मतदाता क्या करे चुनाव..
नेता रावण जन सीता
कैसे होगा 'सलिल' निभाव?.
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नवगीत: दवा ज़हर की/सिर्फ ज़हर है... संजीव 'सलिल'
नवगीत:
संजीव 'सलिल'
दवा ज़हर की
सिर्फ ज़हर है...
*
विश्वासों को
तजकर दुनिया
सीख-सिखाती तर्क.
भुला रही
असली नकली में
कैसा, क्या है फर्क?
अमृत सागर सुखा
पूछती कहाँ खो गयी
हर्ष-लहर है...
*
राष्ट्र भूलकर
महाराष्ट्र की
चिंता करता राज.
असल नहीं, अब
हमें असल से
ज्यादा प्यारा ब्याज.
प्रकृति पुत्र है,
प्रकृति का शोषक
ढाता रोज कहर है....
*
दुनिया पूज रही
हिंदी को.
हमें न तनिक सुहाती.
परदेशी भाषा
अन्ग्रेज़ी हमको
'सलिल' लुभाती.
लिखीं हजारों गजल
न लेकिन हमको
ज्ञात बहर है...
*****************
संजीव 'सलिल'
दवा ज़हर की
सिर्फ ज़हर है...
*
विश्वासों को
तजकर दुनिया
सीख-सिखाती तर्क.
भुला रही
असली नकली में
कैसा, क्या है फर्क?
अमृत सागर सुखा
पूछती कहाँ खो गयी
हर्ष-लहर है...
*
राष्ट्र भूलकर
महाराष्ट्र की
चिंता करता राज.
असल नहीं, अब
हमें असल से
ज्यादा प्यारा ब्याज.
प्रकृति पुत्र है,
प्रकृति का शोषक
ढाता रोज कहर है....
*
दुनिया पूज रही
हिंदी को.
हमें न तनिक सुहाती.
परदेशी भाषा
अन्ग्रेज़ी हमको
'सलिल' लुभाती.
लिखीं हजारों गजल
न लेकिन हमको
ज्ञात बहर है...
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12 नव॰ 2009
जबलपुर-ब्रिगेड का सम्मान स्वीकारिये चर्चा कार -मंडल
जीतेन्द्र चौधरी, समीरलाल,आलोक कुमार ,सृजन शिल्पी,रविरतलामी, विपुल जैन, तुषार जोशी, अभय तिवारी, पंकज बेंगाणी, संजय बेंगाणी, देबाशीष, राकेश खण्डेलवाल, अतुल अरोरा, तरुण, मनीष कुमार, रचना बजाज , आशीष श्रीवास्तव, सागर चन्द नाहर, कविता वाचक्नवी, सुजाता, मीनाक्षी, नीलिमा,मसिजीवी, संजय तिवारी, रमन कौल, शिवकुमार मिश्र, कुश, विवेक सिंह और अनूप शुक्ल । गिरिराज जोशी (जिनकी तस्वीर नहीं मिली )सभी के लिए साधू-साधू कहना ज़रूरी है .
पांच वर्षों से मुसलसल जारी इस कार्य को सराहना होगा. विभिन्न प्रकार के ब्लाग्स की एक स्थान पर चर्चा कर मंडली ने हिन्दी चिट्ठाकारिता को संकलकों की तरह ही मदद दी है. इसे नकारना ठीक न होगा.
किन्तु आज कल कुछ कम ही लोग लिख रहे हैं हो सकता है कि उनकी अपनी विवशताएँ हो किन्तु इस बात का अर्थ ये न हो कि ये एक जुट नहीं है. मैंने पिछले 5 वर्षों की पुरानी चर्चाएँ देखीं कहीं येसा लगा नहीं कि अपने समूह की ही चर्चा की हो किन्तु पिछले कुछ दिनों से चर्चा मंडली पर आरोप भी लग रहा है कि कुछ चुनिन्दा चित्ते ही शामिल किए जा रहे है. किन्तु मेरा मत है कि "यह श्रम साध्य कार्य है एक व्यक्ति कितने चिट्ठों को बांच सकता है जो हो रहा है भले ही कम है किन्तु बुरा या तीखी आलोचना का विषय कदापि नहीं ."
- फिर भी मंडली पर दृष्टिकोण व्यापक होने का आरोप लगाया गया मित्रों शिकायत कर्ता पुराने सन्दर्भों को देखें तो पता चलेगा कि मंडली की सोच . व्यापक है भी पिछले दिनों नए चिट्ठाकारों पर एक प्रभावी चर्चा देखी तो यह आरोप खारिज करने योग्य है .
२००५ से जारी इस सार्थक सफ़र में शामिल सभी को जबलपुर ब्रिगेड का साधुवाद
(फोटो साभारएवं लिंक :फुरसतिया जी)
10 नव॰ 2009
तेवरी : मार हथौडा, तोड़ो मूरत. --संजीव 'सलिल'
मार हथौडा, तोड़ो मूरत.
बदलेगी तब ही यह सूरत..
जिसे रहनुमा माना हमने
करी देश की उसने दुर्गत..
आरक्षित हैं कौए-बगुले
कोयल-राजहंस हैं रुखसत..
तिया सती पर हम रसिया हों.
मन पाले क्यों कुत्सित चाहत?.
खो शहरों की चकाचौंध में
किया गाँव का बेड़ा गारत..
क्षणजीवी सुख मोह रहा है.
रुचे न शाश्वत-दिव्य विरासत..
चलभाषों की चलाचली है.
'सलिल' न कासिद और नहीं ख़त..
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बदलेगी तब ही यह सूरत..
जिसे रहनुमा माना हमने
करी देश की उसने दुर्गत..
आरक्षित हैं कौए-बगुले
कोयल-राजहंस हैं रुखसत..
तिया सती पर हम रसिया हों.
मन पाले क्यों कुत्सित चाहत?.
खो शहरों की चकाचौंध में
किया गाँव का बेड़ा गारत..
क्षणजीवी सुख मोह रहा है.
रुचे न शाश्वत-दिव्य विरासत..
चलभाषों की चलाचली है.
'सलिल' न कासिद और नहीं ख़त..
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8 नव॰ 2009
नव गीत : शहनाई बज रही/शहर में मुखिया आये... संजीव 'सलिल'
नव गीत
संजीव 'सलिल'
शहनाई बज रही
शहर में मुखिया आये...
*
जन-गण को कर दूर
निकट नेता-अधिकारी.
इन्हें बनायें सूर
छिपाकर कमियाँ सारी.
सबकी कोशिश
करे मजूरी
भूखी सुखिया
फिर भी गाये.
शहनाई बज रही
शहर में मुखिया आये...
*
है सच का आभास
कर रहे वादे झूठे.
करते यही प्रयास
वोट जन गण से लूटें.
लोकतंत्र की
लख मजबूरी,
लोभतंत्र
दुखिया पछताये.
शहनाई बज रही
शहर में
मुखिया आये...
*
आये-गये अखबार रँगे,
रेला-रैली में.
शामिल थे बटमार
कर्म-चादर मैली में.
अंधे देखें,
बहरे सुन,
गूंगे बोलें,
हम चुप रह जाएँ.
शहनाई बज रही
शहर में
मुखिया आये...
*
संजीव 'सलिल'
शहनाई बज रही
शहर में मुखिया आये...
*
जन-गण को कर दूर
निकट नेता-अधिकारी.
इन्हें बनायें सूर
छिपाकर कमियाँ सारी.
सबकी कोशिश
करे मजूरी
भूखी सुखिया
फिर भी गाये.
शहनाई बज रही
शहर में मुखिया आये...
*
है सच का आभास
कर रहे वादे झूठे.
करते यही प्रयास
वोट जन गण से लूटें.
लोकतंत्र की
लख मजबूरी,
लोभतंत्र
दुखिया पछताये.
शहनाई बज रही
शहर में
मुखिया आये...
*
आये-गये अखबार रँगे,
रेला-रैली में.
शामिल थे बटमार
कर्म-चादर मैली में.
अंधे देखें,
बहरे सुन,
गूंगे बोलें,
हम चुप रह जाएँ.
शहनाई बज रही
शहर में
मुखिया आये...
*
7 नव॰ 2009
भोजपुरी दोहे: आचार्य संजीव 'सलिल'
भोजपुरी दोहे:
आचार्य संजीव 'सलिल'
कइसन होखो कहानी, नहीं साँच को आँच.
कनके संकर सम पूजहिं, ठोकर खाइल कांच..
कतने घाटल के पियल, पानी- बुझल न प्यास.
नेह नरमदा घाट चल, रहल न बाकी आस..
गुन अवगुन कम- अधिक बा, ऊँच न कोइ नीच.
मिहनत श्रम शतदल कमल, मोह-वासना कीच..
नेह-प्रेम पैदा कइल, सहज-सरल बेवहार.
साँझा सुख-दुःख बँट गइल, हर दिन बा तिवहार..
खूबी-खामी से बनल, जिनगी के पिहचान.
धुप-छाँव सम छनिक बा, मन अउर अपमान..
सहारण में जिनगी भयल, कुंठा-दुःख-संत्रास.
केई से मत कहब दुःख, सुन करिहैं उपहास..
फुनवा के आगे पडल, चीठी के रंग फीक.
सायर सिंह सपूत तो, चलल तोड़ हर लीक..
बेर-बेर छटनी क द स, हरदम लूट-खसोट.
दुर्गत भयल मजूर के, लगल चोट पर चोट..
दम नइखे दम के भरम, बिटवा भयल जवान.
एक कम दू खर्च के, ऊँची भरल उडान..
*******************
आचार्य संजीव 'सलिल'
कइसन होखो कहानी, नहीं साँच को आँच.
कनके संकर सम पूजहिं, ठोकर खाइल कांच..
कतने घाटल के पियल, पानी- बुझल न प्यास.
नेह नरमदा घाट चल, रहल न बाकी आस..
गुन अवगुन कम- अधिक बा, ऊँच न कोइ नीच.
मिहनत श्रम शतदल कमल, मोह-वासना कीच..
नेह-प्रेम पैदा कइल, सहज-सरल बेवहार.
साँझा सुख-दुःख बँट गइल, हर दिन बा तिवहार..
खूबी-खामी से बनल, जिनगी के पिहचान.
धुप-छाँव सम छनिक बा, मन अउर अपमान..
सहारण में जिनगी भयल, कुंठा-दुःख-संत्रास.
केई से मत कहब दुःख, सुन करिहैं उपहास..
फुनवा के आगे पडल, चीठी के रंग फीक.
सायर सिंह सपूत तो, चलल तोड़ हर लीक..
बेर-बेर छटनी क द स, हरदम लूट-खसोट.
दुर्गत भयल मजूर के, लगल चोट पर चोट..
दम नइखे दम के भरम, बिटवा भयल जवान.
एक कम दू खर्च के, ऊँची भरल उडान..
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6 नव॰ 2009
बवाल की चट-पट (मुस्लिम धोखेबाज़ होते हैं.....)
चट :- मुस्लिम धोखेबाज़ होते हैं (ब्लौगवाणी पर एक ख़बर)
पट:- भई, ये तो बाबा आदम के ज़माने से साबित है, कमाल है ! आप तक ख़बर अब पहुँच रही है मियाँ ?
पट:- भई, ये तो बाबा आदम के ज़माने से साबित है, कमाल है ! आप तक ख़बर अब पहुँच रही है मियाँ ?
5 नव॰ 2009
तेवरी: मार हथौडा, तोड़ो मूरत. -आचार्य संजीव 'सलिल'
तेवरी
आचार्य संजीव 'सलिल'
मार हथौडा, तोड़ो मूरत.
बदलेगी तब ही यह सूरत..
जिसे रहनुमा मन हमने
करी देश की उसने दुर्गत..
आरक्षित हैं कौए-बगुले
कोयल-राजहंस हैं रुखसत..
तिया सती पर हम रसिया हों.
मन पाले क्यों कुत्सित चाहत?.
खो शहरों की चकाचौंध में
किया गाँव का बेड़ा गारत..
क्षणजीवी सुख मोह रहा है.
रुचे न शाश्वत-दिव्य विरासत..
चलभाषों की चलाचली है.
'सलिल' न कासिद और नहीं ख़त..
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आचार्य संजीव 'सलिल'
मार हथौडा, तोड़ो मूरत.
बदलेगी तब ही यह सूरत..
जिसे रहनुमा मन हमने
करी देश की उसने दुर्गत..
आरक्षित हैं कौए-बगुले
कोयल-राजहंस हैं रुखसत..
तिया सती पर हम रसिया हों.
मन पाले क्यों कुत्सित चाहत?.
खो शहरों की चकाचौंध में
किया गाँव का बेड़ा गारत..
क्षणजीवी सुख मोह रहा है.
रुचे न शाश्वत-दिव्य विरासत..
चलभाषों की चलाचली है.
'सलिल' न कासिद और नहीं ख़त..
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2 नव॰ 2009
ब्रिगेडियर-बवाल की चट-पट
चट:- शैख़ ने मस्जिद बना, मिस्मार बुतख़ाना किया !
पट:- तब तो एक सूरत भी थी, अब साफ़ वीराना किया !!
--- नामालूम
शब्दार्थ:-बुतख़ाना :- मंदिर, मिस्मार :- बर्बाद
बवाल की इस पहली पोष्ट के लिए उनका हार्दिक आभार "समस्या-पूर्ती" के उदाहरण के साथ आपके लिए ज़रूरी सूचना यह है कि आप सभी का इंतज़ार यहां भी है" काव्य पहेली"
1 नव॰ 2009
हरित-क्रांति
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