26 मार्च 2021

क्या पढूं...?


                  
याद होगा आपको क्या लिखूं नि:बंध पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी साहब बड़े  विचार मग्न थे, और इसी विचार प्रवाह में  डूब कर  बक्शी जी ने लिख मारा एक निबंध ! निबंध क्या सच्चाई थी। लिखने के बाद टोपी टांगने की समस्या खूंटी खोजना भी उनकी है समस्या थी ना ।
   उन्हें  लिखने की समस्या थी मुझे पढ़ने की समस्या है। ज्यादातर किताबों में रेफरेंसेस संदर्भ कई किताबों कई लेख कई सृजन  नहीं होते बल्कि कभी-कभी रेफरल बुक नजर आते हैं तो कभी कभी शब्दकोश से उठाए गए शब्दों का संयोजन लगते हैं। कभी वह डाक्ट्रिन लगते हैं तो कभी दाएं बाएं से किए गए कमिटमेंटस नजर आते हैं। कविताओं की दशा भी यही है। कभी कहीं कदाचित आ जाता है नर्मदा महाकाव्य स्त्रियां घर लौटती है वरना वही सब  जैसा ऊपर बताया है। बुरा मत मानिए कलमकार कई सारी रचनाएं ऐसा लगता है कि बहुत पहले कभी खड़ी हैं वास्तव में ऐसा ही होता है। फिर से शब्द संयोजन बदल जाता है मामला जस का तस परोस देते हैं हमारे कलमकार।  क्या करें गिलहरी और अखरोट का रिश्ता ही ऐसा है !
   फफक फफक के रोया था जब बंटवारे पर ट्रेन टू पाकिस्तान महसूस की थी और दूसरी बार जब कथाकार मित्र गंगा चरण मिश्रा जी ने अपनी कहानी घर आकर पढ़कर सुनाई। याद नहीं आ रहा शायद धर्मयुग अथवा साप्ताहिक हिंदुस्तान में काली आंधी उपन्यास जो कमलेश्वर ने लिखी जी को भी पढ़ कर एक बेचैनी सी महसूस हुई थी। किशोरावस्था से निकलते निकलते पता चला की रोटी भी कमाना है यह अलग बात है कि वह गालियां दे रहा था-" मैं कोई नौकरी नहीं करता" ! खैर छोड़ो नादान है समझ नहीं है अनुदान पर जीना भी एक कला है ।
   बड़ा अजीबोगरीब उत्पन्न हो गया है कोविड-19 के बाद जब टोटल लॉकडाउन हुआ था तब लोग अचानक अद्भुत रूप से पवित्र हो गए थे फिर धीरे-धीरे वही ढाक के तीन पात..!
  कहीं वैचारिक चिंतन में संक्रमण निर्लज्जता तो इतनी कि भाई तिरंगे के समानांतर अपना झंडा लगा आए..!  और कुछ एक उनको जस्टिफाई कर रहे हैं। यकीन कीजिए टोटल लॉकडाउन में मेरे शहर में कोई भूखा नहीं सोया तुम्हारे शहर उसके गांव इसकी बस्ती सब जगह ऐसा ही हुआ था। तो फिर अन्नदाता के लिए संवेदी क्यों नहीं हुई यही जनता कारण वही था भीड़ थी तुम जिसका लाभ कुछ डंडे वाले कुछ झंडे वाले यानी गंदे वाले लोग उठा रहे थे और तुम समझ ना सके अन्नदाता समझो।
   समाज वही स्वीकारेगा जो एकात्मता का गीत होगा। आयातित विचारधारा नहीं सिखाती।
   पता नहीं इतना साहित्य बिखरा हुआ है भारत के वातावरण में कहानी लिख लो कविता रच लो, निबंध लिख लो पर कई लोगों का कंटेंट आयातित क्यों है ? समझ में नहीं आ रहा...!
    अभिज्ञान शाकुंतलम् और हैमलेट में  अंतर क्या है ?
     अभी तो कुमारसंभव की बात ही नहीं कर रहा चलो करता भी नहीं ।
    अब तो मैंने तय कर दिया है कि-"आंखों तुम केवल हिस्ट्री पढ़ो..!
  हिस्ट्री है कि टाइमलाइन सेट नहीं कर पा रही लिखने में मिस्टेक हो गई किस सोच समझकर यह लिखा गया-" श्री राम कृष्ण केवल कपोल कल्पनाएं हैं ।
   अब यह वाक्य पढ़कर आपको लग रहा होगा कि यह बांए बाजू से उभरा कोई चिंतन है ?
   निश्चित तौर पर यही घोषित कर रहे हैं लोग और जैसे ही अरुण पांडे जी ने भरतमुनि के नाट्य शास्त्र का उल्लेख किया तो समझ में आया की कोई कुछ भी कह ले लेकिन विद्वान अपने जान संदर्भों को अंगीकार कर रहे हैं।
   तो समझ लीजिए कि मैं बात कर रहा हूं मानवतावादी वैश्विक तानेबाने की..! जहां से अनुगुंजित होता है-" वसुधैव कुटुंबकम" का उद्घोष ।
   कल ही किसी मुद्दे पर चर्चा चल रही थी विद्वान मित्र शैलेन्द्र पारे जी ने कहा था -" एकला चलो भी जरूरी है लेकिन सब को लेकर चलना भी जरूरी है...!"
बदलती परिस्थिति में जड़ता को कोई स्थान नहीं है ....  it's a very clear nothing is final truth...! Why you are wasting your time  for final truth...?
    समय बदलता है परिस्थितियां बदलती है कभी-कभी तो स्थितियों के वजह से विज्ञान की प्रतिपादित सिद्धांत भी खंडित हो जाती हैं और हमें चकित कर देते हैं ।
    क्या जरूरत है वैश्विक वैमनस्यता बोने की जरूरत तो यह है कि जो बोया है अगर वह कटीला है तो कांटो को तोड़ दिया जाए कुछ नया उगाया जाए।
   कबीर के बाद कबीर पत्थर के बनाके उन्हें पूजें तो  कबीर हंसेंगे कि बेवजह लिखा था दोहा कि-
पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहाड़
तासे जा चाकी भली, पीस खाय संसार ।
    कबीर ने जो कहा अपने मदमस्त अंदाज में कहा। कभी की अभिव्यक्ति के संदर्भ को समझना चाहिए ।
    अब के कबीर कमिटेड हैं पक्षपाती भी । मिर्जा गालिब और अनोखे निकले
कह गए -"कहीं ऐसा न कि वाँ ही वही..!
   अब यह देश क़बीरों का नहीं है मिर्जा गालिबों का नहीं है । अब इसमें आयातित विचारधाराएं राज करती हैं ।
वही पढ़ो जो हम पढ़ाएं
वहीं सुनो जो हम सुनाएं ।
जो राग उनने बना के रखी
उसी पे शब्दों को हम सजाएं..?
न वोल्गा से कथा शुरू है
न गंगा के आ रुकी है ।
न चार पाठों की संस्कृति है-
न गीत की गति कभी रुकी है ।।
      अब आप ही बताएं क्या पढ़े और क्या पढ़ाएं। मैं मंदिर इसलिए जाता हूं कि वहां एक शिल्पी में अथक मेहनत कर एक मूर्ति रखी है शिल्पी की आस्था पर मोहित हूँ और मुझे उसकी आस्था पर आस्था है । मैं मुशरिक नहीं हूं इस बात का सर्टिफिकेशन भी नहीं चाहिए । मुझे मेरा आनंद चाहिए वह चाहे अकेले में मिले या मेले में। तो बता दो ना कि मैं क्या पढूँ और क्यों पढूँ..?
द्वैत अद्वैत साकार निरंकार अलौकिक अलौकिक यह सब हमारे फलसफे में है। पर कुछ गिरोह अनावश्यक गुमराह कर रहे हैं।
    चलो तो जब तय करना तब बता देना फिलहाल सोता हूं रात गहरा चुकी है ।
     

23 मार्च 2021

इतिहास लेखन में गंभीरता होनी चाहिए..!

*इतिहास लेखन गम्भीरता से हो...!*
भारत को अपने ऐतिहासिक दस्तावेजों के संवर्धन के लिए बहुत कार्य करना बाकी है। वर्तमान में जबलपुर के संदर्भ में विकिपीडिया पर विस्तृत जानकारी फीड कर रहा हूं। किंतु प्रथम ग्रासे मक्षिका पाते की स्थिति में हूं . मुझे यह लगा कि जबलपुर अति दर्शन ही पर्याप्त ऐतिहासिक दस्तावेज है जिसमें
जबलपुर के इतिहास पर विमर्श किया गया है ।
     स्व. डॉक्टर महेश चंद्र चौबे एवम जबलपुर में  पूर्व कलेक्टर एवम कमिश्नर रहे अपना दफ्तर अपना घर कार्यक्रम के प्रणेता श्री एम एम उपाध्ये उपाध्याय जी द्वारा प्रस्तुत कृति में जबलपुर नगर को हूणों से सम्बंधित बताया है । जो समझ से एकदम पर है । अंतर्जाल पर मिले एक संदर्भ को देखिए - "पूर्वी शाखा के हूण क्रमशः आगे बढते हुये आक्सस नदी-घाटी में बस गये। इसी शाखा ने भारत पर अनेक आक्रमण किये।
डॉ स्व एम सी चौबे अपनी ही पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 28 में  मैं लेखक स्वयं से काटते हैं कि-" *त्रिपुरी क्षेत्र में बहुत सारे ऐसे टीले मिले हैं जहां पर शक सातवाहन बोधि, सेन आदि राजवंशों के सिक्के प्राप्त होते हैं। यह सही भी है मैंने स्वयं कई तेवर वासियों के मुंह से यह सुना है तथा डॉ विजय तिवारी किसलय ने भी  हजारों साल पुरानी सिक्के एवं गेहूं के दानों की उस क्षेत्र से प्राप्ति की  पुष्टि की गई है ।* 
            *हूणों  की एक अन्य शाखा थी किसने मध्य एशिया से रोम पर आक्रमण किया था जिसे पश्चिमी शाखा के नाम से जाना जाता है .*
           *पूर्वी शाखा के हूणों का प्रथम आक्रमण स्कंदगुप्त के समय में हुआ।*
           इस आक्रमण का नेता खुशनेवाज था, जिसने ईरान के ससानी शासकों को दबाने के बाद भारत पर आक्रमण किया। यह युद्ध बङा भयंकर था। उसकी भयंकरता का संकेत भितरी स्तंभलेख में हुआ है, जिसके अनुसार हूणों के साथ युद्ध -क्षेत्र में उतरने पर उसकी भुजाओं के प्रताप से पृथ्वी काँप गयी तथा भीषण आवर्त (बवंडर) उठ खङा हुआ। स्कंदगुप्त (क्रमादित्य) गुप्त राजवंश जिसका शासनकाल तीसरी से पांचवी शताब्दी तक चला के आठवें शासक रहे हैं  जिनका युद्ध हूणों से हुआ ।
      इस युद्ध में स्कंदगुप्त ने हूणों को बुरी तरह से परास्त किया तथा भारत से बाहर खदेङ दिया। इस युद्ध का प्रमाण स्कंदगुप्त के जूनागढ अभिलेख से मिलता है, जिसमें हूणों को म्लेच्छ कहा गया है। म्लेच्छ – देश से तात्पर्य गंधार से है, जहाँ पराजित होने के बाद हूण नरेश ने शरण ली थी।"
    स्पष्ट है कि जबलपुर से हूणों का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं था । फिर भी इस कृति में अवांछित कारणों से लिखा है कि-" कलचुरी नरेश गांगेयदेव के पुत्र महा पराक्रमी कर्ण ने राजकुमारी अवल्लादेवी से विवाह किया था।" लेखक द्वय यह भी कहते हैं कि कलचुरी शब्द का रिश्ता तुर्की भाषा के शब्द कलचुर से है जिसका अर्थ होता है-" विशिष्ट रूप से सम्मानित व्यक्ति" .
    यह पुस्तक यह भी दावा करती है कि पूर्ण जबलपुर में बस गए थे। नर्मदा और गोदावरी नदियों के बीच अवस्थित इस प्रदेश की राजधानी पोतन थी। इस राज्य के राजा इक्ष्वाकुवंश के थे। इसका अवन्ति के साथ निरंतर संघर्ष चलता रहता था। धीरे-धीरे यह राज्य अवन्ति के अधीन हो गया।
      *कुल मिलाकर यह कहना कि जबलपुर का संबंध जाबालि ऋषि से नहीं है..! मेरे लिए असहमति योग्य है.*
    नर्मदा तट पर ऋषि परंपराओं का तथा ऋषियों की तपोभूमि का होना  कई पौराणिक दस्तावेजों में मौजूद है। इंटेक जबलपुर द्वारा प्रस्तुत किया दस्तावेज पूर्णतया साबित करने में असमर्थ है कि जबलपुर में बस गए थे।
क्या 16 महाजनपदों में शामिल था जबलपुर :- जी हाँ, महाभारत काल में तो  शिशुपाल चेदि वंश से सम्बद्ध था । ईसा के पूर्व  तक चेदि वंश का शासन त्रिपुरी नें अवश्य था । हूंण मध्य एशिया की बर्बर जाति थी। जो चेदि साम्राज्य नर्मदा-गोदावरी तक पहुंच ही न सके ,  ।  लगभग 5 वीं शताब्दी में उन्होंने भारत में आक्रमण किया और वे भारत के आंतरिक हिस्सों तक नहीं पहुंच सके। इसका हिसाब किताब तो इतिहास में मिल ही जाएगा। यहां एक रिफरेंस और महत्वपूर्ण है कि छठवीं शताब्दी में चीनी यात्री व्हेनसांग भारत आए थे यह गलत तथ्य है चीनी यात्री ह्वेनसांग सातवीं शताब्दी में भारत आया था। जिस की यात्रा महाकौशल प्रांत  अर्थात जबलपुर के रास्ते होने के कोई प्रमाण ना तो उनकी किताब में है नाही इस कृति में जिस पर आज चर्चा कर रहा हूं। इंटेक जबलपुर चैप्टर से अनुरोध है कि किसी भी कृति के प्रकाशित होने से पूर्व ऐतिहासिक दस्तावेजों उनकी वैज्ञानिक परीक्षा के उपरांत पर्याप्त प्रमाणिकता के साथ पुस्तकों का मुद्रण कराया जाए। जहां तक राय बहादुर हीरालाल राय का प्रश्न है वे पूरी तरह संतुष्ट थे कि जो उन्होंने अपनी किताब The Tribes and costes  of the central provinces of India  जो तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर आर व्ही रसल के साथ लिखी है, में सब कुछ सप्रमाण लिखा है। चार भागों में लिखी गई है कृति पढ़ने योग्य अवश्य है। इस विषय पर जानकारों से ही विमर्श करते रहने का सादर आह्वान है।  इस दिशा में और गहन अध्ययन करेंगे ऐसा मुझे विश्वास है।
गिरीश कुमार बिल्लोरे

1 मार्च 2021

ईमानदार वही जिसे मौका नहीं मिला..!

भारतीय शासकीय व्यवस्था में भ्रष्टाचार को समाज का आवश्यक अंग माना गया है। आप देखते भी होंगे कहा भी जाता है कि बिना पैसे लिए दिए कोई काम नहीं होता। और यह सच भी है अगर आप भ्रष्ट है तो बहुत सुखी हैं वरना किसी काम के नहीं है।
 यह सत्य है इसे आप नकार नहीं सकते और अगर आपने इस सत्य को सरेआम उजागर करने की कोशिश की तो आप ना तो चैन से नौकरी कर सकते हैं और ना ही आपको आपके अच्छे कामों का पुरस्कार मिलेगा बल्कि आपके खिलाफ षड्यंत्र रचने वाले सांडों की रैली की रैली आप इर्द-गिर्द ए देखेंगे। मैं एक विसिल ब्लोअर के रूप में व्यवस्था को सचेत करता हूं।
पहले तो समझ लीजिए कि ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार क्यों है नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार ना होकर ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार इसलिए है क्योंकि डिमांड ऊपर से आती है ना कि नीचे से . 
नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार ना होकर ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार इसलिए है क्योंकि डिमांड ऊपर से आती है ना कि नीचे से . 
   महंगे चुनाव चुनाव पर होने वाला खर्च भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा आधार है। और इस पर चर्चा कभी होती ही नहीं। लोकायुक्त द्वारा पटवारी राजस्व निरीक्षक से लेकर अधिकारी कर्मचारी बहुत छोटी मछलियां है केवल इन पर ही नजर होती है। वास्तव में इसकी तह में जाएं तो आप पाएंगे कि यह वह सारे लोग हैं जिन्हें कमा के ऊपर भेजना होता है। आपने कभी किसी अदालत के क्लर्क को चपरासी को या किसी भी स्तर के अधिकारी को भ्रष्ट आचरण में पकड़े जाने की कोई खबर सुनी है ? चाहे पेशी बढ़ाने का मामला हो या कागज निकालने फाइल जमा करने का मसला हो पैसे तो लगते हैं। परंतु इनके खिलाफ आज तक कोई मामला ना तो अखबार में छपा है और ना ही किसी ने इनकी शिकायत की।
महालेखाकार समय-समय पर सरकार द्वारा खर्च किए जाने वाले खर्चों पर अंकेक्षण दल क्षेत्रीय भ्रमण पर भेजा जाता है पूरे भारत में यही व्यवस्था लागू है अच्छी व्यवस्था है। मित्रों यह एक ऐसा विभाग है जो भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की ताकत संरक्षित करने के लिए बाकायदा शक्ति संपन्न है किंतु इनके मुलाजिम फील्ड में जाकर क्या करते हैं कम से कम शासकीय अमला तो बेहतर तरीके से जानता है। किसी भी प्रकार के ऑब्जेक्शन या असहमति को रेगुलराइज करने के लिए इसे जवाबों से ज्यादा पैसों की जरूरत होती है।
     यह सिलसिला ऑडिट ऑफीसर की आवासीय होटलों में शुरू होता है और वहीं खत्म जाता है ।
   मित्रों कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि... सिस्टम केवल छोटे-छोटे कार्य एवं कार्यक्रमों में पाए जाने भ्रष्ट-आचरण के ही नियंत्रण करने का प्रयास ज्यादा तेजी से करता है जबकि यह प्रयास ऊपर से नीचे तक होना चाहिए।
  ऊपर के स्तर पर होने वाला भ्रष्टाचार निर्णय एवं नीतियों में रद्दो बदल के साथ-साथ पक्षपात एवं भाई भतीजावाद यानी नेपोटिज्म के जरिए किया जाता है। जबकि मध्य एवं निचले स्तर पर भ्रष्टाचार क्षणिक या अल्पकालीन लाभ के लिए किया जा रहा है।
भारतीय समाज का अर्थ उपार्जन करनेब वाले हिस्से का 10 % हिस्सा ईमानदार है ... और वो लोग भी ईमानदार है जिनको अवसर नहीं मिलता .😢