आज की रचना:
नवगीत
संजीव 'सलिल'
फेंक अबीरा,
गाओ कबीरा,
भुज भर भेंटो...
*
भूलो भी तहजीब
विवश हो मुस्काने की.
देख पराया दर्द,
छिपा मुँह हर्षाने की.
घिसे-पिटे
जुमलों का
माया-जाल समेटो.
फेंक अबीरा,
गाओ कबीरा,
भुज भर भेंटो...
*
फुला फेंफड़ा
अट्टहास से
गगन गुंजा दो.
बैर-परायेपन की
बंजर धरा कँपा दो.
निजता का
हर ताना-बाना
तोड़-लपेटो.
फेंक अबीरा,
गाओ कबीरा,
भुज भर भेंटो...
*
बैठ चौंतरे पर
गाओ कजरी
दे ताली.
कोई पडोसन भौजी हो,
कोई हो साली.
फूहड़ दूरदर्शनी रिश्ते
'सलिल' न फेंटो. .
फेंक अबीरा,
गाओ कबीरा,
भुज भर भेंटो...
*
मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
31 अक्तू॰ 2009
बेहतरीन मोमिन बवाल ने सम्हाली ब्रिगेड
____________________________________________________
ब्रिगेडियर दीपक मशाल किसलय जी शरद जी दिव्य नर्मदा,समीर भाई के बाद चच्चा लुकमान के शागिर्द ज़नाब बवाल हमारे भी का एक मात्र बेहतरीन मोमिन दोस्त बतौर ब्रिगेडियर "जबलपुर ब्रिगेड" में शामिल हो गए हई. उनका हरे भरे हर्फ़ों से इस्तकबाल है.....!!
____________________________________________________
ब्रिगेडियर दीपक मशाल किसलय जी शरद जी दिव्य नर्मदा,समीर भाई के बाद चच्चा लुकमान के शागिर्द ज़नाब बवाल हमारे भी का एक मात्र बेहतरीन मोमिन दोस्त बतौर ब्रिगेडियर "जबलपुर ब्रिगेड" में शामिल हो गए हई. उनका हरे भरे हर्फ़ों से इस्तकबाल है.....!!
____________________________________________________
30 अक्तू॰ 2009
नवगीत: पीले पत्तों की/पौ बारह, संजीव 'सलिल'
आज का गीत:
संजीव 'सलिल'
पीले पत्तों की
पौ बारह,
हरियाली रोती...
*
समय चक्र
बेढब आया है,
मग ने
पग को
भटकाया है.
हार तिमिर के हाथ
ज्योत्सना
निज धीरज खोती...
*
नहीं आदमी
पद प्रधान है.
हावी शर पर
अब कमान है.
गजब!
हताशा ही
आशा की फसल
मिली बोती...
*
जुही-चमेली पर
कैक्टस ने
आरक्षण पाया.
सद्गुण को
दुर्गुण ने
जब चाहा
तब बिकवाया.
कंकर को
सहेजकर हमने
फेंक दिए मोती...
*
संजीव 'सलिल'
पीले पत्तों की
पौ बारह,
हरियाली रोती...
*
समय चक्र
बेढब आया है,
मग ने
पग को
भटकाया है.
हार तिमिर के हाथ
ज्योत्सना
निज धीरज खोती...
*
नहीं आदमी
पद प्रधान है.
हावी शर पर
अब कमान है.
गजब!
हताशा ही
आशा की फसल
मिली बोती...
*
जुही-चमेली पर
कैक्टस ने
आरक्षण पाया.
सद्गुण को
दुर्गुण ने
जब चाहा
तब बिकवाया.
कंकर को
सहेजकर हमने
फेंक दिए मोती...
*
दोहा सलिला संजीव 'सलिल'
दोहा सलिला
संजीव 'सलिल'
मन वृन्दावन में बसे, राधा-माधव नित्य.
श्वास-आस जग जानता, होती रास अनित्य..
प्यास रहे बाकी सदा, हास न बचता शेष.
तिनका-तिनका जोड़कर, जोड़ा नीड़ अशेष..
कौन किसी का है सगा?, और कौन है गैर?
'सलिल' मानते हैं सभी, अपनी-अपनी खैर..
आए हैं तो छोड़ दें, अपनी भी कुछ छाप.
समय पृष्ठ पर कर सकें, निज हस्ताक्षर आप..
धूप-छाँव सा शुभ-अशुभ, कभी न छोडे साथ.
जो दोनों को सह सके, जिए उठाकर माथ..
आत्म-दीप बालें 'सलिल', बन जाएँ विश्वात्म.
मानव बनने के लिए, आये खुद परमात्म..
सकल जगत से तिमिर हर, प्रसरित करें प्रकाश.
शब्द ब्रम्ह के उपासक, जीतें मन-आकाश..
*******************************
संजीव 'सलिल'
मन वृन्दावन में बसे, राधा-माधव नित्य.
श्वास-आस जग जानता, होती रास अनित्य..
प्यास रहे बाकी सदा, हास न बचता शेष.
तिनका-तिनका जोड़कर, जोड़ा नीड़ अशेष..
कौन किसी का है सगा?, और कौन है गैर?
'सलिल' मानते हैं सभी, अपनी-अपनी खैर..
आए हैं तो छोड़ दें, अपनी भी कुछ छाप.
समय पृष्ठ पर कर सकें, निज हस्ताक्षर आप..
धूप-छाँव सा शुभ-अशुभ, कभी न छोडे साथ.
जो दोनों को सह सके, जिए उठाकर माथ..
आत्म-दीप बालें 'सलिल', बन जाएँ विश्वात्म.
मानव बनने के लिए, आये खुद परमात्म..
सकल जगत से तिमिर हर, प्रसरित करें प्रकाश.
शब्द ब्रम्ह के उपासक, जीतें मन-आकाश..
*******************************
सलिल के दोहे - संजीव 'सलिल' -
सलिल के दोहे
- संजीव 'सलिल' -
मन वृन्दावन में बसे, राधा-माधव नित्य.
श्वास-आस जग जानता, होती रास अनित्य..
प्यास रहे बाकी सदा, हास न बचता शेष.
तिनका-तिनका जोड़कर, जोड़ा नीड़ अशेष..
कौन किसी का है सगा?, और कौन है गैर?
'सलिल' मानते हैं सभी, अपनी-अपनी खैर..
आए हैं तो छोड़ दें, अपनी भी कुछ छाप.
समय पृष्ठ पर कर सकें, निज हस्ताक्षर आप..
धूप-छाँव सा शुभ-अशुभ, कभी न छोडे साथ.
जो दोनों को सह सके, जिए उठाकर माथ..
आत्म-दीप बालें 'सलिल', बन जाएँ विश्वात्म.
मानव बनने के लिए, आये खुद परमात्म..
सकल जगत से तिमिर हर, प्रसरित करें प्रकाश.
शब्द ब्रम्ह के उपासक, जीतें मन-आकाश..
***************************
- संजीव 'सलिल' -
मन वृन्दावन में बसे, राधा-माधव नित्य.
श्वास-आस जग जानता, होती रास अनित्य..
प्यास रहे बाकी सदा, हास न बचता शेष.
तिनका-तिनका जोड़कर, जोड़ा नीड़ अशेष..
कौन किसी का है सगा?, और कौन है गैर?
'सलिल' मानते हैं सभी, अपनी-अपनी खैर..
आए हैं तो छोड़ दें, अपनी भी कुछ छाप.
समय पृष्ठ पर कर सकें, निज हस्ताक्षर आप..
धूप-छाँव सा शुभ-अशुभ, कभी न छोडे साथ.
जो दोनों को सह सके, जिए उठाकर माथ..
आत्म-दीप बालें 'सलिल', बन जाएँ विश्वात्म.
मानव बनने के लिए, आये खुद परमात्म..
सकल जगत से तिमिर हर, प्रसरित करें प्रकाश.
शब्द ब्रम्ह के उपासक, जीतें मन-आकाश..
***************************
29 अक्तू॰ 2009
ज़िंदगी
दिखाई
दे जाती है
अपने ही
घर के
झरोखे से
छत की मुंडेर
सब्जी बाज़ार
किसी दूकान
गली-पनघट
किसी मोड़ पर
या फ़िर
किसी बाग़ में
मन-भावन
सुमन जैसी
अल्हड़पन की
दहलीज़ को
पार करती
खुशियों भरी
" ज़िंदगी "
-०-
समय तुम्हारा सुधरना ज़रूरी है
समय तुम
मेरे भाग्य-चक्र को
घुमाते हो
शायद तुम मेरे अस्तित्व को
आजमाते हो.....?
चलूं आज तुम्हैं
रोकने
कलाई घडी
रोक देता हूं !
तुम मुझसे असहमत हो
मैं तुमसे
क्यों न हम
एक बार फ़िर अज़नवी बन जाएं
*****************
समय
सांसों के काफ़िले को
अपनी आज़ादी मिली है
धडकनों की अपनी राह है
फ़िर तुम्हारा हस्तक्षेप हर ओर..?
समय तुम्हारा सुधरना ज़रूरी है
भले हस्तक्षेप तुम्हारी आदत है
या फ़िर मज़बूरी है.....!
*****************
ओ समय, तुम जो भी हो
स्वतन्त्रता के भंजक नहीं हो सकते
तुमको समाज़ में रहना है
सादगी से रहो
संजीदगी से रहो
सहजता से रहो
सबके रहो
*****************
मैं जानता हूं
तुम समझदार नहीं हो
कभी कभार असरदार भी नहीं होते
तब मेरे प्रहार से बचना
मुझे तुम्हैं सुधारना आता है
मैं तुम्हारा और भाग्य का गुलाम नहीं
*****************
ओ समय, तुम जो भी हो
स्वतन्त्रता के भंजक नहीं हो सकते
तुमको समाज़ में रहना है
सादगी से रहो
संजीदगी से रहो
सहजता से रहो
सबके रहो
*****************
मैं जानता हूं
तुम समझदार नहीं हो
कभी कभार असरदार भी नहीं होते
तब मेरे प्रहार से बचना
मुझे तुम्हैं सुधारना आता है
मैं तुम्हारा और भाग्य का गुलाम नहीं
27 अक्तू॰ 2009
बन जाइए "ब्रिगेड के ब्रिगेडियर "
दुनियाँ में आप कहीं भी हों आप अगरचे जबलपुरिया हैं तो
यदि आप ब्लॉगर हैं
आप सामाजिक सरोकारी हैं
आपमें ब्लागिंग की लगन हैं
अथवा ब्लागिंग की इच्छा रखतें हैं
आपके
पास- चिंतन का घट है
आपके विचार विचार ही नहीं
"छांह दार वट है "
तो बस एक ई मेल भेजिए
बन जाइए "ब्रिगेड के ब्रिगेडियर "
यहाँ आप कुछ भी कहें धुंआधार कहें
किसी धर्म/व्यक्ति/समूह/वर्ग/वर्ण
सम्मान को बनाए रखते हुए कहें
आप का हार्दिक अभिवादन है
भवदीय
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
सिपाही वास्ते जबलपुर ब्रिगेड
girishbillore@gmail.com
26 अक्तू॰ 2009
भेडाघाट एक परिचय
जिला पुरातत्व संघ जबलपुर द्वारा पिछले दिनों एक पुस्तिका का प्रकाशन किया जिसमें भेडाघाट से संबंधित जानकारीयों का सचित्र वर्णन है मात्र १०० /- रूपए में उपलब्ध इस पुस्तिका में वो सब कुछ है जो भेडाघाट के पर्यटन के महत्त्व को उजागर करता है। अपने शोध को शब्दाकृति देकर प्रोफेसर ( डाक्टर) आर के शर्मा कन्वीनर, आई एन टी ऐ सी ऐच एवं प्रोफेसर (डाक्टर) एस एन मिश्रा तैयार इस पुस्तिका को पर्यटन विभाग का संबल भी प्राप्त हुआ है। इसे इस लिंक http://www.jabalpur.nic.in/heritage/ या यहाँ क्लिक कर देखा जा सकता है ।
25 अक्तू॰ 2009
बिन्दु-बिन्दु विचार
- सर्वत्र नकारात्मकता की घेरा बंदी
"नकारात्मकता"-का सर्वव्यापी होना के लिए घातक होता जा रहा है.... आप ही सोचिये कालांतर में जब मानवी सभ्यता बचेगी ही नहीं तो क्या सीमाएं बच सकतीं हैं अथवा धर्म संस्कृति समूह लोग अपने और अपने समूहों के संकट ग्रस्त होने का झंडा उठाए आए दिन सडकों की छाती छोलते नज़र आते हैं इनके सामने जब कोई अखबार मीडिया या चिन्तक आ जाए तो हजूर अपने आप को दुनिया का सबसे दु:खी साबित करते ये लोग अपने संकट को सर्वोपरि साबित कर हीन देते हैं । भारतीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था के सन्दर्भों का ऐनक लगा के देखिये तो लगता है की "हर छाती पीटने वाला दु:खी हो यह कदापि सच नहीं है "
________________________________________________________
________________________________________________________
- दुनिया ख़त्म होगी...? भाई हो चुकी
_________________________________________________________
आए दिन अखबार समाचार चैनल 2012 की धमकी दे दे कर विश्व को भयभीत कर रहे थे की दुनियाँ ख़त्म होने वाली है भाई दुनियाँ ख़त्म होने वाली क्या हो ही चुकी है जिसे देखिए उसकी अपनी आत्म केंद्रित दुनिया है आप किस दुनिया के खात्मे की बात की जा रही है वास्तव में दुनिया का खत्म होना तभी शुरू हो जाता है जब हम "आत्म-केंद्रित" हो उजाते हैं।
________________________________________________________
________________________________________________________
________________________________________________________
आए दिन अखबार समाचार चैनल 2012 की धमकी दे दे कर विश्व को भयभीत कर रहे थे की दुनियाँ ख़त्म होने वाली है भाई दुनियाँ ख़त्म होने वाली क्या हो ही चुकी है जिसे देखिए उसकी अपनी आत्म केंद्रित दुनिया है आप किस दुनिया के खात्मे की बात की जा रही है वास्तव में दुनिया का खत्म होना तभी शुरू हो जाता है जब हम "आत्म-केंद्रित" हो उजाते हैं।
________________________________________________________
- और अंत में
________________________________________________________
________________________________________________________
17 अक्तू॰ 2009
लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे के हैप्पी-दीपावली
________________________शापित यक्ष ________________
दीवाली के पहले गरीबी से परेशान हमारे गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे ने विचार किया इस बार लक्ष्मी माता को किसी न किसी तरह राजी कर लेंगें . सो बस सारे के सारे लोग माँ को मनाने हठ जोगियों की तरह रामपुर की भटरिया पे हो लिए जहां अक्सर वे जुआ-पत्ती खेलते रहते थे पास के कस्बे की चौकी पुलिस वाले आकर उनको पकड़ के दिवाली का नेग करते ये अलग बात है की इनके अलावा भी कई लोग संगठित रूप से जुआ-पत्ती की फड लगाते हैं..... अब आगे इस बात को जारी रखने से कोई लाभ नहीं आपको तो गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे की कहानी सुनाना ज़्यादा ज़रूरी है.
__________________________________________
तो गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम - नौखे की बात की वज़नदारी को मान कर "रामपुर की भटरिया" के बीचौं बीच जहां प्रकृति ने ऐसी कटोरी नुमा आकृति बनाई है बाहरी अनजान समझ नहीं पाता कि "वहां छुपा जा सकता है. जी हां उसी स्थान पर ये लोग पूजा-पाठ की गरज से अपेक्षित एकांतवासे में चले गए ..हवन सामग्री उठाई तो लंगड़ के हाथौं से गलती से घी ज़मींन में गिर गया . बमुश्किल जुटाए संसाधन का बेकार गिरना सभी के क्रोध का कारण बन गया . कल्लू ने तो लंगड़ को एक हाथ रसीद भी कर दिया ज़मीं के नीचे घी रिसता हुआ उस जगह पहुंचा जहां एक शापित-यक्ष बंधा हुआ था .उसे शाप मिला था की सबसे गरीब व्यक्ति के हाथ से गिरे घी की बूंदें तुम पर गिरेंगीं तब तुम मुक्त होगे सो मित्रों यक्ष मुक्त हुआ मुक्ति दाता लंगड़ का आभार मानने उन तक पहुंचा . यक्ष को देखते ही सारे घबरा गए कल्लू की तो घिग्घी बंध गई. किन्तु जब यक्ष की दिव्य वाणी गूंजी "मित्रो,डरो मत, तो सब की जान में जान आई.
यक्ष:तुम सभी मुझे शाप मुक्त किया बोलो क्या चाहते हो...?
मुन्ना: हमें लक्ष्मी की कृपा चाहिए उसी की साधना में थे हम .
यक्ष: ठीक है तुम सभी चलो मेरे साथ
सभी मित्र यक्ष के अनुगामी हुए पीछे पीछे चल दिए पीपल के नीचे बैठ कर यक्ष ने कहा :-"मित्रो,मैं पृथ्वी भ्रमण पर निकला था तब मैनें अपनी शक्ति से तुम्हारे गांव के ज़मींदार सेठ गरीबदास की माता से गंधर्व विवाह किया था उसी से मेरा पुत्र जन्मा है जो आगे चल के सेठ गरीबदास के नाम से जाना जाता है."
यक्ष की कथा को बडे ही ध्यान से सुन रहे चारों मित्रों के मुंह से निकला :-"तो आप ही हमारे बडे ज़मींदार हैं ?"
"हां, मैं ही हूं, घर-गिरस्ति में फ़ंस कर मुझे वापस जाने का होश ही न रहा सो मुझे मेरे स्वामी ने पन्द्र्ह अगस्त उन्नीस सौ सैतालीस रात जब भारत आज़ाद हुआ था शाप देकर "रामपुर की भटरिया में कैद कर दिया था और कहा था जब गांव का सबसे गरीब आदमी घी तेल बहाएगा और उसके छींटै तुम पर गिरेंगे तब तुम को मुक्ति-मिलेगी.
आज़ तुम सबने मुझे मुक्त किया चलो.... बताओ क्या चाहते हो ?
सभी मित्रों ने काना-फ़ूसी कर "रोटी-कपडा-मकान" मांग लिए मुक्ति दाताओं के लिये यह करना यक्ष के लिए सहज था. सो उसने माया का प्रयोग कर गाँव के ज़मींदार के घर की लाकर तिजोरी बुला कर ही उन गरीबों में बाँट दी . जाओ सुनार को ये बेच कर रूपए बना लो बराबरी से हिस्सा बांटा कर लेना और हां तुम चारों के लिए मैं हर एक के जीवन में एक बार मदद के लिए आ सकता हूं.
__________________________________________________________
उधर गांव में कुहराम मचा था. सेठ गरीब दास गरीब हो गया. पुलिस वाले एक एक से पूछताछ कर रहे थे. इनकी बारी आये सभी मित्र बोले "हम तो मजूरी से लौटे हैं." किन्तु कोई नहीं माने झुल्ला-तपासी में मिले धन को देख कर सबको जेल भेजने की तैयारी की जाने . कि लंगड़ ने झट यक्ष को याद कर लिया . यक्ष एक कार में गुबार उडाता पहुंचा और पुलिस से रौबीली आवाज़ में बोला "इनको ये रूपए मैंने इनाम के बतौर दिए हैं."ये चोर नहीं हैं.
रहा सवाल सेठ गरीब दास का सो ये तो वास्तव में गरीब हैं
हवालदार ने कहा :-सिद्ध करोगे
यक्ष: अभी लो गाँव के सचिव से गरीबी रेखा की सूची मंगाई गई जिसमें सब से उपर सूची अनुसार सबसे ऊपर सेठ गरीब दास का नाम था
सूची में जो नाम नहीं थे वोलंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे के...?
__________________________________________________________
दीवाली के पहले गरीबी से परेशान हमारे गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे ने विचार किया इस बार लक्ष्मी माता को किसी न किसी तरह राजी कर लेंगें . सो बस सारे के सारे लोग माँ को मनाने हठ जोगियों की तरह रामपुर की भटरिया पे हो लिए जहां अक्सर वे जुआ-पत्ती खेलते रहते थे पास के कस्बे की चौकी पुलिस वाले आकर उनको पकड़ के दिवाली का नेग करते ये अलग बात है की इनके अलावा भी कई लोग संगठित रूप से जुआ-पत्ती की फड लगाते हैं..... अब आगे इस बात को जारी रखने से कोई लाभ नहीं आपको तो गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे की कहानी सुनाना ज़्यादा ज़रूरी है.
__________________________________________
तो गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम - नौखे की बात की वज़नदारी को मान कर "रामपुर की भटरिया" के बीचौं बीच जहां प्रकृति ने ऐसी कटोरी नुमा आकृति बनाई है बाहरी अनजान समझ नहीं पाता कि "वहां छुपा जा सकता है. जी हां उसी स्थान पर ये लोग पूजा-पाठ की गरज से अपेक्षित एकांतवासे में चले गए ..हवन सामग्री उठाई तो लंगड़ के हाथौं से गलती से घी ज़मींन में गिर गया . बमुश्किल जुटाए संसाधन का बेकार गिरना सभी के क्रोध का कारण बन गया . कल्लू ने तो लंगड़ को एक हाथ रसीद भी कर दिया ज़मीं के नीचे घी रिसता हुआ उस जगह पहुंचा जहां एक शापित-यक्ष बंधा हुआ था .उसे शाप मिला था की सबसे गरीब व्यक्ति के हाथ से गिरे घी की बूंदें तुम पर गिरेंगीं तब तुम मुक्त होगे सो मित्रों यक्ष मुक्त हुआ मुक्ति दाता लंगड़ का आभार मानने उन तक पहुंचा . यक्ष को देखते ही सारे घबरा गए कल्लू की तो घिग्घी बंध गई. किन्तु जब यक्ष की दिव्य वाणी गूंजी "मित्रो,डरो मत, तो सब की जान में जान आई.
यक्ष:तुम सभी मुझे शाप मुक्त किया बोलो क्या चाहते हो...?
मुन्ना: हमें लक्ष्मी की कृपा चाहिए उसी की साधना में थे हम .
यक्ष: ठीक है तुम सभी चलो मेरे साथ
सभी मित्र यक्ष के अनुगामी हुए पीछे पीछे चल दिए पीपल के नीचे बैठ कर यक्ष ने कहा :-"मित्रो,मैं पृथ्वी भ्रमण पर निकला था तब मैनें अपनी शक्ति से तुम्हारे गांव के ज़मींदार सेठ गरीबदास की माता से गंधर्व विवाह किया था उसी से मेरा पुत्र जन्मा है जो आगे चल के सेठ गरीबदास के नाम से जाना जाता है."
यक्ष की कथा को बडे ही ध्यान से सुन रहे चारों मित्रों के मुंह से निकला :-"तो आप ही हमारे बडे ज़मींदार हैं ?"
"हां, मैं ही हूं, घर-गिरस्ति में फ़ंस कर मुझे वापस जाने का होश ही न रहा सो मुझे मेरे स्वामी ने पन्द्र्ह अगस्त उन्नीस सौ सैतालीस रात जब भारत आज़ाद हुआ था शाप देकर "रामपुर की भटरिया में कैद कर दिया था और कहा था जब गांव का सबसे गरीब आदमी घी तेल बहाएगा और उसके छींटै तुम पर गिरेंगे तब तुम को मुक्ति-मिलेगी.
आज़ तुम सबने मुझे मुक्त किया चलो.... बताओ क्या चाहते हो ?
सभी मित्रों ने काना-फ़ूसी कर "रोटी-कपडा-मकान" मांग लिए मुक्ति दाताओं के लिये यह करना यक्ष के लिए सहज था. सो उसने माया का प्रयोग कर गाँव के ज़मींदार के घर की लाकर तिजोरी बुला कर ही उन गरीबों में बाँट दी . जाओ सुनार को ये बेच कर रूपए बना लो बराबरी से हिस्सा बांटा कर लेना और हां तुम चारों के लिए मैं हर एक के जीवन में एक बार मदद के लिए आ सकता हूं.
__________________________________________________________
उधर गांव में कुहराम मचा था. सेठ गरीब दास गरीब हो गया. पुलिस वाले एक एक से पूछताछ कर रहे थे. इनकी बारी आये सभी मित्र बोले "हम तो मजूरी से लौटे हैं." किन्तु कोई नहीं माने झुल्ला-तपासी में मिले धन को देख कर सबको जेल भेजने की तैयारी की जाने . कि लंगड़ ने झट यक्ष को याद कर लिया . यक्ष एक कार में गुबार उडाता पहुंचा और पुलिस से रौबीली आवाज़ में बोला "इनको ये रूपए मैंने इनाम के बतौर दिए हैं."ये चोर नहीं हैं.
रहा सवाल सेठ गरीब दास का सो ये तो वास्तव में गरीब हैं
हवालदार ने कहा :-सिद्ध करोगे
यक्ष: अभी लो गाँव के सचिव से गरीबी रेखा की सूची मंगाई गई जिसमें सब से उपर सूची अनुसार सबसे ऊपर सेठ गरीब दास का नाम था
सूची में जो नाम नहीं थे वोलंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे के...?
__________________________________________________________
15 अक्तू॰ 2009
काट लूं साले कुत्तों को और खबर बन जाऊं
उस दिन शहर के अखबार समाचार पत्रों में रंगा था समाचार मेरे विरुद्ध जन शिकायतों को लेकर हंगामा, श्रीमान क के नेतृत्व में आला अधिकारीयों को ज्ञापन सौंपा गया ?नाम सहित छपे इस समाचार से मैं हताशा से भर गए उन बेईमान मकसद परस्तों को अपने आप में कोस रहा था किंतु कुछ न कर सका राज़ दंड के भय से बेचारगी का जीवन ही मेरी नियति है.
एक दिन मैं एक पत्रकार मित्र से मिला और पेपर दिखाते हुए उससे निवेदन किया -भाई,संजय इस समाचार में केवल अमुक जी का व्यक्तिगत स्वार्थ आपको समझ नहीं आया ?
आया भाई साहब किंतु , मैं क्या करुँ पापी पेट रोटी का सवाल है जो गोल-गोल तभी फूलतीं हैं जब मैं अपने घर तनखा लेकर आता हूँ…..!
तो ठीक है ऐसा करो भइयाजी,मेरी इन-इन उपलब्धियों को प्रकाशित कर दो अपने लीडिंग अखबार में !
ये कहकर मैने अपनी उपलब्धियों को गिनाया जिनको सार्वजनिक करने से कल तक शर्माते था . उनकी बात सुन कर संजय ने कहा भैयाजी,आपको इन सब काम का वेतन मिलता है ,कोई अनोखी बात कहो जो तुमने सरकारी नौकर होकर कभी की हो ?
मैं -अनोखी बात…….?
संजय ने पूछा -अरे हाँ, जिस बात को लेकर आपको सरकार ने कोई इनाम वजीफा,तमगा वगैरा दिया हो….?
भाई,मेरी प्लान की हुई योजनाओं को सरकार ने लागू किया
संजय:-इस बात का प्रमाण,है कोई !
मैं:-……………..?
बोलो जी कोई प्रमाण है ?
नहीं न तो फ़िर क्या करुँ , कैसे आपकी तारीफ़ छापूं भैया जी न संजय तारीफ़ मत छापो मुझे सचाई उजागर करने दो आप मेरा वर्जन लेलो जी ये सम्भव नहीं है,मित्र,आप ऐसा करो कोई ज़बरदस्त काम करो फ़िर मैं आपके काम को प्राथमिकता से छाप दूंगा जबरदस्त काम …..?
गूगल जी से साभार
संजय :अरे भाई,कुत्ता आदमीं को काटता है कुत्ते की आदत है,ये कोई ख़बर है क्या ?,मित्र जब आदमी कुत्ते को काटे तो ख़बर बनातीं है .तुम ऐसा ही कुछ कर डालो यह घटना मेरे जीवन की अनोखी घटना थी जीवन का यही टर्निंग पाइंट था मैं निकल पडा कुत्तों की तलाश में . पग पग पर कुत्ते ही मिले सोचा काट लूं साले कुत्तों को और खबर बन जाऊं को किंतु मन बार बार सिर्फ़ एक ही बात कह रहा था "भई तुम तो आदमीयत मत तजो "
एक दिन मैं एक पत्रकार मित्र से मिला और पेपर दिखाते हुए उससे निवेदन किया -भाई,संजय इस समाचार में केवल अमुक जी का व्यक्तिगत स्वार्थ आपको समझ नहीं आया ?
आया भाई साहब किंतु , मैं क्या करुँ पापी पेट रोटी का सवाल है जो गोल-गोल तभी फूलतीं हैं जब मैं अपने घर तनखा लेकर आता हूँ…..!
तो ठीक है ऐसा करो भइयाजी,मेरी इन-इन उपलब्धियों को प्रकाशित कर दो अपने लीडिंग अखबार में !
ये कहकर मैने अपनी उपलब्धियों को गिनाया जिनको सार्वजनिक करने से कल तक शर्माते था . उनकी बात सुन कर संजय ने कहा भैयाजी,आपको इन सब काम का वेतन मिलता है ,कोई अनोखी बात कहो जो तुमने सरकारी नौकर होकर कभी की हो ?
मैं -अनोखी बात…….?
संजय ने पूछा -अरे हाँ, जिस बात को लेकर आपको सरकार ने कोई इनाम वजीफा,तमगा वगैरा दिया हो….?
भाई,मेरी प्लान की हुई योजनाओं को सरकार ने लागू किया
संजय:-इस बात का प्रमाण,है कोई !
मैं:-……………..?
बोलो जी कोई प्रमाण है ?
नहीं न तो फ़िर क्या करुँ , कैसे आपकी तारीफ़ छापूं भैया जी न संजय तारीफ़ मत छापो मुझे सचाई उजागर करने दो आप मेरा वर्जन लेलो जी ये सम्भव नहीं है,मित्र,आप ऐसा करो कोई ज़बरदस्त काम करो फ़िर मैं आपके काम को प्राथमिकता से छाप दूंगा जबरदस्त काम …..?
गूगल जी से साभार
संजय :अरे भाई,कुत्ता आदमीं को काटता है कुत्ते की आदत है,ये कोई ख़बर है क्या ?,मित्र जब आदमी कुत्ते को काटे तो ख़बर बनातीं है .तुम ऐसा ही कुछ कर डालो यह घटना मेरे जीवन की अनोखी घटना थी जीवन का यही टर्निंग पाइंट था मैं निकल पडा कुत्तों की तलाश में . पग पग पर कुत्ते ही मिले सोचा काट लूं साले कुत्तों को और खबर बन जाऊं को किंतु मन बार बार सिर्फ़ एक ही बात कह रहा था "भई तुम तो आदमीयत मत तजो "
11 अक्तू॰ 2009
उड़न तश्तरी ..की चिंता जायज है
उड़न तश्तरी . ये जो भी हो रहा क्या अच्छा हो रहा है?
होना तो ये था तय तो यही था
सच प्रेम ही इस संसार की नींव है इसे सलीम/जोज़फ़/कुलवंत/गिरीश जैसों की क्षमता नहीं की झुठला सकें
होना तो ये था तय तो यही था
"गौतम" ने जो चित्र प्रस्तुत किया है उससे भी ज़रूरी विषयों पर अगर हम समय जाया कर और करा रहें हैं तो ठीक है वर्ना सच हमारा मिशन सिर्फ और सिर्फ मानवता के रक्षण से सम्बंधित होना ज़रूरी है. केवल धार्मिक सिद्धांतों की पैरवी तर्क-कुतर्क /वाद प्रतिवाद / हमारे लिए गैर ज़रूरी इस चित्र के सामने.......!!
का यह चित्र आपने न देखा हो तो अपने शहर के कूड़ा बीनने वाले बच्चों को देखिए जो होटलों से फैंकी जूठन में भोजन तलाशते बच्चों को सहज देख सकतें हैं
मित्रों आप भी गौर से देखिये इस चित्र में मुझे तो सिर्फ बच्चे दिख रहें हैं और इधर भी देखिए => {यही आज का सबसे ज़रूरी विषय है }इसको आप ने नहीं पहचाना..... इस दीन के लिए ही तो देवदूत संदेशा लातें हैं. देववाणी भी इनकी ही सेवा का सन्देश देती है मेरे वेद तुम्हारी कुरान ....उसका ग्रन्थ .... इसकी बाइबल क्या कुतर्क के लिए है . फिर तुम्हारी मेरी आस्था क्या है ... जिसकी परिभाषा ही हम न जान पाए मेरी नज़र में आस्था
हम बोलतें हैं क्योंकि बोलना
जानते हैं किंतु आस्था बोलती नहीं
वाणी से हवा में ज़हर घोलती नहीं
सूखे ठूंठ पर होता है जब
बूंद बूंद भावों का छिडकाव
स्नेहिल उष्मा का पड्ता है प्रभाव
तभी होता है उसमें अंकुरण
मेरे भाई
यही तो है आस्था का प्रकरण...!!
जानते हैं किंतु आस्था बोलती नहीं
वाणी से हवा में ज़हर घोलती नहीं
सूखे ठूंठ पर होता है जब
बूंद बूंद भावों का छिडकाव
स्नेहिल उष्मा का पड्ता है प्रभाव
तभी होता है उसमें अंकुरण
मेरे भाई
यही तो है आस्था का प्रकरण...!!
सच प्रेम ही इस संसार की नींव है इसे सलीम/जोज़फ़/कुलवंत/गिरीश जैसों की क्षमता नहीं की झुठला सकें
8 अक्तू॰ 2009
आज डूबे जी के अखबार में
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ जी कल "खज़ाना" में जो कुछ लिखा था आज दुबे जी वही डूबे जी वाले के अखबार यानी नई दुनिया के जबलपुर एडीशन में आज छापा है . जो बाएँ तरफ वाली करतूत है अपने डूबेजी की है शहर भर के चंदू भाई लोग उनकी तलाश में निकले और वे अपने आप को बचाने सरे-शाम घर में जा छुपे.......! अब जब इसी बहानेकरवा चौथ की बात निकल ही चुकी है तो आज दिन भर जो भी कुछ घटा सो जानिए . एक पुरानी प्रेमिका कल्लू जी से मिली तो पता है झट उसने बच्चे से कहा -"बेटे, ये कल्लू मामा हैं प्रणाम करो इनको !"
इधर मेरी श्रीमती जी मुझसे मेरा ये वाला रूमानी ब्लॉग खोल कर कहतीं है "कह दो न इस पर जो भी लिखते हो सिर्फ मेरे लिए ही है मुझ पर केन्द्रित ही है ".......अब बताइये 45 बरस की उम्र में हम क्यों जोखिम उठाएं सच बोल कर तलाक की नौबत क्यों लायें ? इस उम्र में हम जैसों में ध्वनि-हीन संवाद करने की स्किल विकसित हो ही जाती है.क्यों उड़न तश्तरी जी सही है न ..? आप तो इस फील्ड के उधर रचना ने किसी की मूर्खताओं की मज़म्मत देख मन को लगा की सभी कुत्सिस कोशिशों के लिए एकजुट हो रहे हैं. किन्तु सच कहूं संजय बेंगाणी भाई धीरू भाई जिस तरह से टिप्पणी बोझ भगवान अल्लाह प्रभू करे ऐसे दिन किसी को न दिखाए .
क्रमश:
7 अक्तू॰ 2009
ज्ञानरंजन क्या चाहतें हैं
______________________________________________________________________________________________
ज्ञानरंजन के नाम को मानद उपाधि के लिए राजभवन से स्वीकृति न मिल सकी पहल के संपादक ज्ञानरंजन जी इस बात से न तो भौंचक हैं ओर न ही उत्तेजित जितना स्नेही साहित्यकार.इस घटना को बेहद सहजता से लिया.रानी दुर्गावती विश्व विद्यालय की प्रस्तावित मानद उपाधि सूची का हू-ब-हू अनुमोदित होकर वापस न आना कम से कम ज्ञानजी के लिए अहमियत की बात नहीं है. इस समाचार पर आज सुबह सवेरे ज्ञान जी से फोन पर संपर्क साधा तो समाचार को सहजता से लेने की बात कहते हुए ज्ञान जी ने कहा :-गिरीश अब तुम लोग ब्लागिंग की तरफ चले गए हो बेशक ब्लागिंग एक बेहतरीन विधा है किन्तु तुम को पढ़ना सुनना कई दिनों से नहीं हुआ.
हां दादा वास्तव में अखबारों के पास हम जैसों को छापने के लिए जगह नहीं है और मेरा मोहभंग भी हो गया है.
"तो तुम लोगों को सुनु पडूँ कैसे कम से कम एक बार महीने में गोष्ठी तो हो "
__________________________________________________________________________________
ज्ञान जी की इस पीढा की वज़ह से सब लोग वाकिफ हैं .... साहित्यिक-संगोष्ठीयों का अवसान, अखबारों में साहित्यकारों की [खासकर नए ] उपेक्षा ,वैकल्पिक साधनों जैसे ब्लागिंग का सर्व सुलभ न हो पाना आदि आदि .
__________________________________________________________________________________
ज्ञान जी की इस पीढा को परख कर जबलपुर के रचनाकार एकजुट तो हैं आप भी देखिए शायद आप के शहर का कोई बुजुर्ग बरगद अपनी छांह बांटने लालायित हो और आप ए.सी.की कृत्रिमता पर आसक्त हों संदेश साफ़ है ... मित्रों गोष्ठियां जारी रखिए
__________________________________________________________________________________
6 अक्तू॰ 2009
रजनीश का जन्म कहां हुआ था...?
"सलीम के इस आलेख में सलीम ने [बिना पुष्टि किए ?]ये लिखा :-"
अब हमें और आपको अर्थात सबको पता है रजनीश पैदा हुए थे|
उनका जन्म भारत के जबलपुर शहर में हुआ था
जैसे कि मेरा जन्म भारत के पीलीभीत जिले में हुआ था और आपका भी कहीं ना कहीं हुआ है अर्थात सभीमनुष्य की तरह वह भी पैदा हुए थे| उनकी माता थीं और उनके पिता भी| रजनीशबहुत ही बुद्धिमान व्यक्ति थे|
आपका उपर बोल्ड लाल रंग से लिखा वाक्य झूठा है आप अब अपने ज्ञान का पिटारा हर जगह खोलना कम करते हुए कुछ गहराअध्ययन कीजिए .
________________________________________________________________________________________________
_______________________________________________________________________________________________ _
2 अक्तू॰ 2009
2 अक्तूबर १८६९ से 2 अक्टूबर 2009 तक गांधी
गांधी एक चिंतन के सागर थे गांधी जी को केवल समझाया जाना हमारे लिए एक कष्ट कारक विषय है सच तो यह है की "मोहन दास करम चंद गांधी को " समझाने का साधन बनाने वालों से युग अब अपेक्षा कर रहा है की वे पहले खुद बापू को समझें और फिर लोगों को समझाने की कोशिश करें. महात्मा गाँधी की आत्मकथा के अलावा उनको किसी के सहारे समझने की कोशिश भी केवल बुद्धि का व्यापार माना जा सकता है.इस बात को भी नकारना गलत होगा गांधीजी - व्यक्ति नहीं, विचार यही उनके बारे में कहा सर्वोच्च सत्य है . 140 बरस बाद भी गांधी जी का महान व्यक्तित्व सब पर हावी है क्या खूबी थी उनमे दृढ़ता की मूर्ती थे बाबू किन्तु अल्पग्य उनका नाम "मज़बूरी" के साथ जोड़ते तो लगता है की हम कितने कृतघ्न हो गए .
बापू अब एक ऐसे दीप स्तम्भ होकर रह गए हैं जिसके तले घुप्प तिमिर में पल रहा है विद्रूप भारत . उसका कारण है कि बापू को जानते तो सब हैं पहचानने वाले कम हीं है.
मुझे सबसे ज़्यादा आकृष्ट करती है कि बापू के साथ केवल सत्य है जो एक बच्चा बना आगे आगे चल रहा है. सोचिये क्या आज का नेता अफसर,पत्रकार,विधि-विज्ञानी, बापू का ऐसा साथी बनाना चाहता है. कदापि नहीं .
*******************************************************************
आज सबको सिगमेंट में जीने की आदत है कहीं कोई बिहार में कोई महाराष्ट्र में तो कोई छतीसगढ़ में जी रहा है ..... कहीं कोई जाती में तो कोई धर्म में तो कोई वर्ग में ज़िंदा है. मुझे कोई नहीं मिलता "भारत" में जीने वाला. बताइये बापू किसे साथ रखगें अपने साथ .
*******************************************************************
मेरे शहर के पूर्व महापौर गांधी जयंती की पूर्व संध्या पर खबर रटाऊ केबल समाचार को इंटरव्यू दे रहें हैं कि बापू की मूर्ती न लगाए जाने का विरोध बहुत क्रांतिकारी तरीके से करते नज़र आ रहे हैं ............ बापू आपकी "अहिंसा" आपके साथ इन लोगों ने आपकी भस्मी के साथ पवित्र नदियों में विसर्जित कर दीं हैं .... आपकी सहयात्री दंडिका का दुरुपयोग ये अच्छी तरह से करना सीख गए बापूजी .
*******************************************************************
1 अक्तू॰ 2009
बाबूजी तुम हमें छोड़ कर…..!”
मेरे सपने साथ ले गए
दुख के झंडे हाथ दे गए !
बाबूजी तुम हमें छोड़ कर
नाते-रिश्ते साथ ले गए...?
काका बाबा मामा ताऊ
सब दरबारी दूर हुए..!
बाद तुम्हारे मानस नाते
ख़ुद ही हमसे दूर हुए.
अब तो घर में मैं हूँ माँ हैं
और पड़ोस में विधवा काकी
रोज़ रात कटती है भय से
नींद अल्ल-सुबह ही आती.
क्यों तुम इतना खटते थे बाबा
क्यों दरबार लगाते थे
क्यों हर एक आने वाले को
अपना मीत बताते थे
सब के सब विदा कर तुमको
तेरहीं तक ही साथ रहे
अब हम दोनों माँ-बेटी के
संग केवल संताप रहे !
दुनिया दारी यही पिताश्री
सबके मतलब के अभिवादन
बाद आपके हम माँ-बेटी
कर लेगें छोटा अब आँगन !
दुख के झंडे हाथ दे गए !
बाबूजी तुम हमें छोड़ कर
नाते-रिश्ते साथ ले गए...?
काका बाबा मामा ताऊ
सब दरबारी दूर हुए..!
बाद तुम्हारे मानस नाते
ख़ुद ही हमसे दूर हुए.
अब तो घर में मैं हूँ माँ हैं
और पड़ोस में विधवा काकी
रोज़ रात कटती है भय से
नींद अल्ल-सुबह ही आती.
क्यों तुम इतना खटते थे बाबा
क्यों दरबार लगाते थे
क्यों हर एक आने वाले को
अपना मीत बताते थे
सब के सब विदा कर तुमको
तेरहीं तक ही साथ रहे
अब हम दोनों माँ-बेटी के
संग केवल संताप रहे !
दुनिया दारी यही पिताश्री
सबके मतलब के अभिवादन
बाद आपके हम माँ-बेटी
कर लेगें छोटा अब आँगन !
सदस्यता लें
संदेश (Atom)