25 अक्तू॰ 2012

माहिया गीत मौसम के कानों में --संजीव 'सलिल'

माहिया गीत   
मौसम के कानों में
संजीव 'सलिल'
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मौसम के कानों में
कोयलिया बोले,
खेतों-खलिहानों में।
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आओ! अमराई से
 
आज मिल लो गले, 
भाई और माई से।
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आमों के दानों में,
गर्मी रस घोले,
बागों-बागानों में---
*
होरी, गारी, फगुआ
गाता है फागुन,
बच्चा, बब्बा, अगुआ।
*
 
प्राणों में, गानों में,
मस्ती है छाई,
दाना-नादानों में---
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
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कृति चर्चा:आम आदमी के दर्द के आलेख : सुमित्र के व्यंग्य लेख संजीव 'सलिल'


कृति चर्चा:

चर्चाकार: संजीव 'सलिल'

 
      

आम आदमी के  दर्द के आलेख : सुमित्र के व्यंग्य लेख
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व्यंग्य लेखन साहित्य की वह विधा है जो कालखंड विशेष की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पारिवारिक तथा वैयक्तिक विडम्बनाओं, विसंगतियों, अंतर्द्वंदों व आडम्बरों के त्रासद-हास्यद पक्षों को उद्घाटित कर दोगलेपन तथा पाखंड पर सीधा, तीखा किन्तु विनोदपूर्ण प्रहार करती है. व्यंग्य कभी व्यष्टि, कभी समष्टि, के माध्यम से परिस्थितियों, प्रणालियों, व्यवस्थाओं आदि पर शब्द-प्रहार कर भ्रष्टाचार, घृणा, शोषण, द्वेष, लोलुपता, स्वार्थपरता, कठमुल्लापन आदि को सामने लाता है किन्तु धर्मोपदेशक की तरह तजने का आग्रह  नहीं करता. व्यंग्य-लेखन का उद्देश्य पाठक के मन में गलत के प्रति वितृष्णा पैदा करना होता है, अंतर्मन में विरोध का भाव उत्पन्न करना होता है.

संस्कारधानी जबलपुर व्यंग्य को 'स्पिरिट' कहनेवाले किन्तु अपने प्रचुर और प्रभावी लेखन से हिंदी साहित्य में स्वतंत्र विधा का स्थान दिलानेवाले स्वनामधन्य व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की कर्मस्थली है. तुलसी के पौधे से भूमि पर गिरी मंजरियों से अनेक अंकुर प्रस्फुटित-पल्लवित होना स्वाभाविक है. परसाई की व्यंग्य लेखन मंजरी से संस्कारधानी में अंकुरित व्यंग्यकारों में सुमित्र चर्चित रहे हैं. परसाई जी के सान्निन्ध्य में समाज को सजग दृष्टि से निरखने-परखने का संस्कार पाकर विद्रूपताओं और विसंगतियों से व्यथित होने वाला तरुण पत्रकार सुमित्र उन्हें ललकारकर पटकनी देनेवाले व्यंग्यकार सुमित्र में कब-कैसे परिवर्तित हो गया संभवतः उसे भी पता नहीं चला. तभी तो दैनिक अख़बार के स्तम्भ के सीमित कलेवर में वह आम आदमी की व्यथा-कथा कहने का साहस जुटाकर कम शब्दों में गहरी बात कह सका.

इस संकलन के व्यंग्य लेखों में व्यापक अनुभव क्षेत्र की खोज, सामाजिक समस्याओं के विश्लेषण की प्रवृत्ति, दूर दृष्टि संपन्न सकारात्मक परिवर्तन की दिशा अन्तर्निहित है. सुमित्र जी के व्यंग्य तिलमिलाते नहीं सहलाते हैं. प्रसाद गुण संपन्न सांकेतिक अर्थ व्यंजना सामाजिक परिवर्तन की प्रेरक बनकर पाठकों को आत्मावलोकन ही नहीं आत्मालोचन के लिये भी प्रेरित करती है. बँट रहा है भारत रत्न, महान जी, आप कतार में हैं, निंदक नियरे राखिए, नंगा और नंगपन, सूत न कपास, नमामि देवी चापलूसी-चुगलखोरी, बजट की वंशी, अथ मुगालता कथा, पढ़ो, बढ़ो और गिर पड़ो, आदि ३० व्यन्ग्य७अ लेख सुमित्र जी के सामाजिक सरोकारों. सरोकारों के प्रति संवेदनशील सजग दृष्टि तथा दृष्टिजनित सरोकारों का ऐसा वर्तुल निर्मित करते हैं जिसके केंद्र में आम आदमी की विवशता तथा जिजीविषा दोनों की सहभागिता संभव हो पाती है.

सुमित्र जी कि सहज चुटीली भाषा पाठक के मन को स्पर्श करती है- ' अब तो दुनिया ही बदल गई, पहले जैसे सरोवर अब कहाँ? पनिहारिनों का पनघट पर लगा वह स्वर्गीय मेला. सब स्वर्गीय हो गया. अब क्या है? केंचुए से नल देखो, नल की धार देखो और झोंटा छितराती नायिकाएं देखो. श्रृंगार का तो फट्टा ही साफ़ समझो. तुम कहोगे हम रो रहे हैं. क्यों न रोएँ? तुम्हारे समय में चार महीनों का ताप काफी गुल खिलाता था. काफी ऊर्जा दे जाता था. चंदन की काफी खपत हो जाती थी और चार माह के बाद में जब मेघराजाअपनी प्रेम-फुहार से धरती को सिंचित करते थे तो 'परिरंभ कुंभ' की मदिरा की छटा छिटक जाती थी. इधर तो साल भर से मेघों का गुरिल्लावार चालू है. पानी थामा ही नहीं, गया ही नहीं, और आज आषाढ़स्य प्रथम दिवसे. न धरती सूनी है, न उसके सिंचन से सौंधी गंध उठ रही है. अब आगे क्या होगा? संयोग-वियोग श्रृंगार की सभी संभावनाएं धूमिल हैं.''

प्रसिद्ध लेखिका एम. डब्ल्यू. मोंतेंग्यू के अनुसार: 'व्यंग्य एक तेज़ धार चाकू के समान है जो इस प्रकार घाव करता है कि स्पर्श तक का आभास भी  नहीं हो.' डॉ. सुमित्र की संवेदनशील परिपक्व सोच और भाषिक सामर्थ्य चाकू कवर को गुलाब के रेशमी स्पर्श में बदल देता है.
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5 अक्तू॰ 2012

कोलस्ट्रम : शिशु का हक है..


प्रोजेक्ट प्रोत्साहन 
प्रोजेक्ट प्रोत्साहन  जिला चिकित्सालय डिण्डोरी में 8 अगस्त 2012 से लागू किया गया एक ऐसा नवाचार है जिससे कुपोषण के 22% मामलों को रोकने में में सहायता मिलेगी.इस परियोजना के ज़रिये माताओं को स्तनपान और शिशुओं की सुरक्षा के लिए जागरूक करने हेतु डिण्डौरी जिले जिला चिकित्सालय में शुरू किये गये इस प्रोजेक्ट से 112 से अधिक शिशुओं को कोलस्ट्रम मिला है। कलेक्टर श्री मदन कुमार के निर्देशन में महिला एवं बालविकास विभाग द्वारा जिला मुख्यालय में क्रियान्वित नवाचार प्रोजेक्ट प्रोत्साहन के अंतर्गत शिशु के जन्म के एक घंटे के भीतर बच्चे को स्तनपान कराने का महत्व सामाजिक रूढ़ियों पर भारी पड़ गया है। महिला एवं बालविकास की कार्यक्रम अधिकारी का कहना है कि डिण्डौरी परियोजना के परियोजना अधिकारी की परिकल्पना प्रोजेक्ट प्रोत्साहन के जिला मुख्यालय के परिणामों के आधार पर इसे जिले के विकासखंडो में प्रारंभ किया जायेगा। इसके लिए स्तनपान सप्ताह में परियोजना स्तर पर किशोरी बालिकाओं को सम्पूर्ण जानकारी के साथ प्रशिक्षित किया गया है जिनका संदेश वाहक के रूप में उपयोग किये जाने का योजना है। 
   प्रोजेक्ट प्रोत्साहन के क्रियान्वयन के लिए डिण्डौरी परियोजना में परियोजना अधिकारी गिरीश बिल्लोरे द्वारा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं  का एक दल गठित किया गया है जो प्रतिदिन जिला चिकित्सालय में भरती गर्भवती महिलाओं से सम्पर्क स्थापित कर स्तनपान के संबंध में चर्चा करता है। इन महिलाओं को शिशु जन्म  के तुरंत बाद निकलने वाले पीले गाढे़ दूध का महत्व समझाते हुये तथा उसके फायदे की जानकारी देकर बच्चों को पिलाने का अनुरोध किया जाता है। कार्यदल में शामिल आंगनवाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती सत्यभामा ठाकुर और श्रीमती सुमन बघेल का कहना है कि प्रेरित करने का असर यह हुआ है कि महिलाये द्वारा जन्म लेने वाले शिशुओं को कोलस्ट्रम फीडिंग कराई जा रही है। प्रसूतायें अब यह समझ चुकी हैं कोलस्ट्रम फीडिंग कराने से शिशुओं को बीमारियों और कुपोषण से बचाया जा सकता हैं। अब विटामिन ’ए’ और विटामिन ’के’ की अधिकता वाले दूध कोलस्ट्रम अर्थात् जन्म के तुरन्त बाद के पीले गाढे़ दूध को पिलाने में उन्हें कोई हिचक नहीं हो रही है। यह कोलस्ट्रम शिशु  की आंतो की सफाई करता है तथा बच्चे को पीलिया एवं अन्य बीमारियों से बचाये रखता हैं। 
   उल्लेखनीय है कि स्तनपान के महत्व, फायदे, शिशु को 6 माह तक स्तनपान की जरूरत और इसके वैज्ञानिक तरीको के प्रति जागरूकता के लिए बी.पी.एन.आई. के सौजन्य से प्रशिक्षण कार्यक्रमों एवं चिकित्सालयों में काउंसलिंग सुविधा के बाद भी चर्चा में सामने आया कि स्तनपान के प्रति जागरूकता की कमी है। इसे देखते हुये ही प्रोजेक्ट प्रोत्साहन प्रारंभ कर कार्यदल के सदस्य चिकित्सालय में भर्ती महिला जो बातचीत कर सकने वाली गर्भवती महिला जिसे प्रसव पीड़ा प्रारंभ नहीं हुई और जिस महिला की प्रसूति हो चुकी है से चर्चा कर शिशु के जन्म के एक घन्टे में स्तनपालन कराने का प्रयास कराती है और उन्हें नियमित स्तनपान की वारीकियों एवं मॉ की स्थिति का सचित्र ब्यौरा देते हेतु  6 माह तक विशुद्ध स्तनपान कराने का बार-बार संदेश देंगी क्योंकि अटल बिहारी बाजपेयी बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन के तहत 181 दिन  तक शुद्ध स्तन पान कराना शिशु के लिए स्वास्थ्यवर्धक एवं कुपोषण से बचाने बाला है। इसके साथ ही कार्यदल द्वारा महिलाओं एवं शिशु से संबंधित संपूर्ण जानकारी एक प्रपत्र में एकत्र कर रखी जायेंगी। 
    इस कार्यक्रम को लागू किये जाने का औचित्य यह है कि स्तनपान को लेकर प्रसूता महिला को सटीक एवं वैज्ञानिक जानकारी ऐसे समय में दी जाती है जबकि उसे जरूरत है। कार्यदल द्वारा भरे गये प्रपत्रों के माध्यम से एक डाटाबेस तैयार कर परियोजना क्षेत्र में स्तनपान के प्रति प्रोत्साहन एवं बदलाव की दिशा भी तय की जा सकेगी और संस्थागत प्रसव को बढ़ाने और प्रचारित करने में सहायता मिल सकेगी।
8 सितम्बर 2012