28 नव॰ 2011

जबलपुर समाचार


प्राथमिक शालाओं में मध्यान्ह भोजन
वितरित करने 4640 Ïक्वटल खाद्यान्न आवंटित
जबलपुर, 27 नवम्बर, 2011
            जिले की प्राथमिक शालाओं में मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन हेतु सितम्बर2011 में दर्ज छात्रों की संख्या के अनुपात में माह दिसम्बर एवं जनवरी 2012 के लिए 11 लीड समितियोंको 4 हजार 640 Ïक्वटल गेहूँ का आवंटन प्रदान कर दिया गया है।
            जिला पंचायत से जारी निर्देश में कहा गया है कि लीड समितियां अपने कार्य क्षेत्र की उचित मूल्यकी दुकानों को खाद्यान्न का आवंटन प्रदाय कर दें। साथ ही माहवार आवंटित खाद्यान्न का उठाव उसी माह मेंकरना सुनिश्चित करें।
            दिसम्बर एवं जनवरी 2012 के माह को मिलाकर लीड प्रबंधक सेवा सहकारी समिति जबलपुर को766.74 Ïक्वटल गेहूँ का आवंटन प्रदान किया गया है। इसी प्रकार लीड प्रबंधक सेवा सहकारी समितिकुण्डम को 561.26 Ïक्वटलपनागर को 562.48 Ïक्वटललुहारी को 271.25 Ïक्वटलउड़ना को 421.78 Ïक्वटलकछपुरा को 238.99 Ïक्वटलमझगवां को 281.93 Ïक्वटलमझौली को 341.90 Ïक्वटल , सिहोराको 459.36 Ïक्वटलशहपुरा को 481.08 Ïक्वटल खाद्यान्न तथा लीड प्रबंधक सेवा सहकारी समिति बिजौरी(चरगवांको 253.42 Ïक्वटल खाद्यान्न मुहैया कराया गया है।
क्रमांक/2324/नवंबर-233/मनोज/दीपक
नि:शुल्क ड्रायविंग प्रशिक्षण हेतु कल तक आवेदन किया जा सकेगा
जबलपुर, 27 नवंबर, 2011
            राज्य शासन के एकीकृत रोजगारोन्मुखी योजनान्तर्गत अनुसूचित वर्ग के दसवीं पास बेरोजगारोंके लिए ड्रायविंग ट्रेनिंग के एक माह का नि:शुल्क प्रशिक्षण टाटा कंपनी के अधिकृत संस्था से संचालितकिया जा रहा है   ऐसे अनुसूचित वर्ग के व्यक्ति जो कम से कम दसवीं पास हों   उम्र 18 से 35 वर्ष केबीच हो एवं परिवार की वार्षिक आय एक लाख 20 हजार रूपये से अधिक  हो  आवेदक को नि:शुल्कड्रायविंग प्रशिक्षण केवल जबलपुर जिले के निवासी आवेदकों को ही दिया जायेगा   इसके लिए 29 नवंबरतक जिला अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति कलेक्ट्रेट जबलपुर अथवा बेसिक्स अकेडमी ड्रायविंगट्रेनिंग सेंटरकामर्शियल आटो मोबाइल्स कंपाउण्ड तिलवारा के पास घाना में अपने आवेदन पत्र आयप्रमाण पत्रजाति प्रमाण पत्रमूल निवासीप्रमाण पत्रराशन कार्डपरिचय पत्र संलग्न कर जमा कर सकतेहैं 
            विस्तृत जानकारी जिला अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति कलेक्ट्रेट जबलपुर अथवाकामर्शियल ट्रेनिंग सेंटर से प्राप्त की जा सकती है अथवा 09179341149 अथवा 9926313956 परजानकारी प्राप्त कर सकते हैं 
क्रमांक/2325/नवंबर-234/मनोज/दीपक

निकायों और पंचायतों के आम-चुनाव
मतगणना के दौरान मोबाइल फोन नहीं
राज्य निर्वाचन आयोग ने दिये निर्देश
जबलपुर, 27 नवम्बर, 2011
प्रदेश में भविष्य में होने वाले नगरीय निकायों और त्रि-स्तरीय पंचायत के चुनावों तथा उप-चुनावोंमें मतगणना के दौरान मोबाइल-फोन के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया गया है। राज्य निर्वाचन आयोगने आज इस सिलसिले में सभी जिला कलेक्टरों को निर्देश जारी कर दिये।
आयोग के मुताबिक मोबाईल-फोन पर यह प्रतिबंध मतगणना भवन और उसके परिसर में पूरी तरह लागूहोगा। हालाँकि आयोग द्वारा निर्वाचन पर्यवेक्षण के लिये तैनात किये जाने वाले प्रेक्षक इस प्रतिबंध के दायरेमें नहीं आयेंगे। उन्हें आयोग से सतत संपर्क बनाये रखने के उद्देश्य से इस प्रतिबंध से मुक्त किया गया है।
आयोग ने इस फैसले पर अमल को लेकर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और उनके चुनाव एजेंटकी मतगणना स्थल पर प्रवेश के दौरान जाँच करने के निर्देश दिये हैं। यदि इनमें से किसी के पासमोबाइल-फोन मिले तो उसे प्रवेश नहीं किया जायेगा। जहाँ तक जिला निर्वाचन अधिकारियों या मतगणनासे जुड़ने वाले कर्मचारियों की बात है तो वे सिर्फ आयोग से सम्पर्क करने के लिये मतगणना स्थल केसमीप बने कक्ष के दूरभाष का इस्तेमाल कर सकेंगे।
आयोग का कहना है कि मतगणना के अत्याधिक महत्वपूर्ण कार्य में संबंधित अधिकारी-कर्मचारियों कीएकाग्रता भंग नहीं होनी चाहिए। मोबाइल-फोन काम में रोड़ा बनता है और इससे गोपनीयता भंग होने कीसंभावना भी होती है।
क्रमांक/2326/नवंबर-235/मनोज/दीपक

एकीकृत बाल विकास परियोजना कुण्डम
में रिक्त आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पद हेतु आवेदन आमंत्रित
जबलपुर, 27 नवम्बर, 2011
            एकीकृत बाल विकास परियोजना कुण्डम के दो आंगनबाड़ी केन्द्रों में रिक्त आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आंगनवाड़ी सहायिका के एक-एक पदों की पूर्ति के लिए एक दिसम्बर से 10दिसम्बर तक निर्धारित प्रपत्र मेंआवेदन आमंत्रित किया गया है।
            कुण्डम के परियोजना अधिकारी ने बताया कि ग्राम पंचायत बघराजी के आंगनबाड़ी केन्द्र क्रमांकचार में एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता तथा ग्राम पंचायत देवरीकला के आंगनबाड़ी केन्द्र देवरीकला क्रमांक दो मेंएक आंगनबाड़ी सहायिका का पद रिक्त है  इससे संबंधित अधिक जानकारी कार्यालयीन कार्य दिवस मेंकुण्डम कार्यालय से प्राप्त की जा सकती है।
क्रमांक/2327/नवंबर-236/मनोज/दीपक





कृषि स्थाई समिति की बैठक 30 को
जबलपुर, 27 नवम्बर, 2011
            जिला पंचायत की कृषि स्थाई समिति की बैठक 30 नवम्बर को दोपहर 2 बजे से जिला पंचायतके सभाकक्ष में आहूत की गई है। बैठक में पिछली बैठक के पालन प्रतिवेदन सहित उद्यान और मछलीपालन विभाग द्वारा संचालित सभी योजनाओं की भौतिक एवं वित्तीय उपलब्धियों एवं प्रगति की समीक्षा कीजायेगी
क्रमांक/2328/नवंबर-237/मनोज/दीपक
महाविद्यालयों में होगा 12 जनवरी को सूर्य नमस्कार
जबलपुर, 27 नवम्बर, 2011
            स्वामी विवेकानन्द का जन्म दिवस 12 जनवरी युवा दिवस के रूप में मनाया जायेगा। इस दिवससभी महाविद्यालयों में प्रात: 9 से 10.30 बजे तक सामूहिक सूर्य नमस्कार तथा स्वामी विवेकानन्द परकेन्द्रित प्रेरणादायी शैक्षिक एंव सांस्कृतिक गतिविधियाँ का आयोजन होगा।
            सामूहिक सूर्य नमस्कार सभी महाविद्यालयों में आगामी 12 जनवरी को प्रात: 9 बजे एक साथहोगा। जिन महाविद्यालयों में मैदान नहीं हैवहां के विद्यार्थी निकटतम संस्था अथवा मैदान में सामूहिकसूर्य नमस्कार करेंगे। सामूहिक सूर्य नमस्कार के सीधे प्रसारण की व्यवस्था दूरदर्शन एवं रेडियों के माध्यमसे होगी।

19 नव॰ 2011

ज्ञानरंजन, 101, रामनगर, अधारताल, जबलपुर.

खास सूचना: इस आलेख के किसी भी भाग को  
अखबार  प्रकाशित 21.11.2011 को 
ब्लाग के लिंक के साथ प्रकाशित कर सकते हैं.
स्नेह भरे भाव से सम्पृक्त हैं भाई मनोहर बिल्लोरे खास तौर पर पढ़ने-पढ़ाने वालों के बीच उनके गद्य एवम कविताएं .. उन्हीं की लेखनी से उपजा यह संस्मरण प्रस्तुत है..               
 ज्ञानरंजन, 101, रामनगर, अधारताल, जबलपुर. घर के पास ही संजीवन अस्पताल. यह 'घर पूरे देश और विदेश का भी - सांस्कृतिक केन्द्र है. यहाँ ग्रह-उपग्रह से जुड़ा कोई भारी उपकरण नहीं, टीवी, मोबाइल के सिवाय. पर खबरें... खबरें यहाँ पैदल, सार्इकिल, रिक्शे लेकर इन्टरनेट तक के माध्यम से हड़बड़ाती दौड़ती-भागती चली आती हैं और हवा में पंख लगाकर जबलपुर की फिज़ा में उड़ने लगती हैं. 
हम रोज मंदिर की सुबह-शाम या एक बार यहाँ भले न जायें, पर हफ़्ते में दो तीन बार जाये बिना चैन से रह नहीं सकते. और यदि कतिपय कारणों से न जा पायें तो ज्ञान जी का फोन आ जायेगा - 'क्यों क्या बात है - आ जाओ जरा. और हम दौड़ते-भागते 101 नम्बर रामनगर हबड़-दबड़ पहुँच जाते हैं. - 'क्यों कोर्इ खास बात, कहाँ थे, क्या कहीं बाहर चले गये थे.
मेरी पहली मुलाकात कथाकार, पत्रकार, पर्यावरण कर्मी, सक्रियतावादी और अब अनुवादक भी - राजेन्द चन्द्रकांत राय, के साथ उनके अग्रवाल कालोनी वाले दूसरे तल पर बने उस छोटे से आयताकार आश्रम में - जिसमें नीचे एक मोटा किंतु खूब मुलायम गद्दा बिछा रहता और दो ओर पुस्तकों से भरी पूरी सिर की ऊँचाई तक पुस्तकों से अटी खुली अलमारी एक ओर टिकने की दीवार और चौथी ओर घर में भीतर की ओर खुलने वाला दरवाजा था. पत्रिकाओं-पुस्तकों के यहाँ-वहाँ लगे ढेर अलग. यहाँ-वहाँ बिखरे रहते. मैं जाता और चुपचाप बैठा लुभाता, पुस्तकों के नाम पढ़ता रहता. जब कभी कोई पत्रिका या पुस्तक ले आता और पढ़कर लौटा देता. सिलसिला चल निकला. वहीं पर दानी जी और इंद्रमणि जी से पहली मुलाकात हुर्इ और बाद में मुलाकातों का सिलसिला चल निकला, जो आज तक मुसलसल जारी है. 
 उन दिनों रचनात्मकता का भूत सा मुझ पर सवार था. जो लिखता वह मुझे सर्वश्रेष्ठ लगता. एक गलतफहमी अंदर भर गई थी कि जो मैं लिख रहा हूँ वह मुझे नामवर बना देगा. पर उसमें भावुकता बहुत भरी थी - इसका मुझे बहुत धीमे-धीमे कई सालों में अहसास हुआ. उसी समय मैंने गीता का अपने ही भावुक छंद में हिंदी में काव्यानुवाद सा किया था. मैंने उसके दूसरे अध्याय की एक-एक फोटोकापी ज्ञानजी और इन्द्रमणि जी को दी थी - उसी आयताकार छोटे कमरे में - जिसे देखकर उन्होंने चुपचाप रख लिया था. इंद्रमणि जी ने ज़रूर गीता पर अपनी कुछ टिप्पणियाँ दी थीं, अनुवाद पर नहीं. फिर मैंने भी कभी उस बावत बात नहीं की. इससे पहले मैं किसी ठीक-ठाक ठिये की तलाश में भटक रहा था जो सामूहिक रचनात्मकता का केन्द्र हो. चंद्रकांत जी तो साथ थे ही, पर वे मजमा नहीं रचाते थे. हाँ निरंतर लिखने-पढ़ने रहते. उस समय उनका राजनीति के प्रति रुझान भी बड़ा गहरा था जो उनके लेखन की गति को अवरुद्ध किये रहता था. मैंने देखा कि शहर में हर साहित्यिक केन्द्र पर गंडा-ताबीज बांधन-बंधवाने, का रिवाज सा था. 'जब तक गंडा बंधवाकर पट और आज्ञाकारी शिष्य न बन जाओ और आज्ञाकारी की तरह दिया गया काम न करो आपकी किसी भी बात पर ध्यान नहीं दिया जायेगा और तब तक आपके लिखे-सुनाये पर वाह तो क्या आह भी नहीं निकलेगी, हाँ तुम्हारी कमियाँ और कमजोरियाँ खोद-खोद कर संकेतों-सूत्रों में आपके सामने पेश की जाती रहेंगी. 
           बहरहाल भटकाव जारी रहा. इनमें से कुछ अडडे तो ऐसे थे कि उन पर मौजूद चेहरे ही वितृ्ष्णा पैदा करते थे. उनसे विद्वता तो बिल्कुल भी नहीं शातिरपन रिसता-टपकता रहता था और समर्पण करने से रोकता-टोकता रहता था. इतनी महत्वाकांक्षा खुद में कभी नहीं रही और आत्मसम्मान इतना तो हमेशा बना रहा कि कुछ प्राप्ति के लिये मन के विपरीत साष्टांग लेट सकूं. हाँ, अग्रज होने और उसमें भी विद्वता की खातिर किसी के भी पैर छुए जा सकते हैं. पर वह भी तब जब निस्वार्थता और गहरी आत्मीयता महसूस हो तब.          
       बहरहाल, चंद्रकांत जी किशोरावस्था से ही स्तरीय पढ़ने और सक्रिय विधार्थी जीवन जी रहे थे अत: उनके अनुभव ज़मीनी थे और उन्होंने कम उम्र में ही मुख्य धारा को समझने और उस ओर रुख करने का सहूर और सलीका आ गया था जो मुझमें बहुत बाद में बहुत धीरे-धीरे आया पर अब भी पूरी तरह नहीं आया है. स्वभाव का भी फर्क रहा. वे बहिर्मुखी अधिक रहे और मेरी अंतर्मुखता अभी तक मेरा पीछा नहीं छोड़ पा रही. धीरे-धीरे वे मेरे 'भैया बन गये. उनसे मुझे हमेशा आत्मीयता का भाव मिलता रहा है. मनमुटाव कभी नहीं हुआ, हाँ जब कभी हल्के-दुबले मतभेद किसी मुद्दे को लेकर ज़रूर रहे पर वे भी बहुत जल्दी उनकी या मेरी पहल पर कपूर की तरह काफूर हो गये. अब तक मैं तीस से अधिक वसंत पार कर चुका था और भावुकता से लबालब भरा था. चंद्रकांत जी को जब भी मैं कुछ लिखकर दिखाता या सुनाता तो कोई विपरीत टिप्पणी नहीं करते, 'ठीक है, या इसे एकाध बार और लिखो. कहकर आगे बढ़ जाते.
                  यह सन 91-92 के आसपास की बात है. मैंने एक कविता लिखी, और जैसा कि अमूमन होता था, कुछ भी लिख लेने के बाद चंद्रकांत जी को लिखी गयी कविता सुनाने का मन हुआ अत: उनके घर - जो पास ही था, चला गया. नीचे दरी पर बैठे अधलेटे वे कुछ पढ़ रहे थे. संबोधित हुए तो मैंने एक कविता पूरी करने की बात कही. उन्होंने सुनाने की बात कही और बैठ गये. मैंने कविता सुनार्इ तो उन्होंने कहा - 'यह तो बहुत अच्छी कविता है. इसे एकाध बार और लिखोगे तो यह संवर जायेगी. हम बात कर ही रहे थे कि फोन की घंटी बजी. उस समय मोबाइल नहीं टिनटिनाते थे. चंद्रकांत जी ने बातचीत के दौरान ज्ञान जी के पूछने पर कि 'क्या कर रहे हो? -  बताया - 'बिल्लौरे जी ने एक बहुत बढि़या कविता लिखी है, वही सुन रहा था. तो ज्ञान जी का उत्तर था - 'यहीं चले आओ हम भी सुनेंगे.   कहकर फोन रख दिया. हम दोनों आनन-फानन में जेपीनगर से ज्ञान जी के घर 101 रामनगर पहुँच गये. उन्होंने वह कविता सुनी नहीं, लिखी हुई कविता ली और उलट-पलट कर देखी. पहले अंतिम भाग पढ़ा, फिर ऊपर, फिर बीच में देखकर एक बार फिर शुरू से आखीर तक पुन: नज़र दौड़ाई और बोले - 'यह तो पहल में छपेगी. कहकर उन्होंने पन्ना लौटा दिया और कहा - 'तीन चार कविताएं और इसके साथ दे देना अगले अंक के लिये. और वह कविता तीन और कविताओं के साथ पहल के 46 वें अंक में सन 92 में प्रकाशित हुर्इ. यह मेरा किसी भी साहित्यिक-पत्रिका में छपने का पहला अवसर था. और षायद मेरे साहित्यिक जीवन की शुरूआत भी यहीं से मुझे मानना चाहिये. इसक पहले तो बस लपड़-धों-धों थी. मेरी रचनात्मक प्यास ने तब फिर कभी नहीं सताया. बस एक और दूसरी प्यास और भूख भी जागने लगी - अच्छा पढ़ने और उसे पाने की, जो अब तक मुसलसल जारी है और मिटती नहीं, बढ़ती ही जाती है, जितना खाओ-पीओ या कहें पीओ-खाओ. एक और बात थी ज्ञान जी के यहाँ निर्द्वंद्व जाने की. भाभीजी की स्वागत मुस्कान और आगत चाय-पकवान तथा पाशा-बुलबुल का स्नेह. उनकी सहज सरलता, अपनत्व और वहाँ आने जाने वाले स्तरीय लोगों से मेल मुलाकात तब मिलता रहा. यह सिलसिला  अब तक जारी है और ताजिंदगी रहेगा ऐसा मेरा प्लेटिनिक-विश्वास कहता है.
       पाशा अब नागपुर में हैं और बुलबुल विदेश में. पाशा तो आते जाते रहते हैं और उनसे मेल-मुलाकात और फोन से बातचीत होती रहती है. कुछ काम-धाम की बातें भी. पर बुलबुल, बुलबुल का दरस-परस दुर्लभ हो गया है. अब तो एक और छोटी बुलबुल उनके पास आ गयी है. पिछली बार जब बुलबुल अमरीका से अल्पकाल के लिये आयी थी तो मेरे और मेरे घर के लिये भी चाकलेटों के दो बडे़ से पैकेट और पल्लव(बेटे) के लिये एक बहुत सुन्दर किताब भेंट में दी थी. जिसे अब तक सहेजकर मैंने अपने पास रखा है.
        ज्ञान जी की एक खास आदत ने भी मुझे उनकी ओर गहरे आकर्षित किया. वे न तो फालतू बातें कभी करते हैं और न ही उनमें उन्हें सुनने रुचि या क्षमता. वे काम और उसमें भी मुद्दे की बात वे करते सुनते हैं. बकवाद में उनकी रुचि बिल्कुल नहीं. हमेशा सजग, सतर्क और तत्पर ज्ञानेनिद्रयाँ. अतार्किक और अवैज्ञानिक तथ्य पर धारदार हमला, और अपने मिलने-जुलने वालों के भीतरी संसार की नियमित स्केनिंग उनके द्वारा होती रहती और नकारात्मक सोच देख सुन कर बराबर सचेत करते रहने का उनका उपक्रम कभी नहीं रुका, और अब तक जारी है. मुसलसल...
एक खास बात और - मैं उनके साथ पहल-सम्मानों के दौरान देष के छोरों तक के कई शहरों में गया हूँ. हर जगह उन्हें खूब प्यार और दुलार देने वाले लोगों का समूह है. उनके हमउम्र, उनसे वरिष्ट तो उनसे प्रभावित रहते ही हैं, पर खास बात यह कि युवा लोंगों का स्नेह  और प्यार उन्हें बेइंतहा मिलता है. कार्यक्रम की जिम्मेदारी स्थानीय टीम इतनी तत्परता और जिम्मेदारी से करती कि हम जबलपुर से पहुंचे कार्यकर्ताओं को अधिक दौड़धूप और मशक्कत नहीं करना पड़ती, बलिक मेहमान की तरह हमारा स्वागत और देखभाल की जाती. देश के हर शहर, कस्बे और गाँवों में तक ज्ञान जी का आंतरिक सम्मान और आदर करने और उनके इषारों को समझने और उन पर तत्परता से अमल करने वाले मिल जायेंगे. यह मैंने उनके साथ अपनी यात्राओं के दौरान महसूस किया.
और इस संस्मरण के अंत में इतना और कहने की गहरी इच्द्दा है कि मेरे साहित्यिक जीवन को दिषा देने वालों में राजेन्द्र चंद्रकांत राय के बाद यदि प्रमुखता से किसी और का नाम जुड़ता है तो वह है - ज्ञानरंजन. उनके दिशा-निर्देशों के बिना शायद में आज यह सब लिखने के काबिल न हो पाता और यह साहस भी न कर पाता.
 लेखक         
मनोहर बिल्लौरे,1225, जेपीनगर, अधारताल,जबलपुर 482004 (म.प्र.)मोबा. - 89821 75385
मेल आई डी "मनोहर बिल्लोरे " या manoharbillorey@gmail.com 

6 नव॰ 2011

श्रीमति मनोरमा तिवारी की कविता : रानी-बिटिया





श्रीमती मनोरमा तिवारी जबलपुर की वरिष्ठ कवयित्री हैं. आपने अपना सम्पूर्ण जीवन अध्यापन एवं साहित्य सृजन को समर्पित किया है. सेवानिवृत्ति के पश्चात भी आप साहित्यिक एवं सामाजिक सरोकारों से जुड़कर स्वयं को धन्य मानती हैं. आपकी लेखनी में काव्य में प्रांजलता का समावेश स्पष्ट देखा जा सकता है. आपकी रचनाओं में विविधता के साथ साथ सारगर्भिता भी दिखाई देती है.
"रानी बिटिया" उनकी कविता है.
डा० विजय तिवारी किसलय के सौजन्य से आभार सहित 

1 नव॰ 2011

न्यू-मीडिया : नये दौर की ज़रूरत


अंतर्जाल पर भाषाई के विकास के साथ ही एक नये दौर में मीडिया ने अचानक राह का मिल जाना इस शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि है.विचारों का प्रस्फ़ुटन और उन  विचारों को प्रवाह का पथ मिलना जो शताब्दी के अंत तक एक कठिन सा कार्य लग रहा था अचानक तेजी से इतना सरल और सहज हुआ कि बस  सोचिये की बोर्ड पर टाइप कीजिये और एक क्लिक में मीलों दूरी तय करा दीजिये....प्रस्फ़ुटित विचारों की मंजूषा को. बेशक एक चमत्कार वरना अखबार का इंतज़ार,जिससे आधी अधूरी खबरें..मिला करतीं थीं श्रृव्य-माध्यम यानी  एकमात्र आकाशवाणी वो भी सरकार नियंत्रित यानी सब कुछ एक तरफ़ा और  तयशुदा कि देवकी नंदन पाण्डेय जी कितना पढ़ेगें आठ बजकर पैंतालीस मिनिट वाली न्यूज पर. यानी खुले पन का सर्वथा अभाव समाचार सम्पादकों की मर्ज़ी पर खबरों का प्रकाशन अथवा प्रसारण तय था .सरकारी रेडियो टीवी (दूरदर्शन) की स्वायत्तता तो आज़ भी परिसीमित है. 
      निजी चैनल्स एवम सूचना प्रसारण के निजी साधनों का आगमन कुछ दिनों तक तो आदर्श रहा है किंतु लगातार विचार प्रवाह में मीडिया घरानो संस्थानों का धनार्जन करने वाला दृष्टिकोण न तो समाचारों के साथ पूरा न्याय कर पा रहा है न ही समाचारों से इतर अन्य कार्यक्रमों में कोई मौलिकता दिखाई दे रही. जबकि लोग मीडिया की ओर मुंह कर अपनी अपनी अपेक्षाओं का एहसास दिला रहे हैं. यानी कुल मिला कर मीडिया संस्थानो की अपनी व्यावसायिक एवम नीतिगत मज़बूरियां "न्यू-मीडिया" के परिपोषण के लिये एक महत्व-पूर्ण कारक साबित हुईं हैं. 
न्यू-मीडिया   
  1. वेब-पोर्टल्स
  2. सोशल-साइट
  3. माईक्रो-ब्लागिंग/नैनो-ब्लागिंग
  4. ब्लागिंग
  5. पाडकास्टिंग
  6. वेबकास्टिंग
         न्यू-मीडिया के इस  बहुआयामी  स्वरूप ने आम आदमी को एक दिलचस्प और सतत वैश्विक-जुड़ाव का अवसर दिया जबकि आज़ से लगभग पच्चीस बरस पहले किसी को भी यह गलत फ़हमी सम्भव थी कि मीडिया के संस्थागत संगठनात्मक स्वरूप में कोई परिवर्तन सहज ही न आ सकेगा. रेडियो,सूचना का आगमन अखबार, टी. वी.टेलेक्स,टेली-प्रिंटर, फ़ैक्स,फ़ोन,तक सीमित था. संचार बहुत मंहगा भी था तब. एक एक ज़रूरी खबर को पाने-भेजने में किस कदर परेशानी होती थी उसका विवरण  आज की पीड़ी से शेयर करो तो वह आश्चर्य से मुंह ताक़ती कभी कह भी देती है –“ओह ! कितना कुछ अभाव था तब वाक़ई !!
    और अब उन्हीं ज़रूरतों की बेचैनीयों ने बहुत उम्दा तरीके से सबसे-तेज़” होने की होड़ लगा दी.इतना ही नहीं   “मीडिया के संस्थागत संगठनात्मक स्वरूप में बदलाव” एकदम क़रीब आ चुका है.ब्लागिंग के विभिन्न स्वरूपों जैसे टेक्स्टके साथ ही साथ नैनो और माइक्रो ब्लागिंग का ज़माना भी अब पुराना हो चला तो फ़िर नया क्या है.. नया कुछ भी नहीं बस एकाएक गति पकड़ ली है वेबकास्टिंग ने पाडकास्टिंग के बाद . और यही परम्परागत दृश्य मीडिया के संस्थागत आकार के लिये विकल्प बन चुका है. लोगों के हाथ में थ्री-जी तक़नीक़ी वाले सेलफोन हैं.जिसके परिणाम स्वरूप अन्ना के तिहाड़ जेल में जाने पर वहां जमा भीड़ का मंज़र लोग अपने घर-परिवार को दिखाते रहे. जबकि  न्यूज़ चैनल से खबर आने में देर लगी. ये तो भारत का मामला था मध्य-एशिया के देशों की हालिया क्रांति में भी न्यू-मीडिया की भागीदारी की पुष्टि हुई है. 
एक नज़र  वेबकास्टिंग के अचानक विस्तार पर 
            18 जनवरी 2011 को छपी इस खबर का स्मरण कीजिये जो नवभारत-टाइम्स ने छापी थी हुआ भी ऐसा ही ऐसे समारोह के प्रसारण के लिये स्थापित चैनल्स को उपयोग में लाना बेहद खर्चीला साबित होता और फ़िर दीक्षांत समारोह कोई क्रिकेट मैंच अथवा अमेरीकी राष्ट्राध्यक्ष की भारत यात्रा तो नहीं थी जिसके लिये सारे खबरिया संस्थान अपने कैमरे फ़िट करते .
              इसी क्रम  में आपको यह भी स्मरण होगा ही कि पटना- विधानसभा चुनाव में जिले के चौदह विधानसभा क्षेत्रों के 3872 बूथों में से 166 बूथों का लाइव वेब कास्टिंग किया गया । वेब कास्टिंग में बाधा उत्पन्न न हो इसके लिए जिला तथा अनुमंडल स्तर पर ट्रबुल शूटर टीम‘ का गठन किया गया है जो 30 अक्टूबर से काम करना शुरू कर देगी। चुनाव आयोग के निर्देशानुसार 31 अक्टूबर को लाइव वेब कास्टिंग का मॉक प्रस्तुतीकरण किया गया. वेब कास्टिंग के लिए उन्हीं बूथों का चयन किया गया है जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी और लीगल बिजली कनेक्शन उपलब्ध थे। नोडल पदाधिकारी विनोद आनंद ने बताया था कि 166 बूथों में से 159 पर लैडलाइन व बूथों पर वाइमेक्स की सुविधा उपलब्ध करायी है। मालूम हो कि एक लैडलाइन कनेक्शन का चार्ज 2700 रुपये व एक वाइमेक्स का चार्ज 4200 रुपये है। वेब कास्टिंग होने वाले हर बूथों पर एक कम्प्यूटर ऑपरेटर व एक बीएसएनएल के कर्मचारी मौजूदगी थी ।      
                जिस लैपटॉप से वेब कास्टिंग होना है उसमें 20 फीट की दूरी को कवर करने वाला वेव कैम और लगभग पचास तरह के सॉफ्ट वेयर का इस्तेमाल किया जाएगा। मतदान के दौरान निर्वाध वेब कास्टिंग के लिए जेनरेटर की व्यवस्था भी की गयी ।
हिन्दी ब्लागिंग में वेब कास्टिन्ग का प्रयोग उत्तराखण्ड के खटीमा शहर में दिनांक 09-01-2011 एवम 10-01-2011 को  साहित्य शारदा मंच के तत्वावधान में डारूपचन्द्र शास्त्री मयंक’ की  दो पुस्तकों क्रमशः सुख का सूरज” (कविता संग्रह) एवं नन्हें सुमन (बाल कविता का संग्रह) का लोकार्पण समारोह एवं ब्लॉगर्स मीट के सीधे प्रसारण से किया गया. जिसमें  किसी भी हिंदी ब्लॉगर सम्मलेन और संगोष्ठी के लिए यह प्रथम अवसर था जिसका जीवंत प्रसारण अंतर्जाल के माध्यम से किया हो. समारोह का जीवंत प्रसारण पूरे समारोह के दौरान खटीमा से पद्मावलि ब्लॉग के पद्म सिंह और अविनाश वाचस्पति के साथ  जबलपुर से मिसफिट-सीधीबात  ब्लॉग के संचालक यानी  मैने किया . बस फ़िर क्या था सिलसिला जारी रहा बीसीयों टाक-शोसाक्षात्कार के साथ साथ दिल्ली से 30 अप्रैल 2011 के कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया. यह प्रयोग सर्वथा प्रारम्भिक एकदम कौतुकपूर्ण  प्रदर्शन था लोग जो हिंदी ब्लागिंग के लिये समर्पित हैं उनको यह क़दम बेहद रुचिकर लगा.
    इस घटना ने प्रिंट मीडिया को भी आकृष्ट किया यशभारत जबलपुरकादम्बिनी और अमर-उजाला जैसे अखबारों  में पियूष पाण्डॆ जी एवम सुषांत दुबे के आलेख एवम समाचार आलेख बाक़ायदा छापे गए.
वेबकास्टिंग किसी भी घटना का सीधा अथवा रिकार्डेड  प्रसारण है जो थ्री-जी तक़नीकी के आने के पूर्व यू-ट्यूबustream, अथवा बैमबसरजैसी साइट्स के ज़रिये सम्भव थी. आप इसके ज़रिये घटना को रिकार्ड कर लाईव अथवा रिकार्डेड रूप में अंतरजाल पर अप-लोड कर सकतें हैं.
  इसके लिये आप http://bambuser.com/  अथवा www.ustream.tv पर खाता खोल के जीवंत कर सकते हैं उन घटनाओं को आपके इर्द गिर्द घटित हो रहीं हों. इतना ही नहीं इस तक़नीकी के ज़रिये आप भारत में पारिवारिक एवम घरेलू आयोजनो को अपने उन नातेदारों तक भेज सकतें हैं जो कि विश्व के किसी भी कोने में हैं अपनी रोज़गारीय मज़बूरी की वज़ह से.