30 मई 2008

ब्लॉग की बातें ..... आज तक पर

हिंद-युग्म वाह...!.....वाह...!!

नियंत्रक ने पहली कविता के प्रयास के ऑचित्य को बखूबी बयान किया कुछ यूँ :-तपन जी,पहली कविता तो कोई कभी भी लिख सकता है। उदाहरण के लिए हिन्द-युग्म के सम्मानित कवि उदय प्रकाश ने शायद अपनी पहली कविता आज से २० साल से भी अधिक समय पहले लिखी होगी। अमूमन कवि अपनी पहली कविता प्रकाशित नहीं करवाते या नहीं हो पाती, इसलिए हमने यह कदम उठाया है। आपने जब भी लिखी हो अपनी पहली कविता उसे आप भेज दीजिए।"
सच्चे मन से हुए प्रयास की सर्वत्र सराहना हो इसी कारण से मैं इस आलेख को मिसफिट Misfit से यहाँ भी ले आया हूँ माफ़ करिए पुनर्प्रकाशन के लिए ।
पहली कविता को छापने का जोखिम उठा कर काव्य-पल्लवन सामूहिक कविता-लेखन विषय-चयन किया है :-अवनीश गौतम जी ने । तारीफ देखे पहली कविता की प्रविष्ठियाँ चार भागों में छापनी पडी ...... वाह...!....वाह...!!
हिन्द-युग्म
जोखिम भरे काम करने वालों के लिए सराहना ज़रूरी है ......!!
प्रथम भाग में
ममता पंडित दिव्य प्रकाश दुबे सुमित भारद्वाज सीमा सचदेव अजीत पांडेय समीर गुप्ता प्रेमचंद सहजवाला पावस नीर रचना श्रीवास्तव लवली कुमारी हरिहर झा राहुल चौहान सतपाल ख्याल पीयूष तिवारी आलोक सिंह "साहिल" अर्चना शर्मा रंजना भाटिया सजीव सारथी विपुल कमलप्रीत सिंह
दूसरे भाग में
सविता दत्ता शोभा महेन्द्रू देवेन्द्र कुमार मिश्रा महक डॉ॰ शीला सिंह गोविंद शर्मा रश्मि सिंह अभिषेक पाटनी अवनीश तिवारी विजयशंकर चतुर्वेदी आदित्य प्रताप सिंह डा. आशुतोष शुक्ला अमित अरुण साहू रेनू जैन सुरिन्दर रत्ती मंजू भटनागर शिवानी सिंह श्रीकान्त मिश्र 'कान्त' अमिता 'नीर' कु० स्मिता पाण्डेय
तीसरे भाग में
देवेंद्र पांडेय डा. रमा द्विवेदी अशरफ अली "रिंद" ममता गुप्ता रजत बख्शी राजिंदर कुशवाहा गरिमा तिवारी विनय के जोशी डा0 अनिल चड्डा यश छाबड़ा कवि कुलवंत सिंह एस. कुमार शर्मा मीनाक्षी धनवंतरि शुभाशीष पाण्डेय शिफ़ाली पूजा अनिल अविनाश वाचस्‍पति निखिल सचन सोमेश्वर पांडेय सुनील कुमार सोनू
और ताज़ातरीन चौथे भाग में *** प्रतिभागी रहे
राकेश खंडेलवाल सीमा गुप्ता सतीश वाघमारे संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी ब्रह्मनाथ त्रिपाठी 'अंजान' मैत्रेयी बनर्जी सतीश सक्सेना विवेक रंजन श्रीवास्तव "विनम्र" आशा जोगळेकर राहुल गडेवाडिकर मधुरिमा कुसुम सिन्हा महेंद्र भटनागर शैलेश भारतवासी मनीष वंदेमातरम स्वाति पांडे तपन शर्मा गोविन्द शर्मा डॉ॰ एस के मित्तल राजीव तनेजा
यानी कुल अस्सी कवितायेँ जमा हुई किसी अखबार को भी इतनी रीडर शिप और पार्टिशिपेशन कविता के मामले में कम ही मिलता है। किसे नामज़द बधाई दूँ ........मेरी समझ में नहीं आ रहा है
केवल इतना कह पा रहा हूँ
बधाइयां
हिंद-युग्म

28 मई 2008

ब्लॉगर भदेश भाषा और कर्म से परहेज करें !!

मुझे किसी भी स्तर पर नारी के प्रति शोषक अभिव्यक्ति के लिए अनुराग नहीं रहा.पौरुष का प्रदर्शन बलात कोशिशों ( कदाचित सफल हो जाने) से नहीं होता. यदि यह सच है कि किसी ने जो कि कवि है,साहित्यकार है, और आज की स्थिति में ब्लाॅगर है और वो चाहे मैं ख़ुद ही क्यों न हूँ ऐसा करेगा अक्षम्य होगा.
नारी के लिए "सर्वदा-भोग्या"ज़ैसी हमारी जाहिल सोच कि गुरुदत्त के "वयम-रक्षाम:" उपन्यास के कथानक की पुनरावृत्ति का स्पष्ट संकेत है। वर्तमान भारत मॆ नारी कॆ प्रति सोच तॆजी बदली
(गिरी) बदलाव ने उसे ही (नारी को ही) नुकसान दिया अब तो नौकरी,सत्ता,पद,प्रतिष्ठा,के बूते हर-ओर यही सब.ग़लत देख सुन कर चुप रह जाना नारी का अपमान है।
आइये हम सब इस वृत्ति प्रवृत्ति पर शोक मनाएं । इतना रोएँ जितना की जैसे कि माँ से हम अमिय चाहतें हो तब हमको नारी का अर्थ समझ आएगा ।

साठा सो पाठा....

जबलपुर में 60 वर्ष की वय पूर्ण कर चुके साहित्यकार एकत्र हुए शहीद स्मारक प्रांगण में ,ये चित्र दुर्लभ है इसे सुलभ कराया भाई विजय तिवारी "किसलय"ने
सभी बुजुर्गवारों के शतायु होने
की
कामनाएं
॥ नर्मदे हर: हर:॥


27 मई 2008

ब्लागायण

सत्य कथा तुम सहज बखाना : ब्लागन को आयुध सम माना !
ब्लाग भडास बनेउ पर्याया : गठरी खुल दिखी मोहे काया !
जंह देखी तंह कैंकड़ बृत्ती : लिख-लिख दरसित होवे सकती.!
नारी नाम से ब्लॉग बनाया : नामी हुई अरु नाम कमाया !
हिन्दी ब्लागर युद्धरत, करें पोस्ट से वार , कछु के आयुध भोंथरे कछु की तीखी धार।
कछु ले लांछन पोटली बनते दरसन वीर, कछु तो छोढे जा रहे गहन तिमिर में तीर।।

ब्लागिंग की निति बने, बड़े सहज बिस्बास, हिन्दी का कीजै भला छोड़ के सब बकबास॥




,

23 मई 2008

"अच्छा वो गैलिस वाली पेंट वाले......प्रमोद जी ...?"


प्रमोद सराफ अनोखा फोटोग्राफ़र हैं जो जाने कब से शायद बचपने से गैलिस वाली पेंट पहनते हैं । गज़ब की सोच डूब फोटो ग्राफी करतें हैं। ए आई आर ने परसाई जी का साक्षात्कार लिया घर पर उन दिनों परसाई जी पूरी तरह बीमार थे । चेहरे के मूल भावों को बिना किसी हलचल के कैद करना था .दूर सामने से फोटो खींचने के लिए अनुमति थी ..... फ्लेश भी सीधे चेहरे पर न पड़े .... कोई डिस्टरबैन्स न हो !
प्रमोद भाई ने फ्लेश की चमक दीवार पे फैंकी और खींच ली तस्वीर ।
असल में मुझे इस तस्वीर से लगाव हैं सो मैंने कहा- भाई ,मुझे वैसी तस्वीर खिंचवानी हैं जैसी आपने परसाई जी की तस्वीर ली थी ।
प्रमोद जी बोले भाई आप को वो मूड लाना पडेगा । घंटे भर कोशिश के बाद फोटो लिया किंतु प्रमोद जी को मज़ा नहीं आया।

अब इसे ही ले लीजिए इसे गाँव से आया
इक मदारी अपने साथ लाया था...... इस
तस्वीर से झांकती
"पेट के लिए स्वामी एवं सेवक"
की साधना की सराहना करनी
ही होगी ....




girish billore mukul

20 मई 2008

टूटते दरकते संयुक्त परिवार

मित्रो ये एक सच घटना है। आज देर रात तो नहीं हुई थी , एक पैंतालीस वर्षीय बरस का व्यक्ति अपने सामूहिक परिवार में लौटा अपनी पत्नी के साथ लौटा तफरीह पर गए थे । दौनों बाज़ार में हल्का फुल्का चाट लेकर घर में आए बहन के बच्चों के लिए आइसक्रीम लेकर , घर के बच्चे भी अपने माँ-बाप की प्रतीक्षा में थे । घर पहुँचते ही बूड़े पिता की शह पर बडे भाई ने पत्नी के सामने उसे देर से का लाँछन लगाते हुए न केवल अपमानित किया बल्कि मारा भी। घर के मुखिया बूड़े व्यक्ति ने आग में घी डालने का काम किया । हिंसा होती रही । रिश्ते तार-तार होते रहे । जीत गया अंहकार,सत्ता , धन, का घमंड । हार गया अकिंचन स्नेह.....
संयुक्त परिवारों में होती इस प्रकार की हिंसाओं का अंत एकल परिवार की आधार शिला बनता है।इसी तरह टूटते हैं संयुक्त परिवार जो बचेखुचे हैं।
संयुक्त परिवारों की आधार शिला सम-भावों पे केन्द्रित है।
संयुक्त परिवार सिर्फ और सिर्फ इसी वजह से टूटतें हैं कि आर्थिक आधारों पर घर का बुजुर्ग बर्ताव करता है। समता के भावों का अंत होता है तो टूटन,दरकन स्वाभाविक है।
आप इस समस्या को सुलझाना चाहतें हैं अथवा संयुक्त परिवार के ढकोसलों से समाज को मुक्त कराना चाहेंगे . साथ ही मानवीय हिंसा पर आपकी क्या राय है......?

19 मई 2008

विजय तेंदुलकर Vijay Tendulakar


महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे विजय तेंडुलकर(6 जनवरी 1928 - 19 मई 2008) को विरासत में साहित्य का सौंधा अनुकूल वातावरण मिला। कब नन्हे हाथों ने कलम थाम ली, खुद उन्हें भी नहीं पता था। 'भारत छोड़ो आंदोलन' में भी उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई। संघर्ष के शुरुआती दिनों में वे 'मुंबइया चाल' में रहे। 'चाल' से बटोरे सृजनबीज बरसों मराठी नाटकों में अंकुरित होते दिखाई दिए। 1961 में उनका लिखा नाटक 'गिद्ध' खासा विवादास्पद रहा। 'ढाई पन्ने' 'शान्तता कोर्ट चालू आहे', 'घासीराम कोतवाल' ने मराठी थियेटर को नवीन ऊँचाइयाँ दीं। नए प्रयोग, नई चुनौतियों से वे कभी नहीं घबराए, बल्कि हर बार उनके लिखे नाटकों में मौलिकता का अनोखा पुट होता था। कल्पना से परे जाकर सोचना उनका विशिष्ट अंदाज था। भारतीय नाट्य जगत में उनकी विलक्षण रचनाएँ सम्मानजनक स्थान पर अंकित रहेंगी। अपने जीवनकाल में विजय तेंडुलकर ने पद्मभूषण (1984), महाराष्ट्र राज्य सरकार सम्मान (1956, 69, 72), संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड (1971), 'फिल्म फेयर अवॉर्ड (1980, 1999) एवं महाराष्ट्र गौरव (1999) जैसे सम्मानजनक पुरस्कार प्राप्त किए थे।
"http://hi.wikipedia.org से साभार , फोटो :-भास्कर से साभार लिन्क http://www.bhaskar.com/2008/05/19/0805190904_vijay_tendulkar.html

महाशोक




हम

sabhee

शोकाकुल हैं


18 मई 2008

गजेन्द्र सिंह का सफरनामा

गजेन्द्र सिंह






अन्तर जाल पर गजेन्द्र सिंह के बारे में
जो लिखा है उसे हू ब हू परोस रहा हूँ।
Gajendra moved out of his hometown Azamgarh, Uttar Pradesh, to Mumbai in 1984 to pursue his dream in tinsel town. Today, he is one of the best known producers of the Indian television industry, who changed the way Antakshari is played in the country, and who made reality shows for talent search, like, Sa Re Ga Ma Pa popular, even before the West came up with the American Idol concept of talent hunt.
Singh came to Mumbai in the hope of a career in films because of his uncle, Lal Singh who was the chief editor in Films Division. Gajendra was deeply inspired by him and he was his only link to the film industry. His father, Faujdar Singh, was the general manager of the Gandhi Ashram in Azamgarh.
After reaching Mumbai, Gajendra enrolled in a film-editing course. His uncle also managed to get him a job in the state broadcaster Doordarshan.
Two years into the job in 1988, Gajendra knew he was not meant to be an editor. He felt he had stopped growing creatively, and was stagnating and one fine day he left the job.
After resigning, his world was shaken. His uncle and friends felt it was a huge mistake to quit such a cushy job. His uncle even turned Gajendra out of his home. He had no place to stay and very little savings. Luckily, one of his editor friends, Mangesh Chavan, helped him out. He let him stay in his balcony. Chavan, interestingly, was the film editor of Mithun Chakravarty's Disco Dancer.
Next, began Gajendra's struggle, as he went from studio to studio to get a job. Gradually, he managed to bag serials like Aahwan and Bajirao Mastani on Doordarshan. Both of them did well, and he tasted success for the first time in his career.
Next, Gajendra launched what would be one of his most popular shows, Antakshari. But even as he was on the threshold of real success, his uncle died in 1992.
Zee's Antakshari brought with it its share of twists and turns. Gajendra wanted Anu Kapoor to host the show, while others preferred Sajid Khan. Eventually, Gajendra had to give in to the pressures of replacing Anu with Sajid, who was more popular in those days. Unfortunately, Gajendra could not get along with Sajid from Day 1 itself. Sajid wanted a trendy presentation of Antakshari, while Gajendra preferred a traditional form. Sajid walked out.
Gajendra finally managed to convince the Zee bosses to take and try Anu Kapoor. When the rehearsals began, everybody seemed convinced the serial would become a hit. Antakshari ran for 12 years, and was hosted by Anu Kapoor with many other female hosts over the years.
Gajendra went on to conceptualize and create another hit show, Sa Re Ga Ma Pa (or Sa Re Ga Ma as it was known then). Kunal Ganjawala, Sunidhi Chouhan, Shekar of Vishal-Shekar duo and Shreya Ghosal are one of the biggest singers of the industry and are products of Sa Re Ga Ma.
His latest creation is a revised version ; Colgate Maxfresh Antakshari - The Great Challenge (Telecast starting 9th Feb '07 from Friday-Sunday at 8pm, on Star One). The first episode is introduced by Shah Rukh Khan, and Anu Kapoor and Juhi Parmar will be the hosts for the show.
He isthe man behind popular Talent Hunt Shows like Amul Star Voice Of India, Amul Star Voice Of India Chhote Ustaad.
इसके अलावा गज्जी का सपना "
"The Sa Re Ga Ma Pa Dha Ni Sa Academy has always been my dream. I Wanted to build a platform for aspirants who have a great love for music and want to make a mark in the world of music". -- Gajendrra Singh
India is a country full of culture, traditions and heritage. Amongst the millions who thrive in this nation a platform for good talent remains hidden under the cover of indistinctness. Over a period of time the media has played a crucial role in the form of television, press, magazines, to showcase these talents to the entire world. Sa Re Ga Ma Pa Dha Ni Sa Academy will be an unique platform for talented and aspiring singers to become the singing sensations of tomorrow. Sa Re Ga Ma Pa Dha Ni Sa Academy team, is headed by Mr. Gajendrra Siingh. "
लिन्क - http://saregamapadhanisa.com/, पर देखा जा सकता है। जिसने कई सितारे दी है [http://saregamapadhanisa.com/ ]
मुझे याद है आभास को लेकर मेरे मन की बात कई बार मेरे दिमाग में आई उसे मैंने व्यक्त भी किया था कि आभास जबलपुर के लिए नहीं जन्मा है .....http://saibabatelefilms.com/, के सूत्रधार गज्जी ने आभास में जो देखा वो अद्भुत चित्र मैं बरसों पहले देख चुका था।
जबलपुर आभारी है गज्जी आपका

17 मई 2008

आभार प्रदर्शन

श्रीराम ठाकुर "दादा"की कृति मERI EK SOU IKKIS LAGHUKATHAYEN , में समाहित १०१ लघुकथा रोचक है। जो कथा या लघु कथा सच्ची मुच्ची की घटनाओं के आस-पास घूमती हैं प्रभाव शाली होतीं हैं । उनकी लघुकथाओं की बानगी देखिए
"इक विशाल हाल में कार्यक्रम संपन्न हो चुका था। आभार प्रदर्शन करते संस्था के अध्यक्ष बोले- अतिथियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ,जिन्होंने अपना अमूल्य समय दिया। सैकड़ों की तादात में आप सब लोग पधारे ,एतदर्थ हार्दिक धन्यवाद । अंत में मैं विद्युत मंडल का आभारी हूँ जिनकी कृपा से बिजली......
...............और बिजली चली गयी। हाल में अँधेरा छा गया।

श्री हेमराज जैन फोटो-पोस्ट

स्पर्श ही काफ़ी है इस बागवान का !
अपने अतीत को तलाशतीं आँखें !

नातिनों ने पूछा :"नानाजी......?"





उपरोक्त सारे फोटो के लिए भाई अरविंद यादव जी का ह्रदय से आभार !
फोटो ग्राफी के लिए समर्पित मशहूर गुजराती यादव परिवार के पूर्वज वैद्यराज पुरुषोत्तम जी यादव आज़ादी के पहले शहर जबलपुर आए थे। पुत्र शशिन जो जे जे स्कूल ऑफ़ आर्ट से शिक्षित थे ने फोटो ग्राफी को जीविका का साधन बनाया उनके पुत्र मेरे कला मित्र अरविंद यादव का सहयोग मुझे इस ब्लाग पर मिलेगा ही इन सब कामों के लिए

श्री राम ठाकुर "दादा"

चुटीले व्यंगकार श्री राम ठाकुर दादा की कृतियाँ अफSAR KO NAHIN DOSH GUSHAIN ,DAANT DIKHANE KE ,आईं लोकप्रिय रहीं और उनको राष्ट्रीय स्तर पे पहचान मिलने के बाद उनकी नवीनतम कृति
मERI EK SOU IKKIS LAGHUKATHAYEN ,अब उपलब्ध है।

16 मई 2008

भाई समीर लाल

टोरोंटो , ओंटारियो अराइव्ड फ्राम ब्लागवाणी .कॉम ऑन
FEEDJIT लाइव ट्रैफिक फीड,पर Toronto, Ontario arrived from blogvani.com on तो समझ लीजिए उडन तश्तरी ...., के हाथों आप पकड़ लिए गए , यानी भाई समीर लाल सबको बांचते हैं...?जी सही है वो सबको पढ़्तें हैं। जबलपुर : मध्य प्रदेश ऐसी जगह है जहाँ संस्कार उगतें हैं और छा जातें हैं विश्व पर ।भाई समीर जी आज मातृदिवस -पर सव्यसाची माँ प्रमिला देवी जो कहानी कहते-कहते सो गयी माँ .....?को याद ही कर पा रहा हूँ ....सभी औरतें जो माँ बनतीं हैं सच ईश्वर से कम होतीं भी नहीं हैं.....दुनिया रचने वाली माँ , तुमको शत शत नमन

14 मई 2008

जयपुर में मजाज़ मैं और धमाके

उस दिन शाम डालते हे मजाज़ ने मुझे बुलाया था . मुझे देखते ही कहने लगे
भाई, ''मस्जिदों में मौलवी खुतबे सुनाते ही रहे
मंदिरों में बिरहमन श्लोक गाते ही रहे
एक न एक दर पर ज़बाने शौक़ घिसती ही रही
आदमियत जुल्म की चक्की में पिसती ही रही
रहबरी जारी रही पैगंबरी जारी रही''
हाँ ज़नाब सही कह रहें है आप
-मेरा ज़बाब था.
टहल रहे थे हम जयपुर की सडकों पे.
गुलाबी शहर में एक ज़ोरदार फ़िर ज़ोरदार
धमाका, फ़िर धमाकों के सिलसिले.......
मजाज़ आप को मालूम था कि ...?
मजाज़ बोले :-"भाई,ये तो होना ही था जब सियासतें ,तिज़रतों के आँगन में रक्ख्स करेंगी यही सब कुछ होगा..!"
क्या कुछ देख रहे हो ...?
"मजाज़ साहेब,मैं सोच रहा हूँ:-तब जब मैं दफ्तर जाते हुए अखबार पडूंगा ,
तब जब मैं अपना कल गढूँगा....?
कल तब जब कि मैं
तुम हम सब इंसानियत की दुहाई देते
जयपुर पर वक्तव्य देंगे .......!
तब उगेगी दर्द की लकीरें सीने में
घाव बनातीं आंखों के आँसू सुखातीं
न कोई हिन्दू न मुसलमान
न क्रिस्टी न गुलफाम
कोई नहीं मरेगा
मरेगी तो केवल इंसानियत।
और चंद बयानों की रेज़गारी डाल दी जाएगी
बिलखती रोती माँ की गोद में.....!
मजाज़ बागी हो गए
लग भाग चीखते हुए बोले :-
बढ के इस इन्द्रसभा का साज़-ओ-सामां फूंक दूं
इस का गुलशन फूंक दूं उसका शबिस्तां फूंक दूं
तख्त-ए-सुल्तां क्या मैं सारा क़स्र ए सुल्तां फूंक दूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करू, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं

"

12 मई 2008

हेमराज जैन : स्पर्श से आंकलन


पूरा दिन घर के पीछे लगे छोटे से पेढ़ पोधों की सेवा में लगे रहने वाले हेमराज जी का जीवन दुनियाँ के लिए उपहार से कम कदापि नहीं....इसके कई प्रमाण हैं,किंतु इस बात को आगे बढाना चाहता हूँ ताकि पोस्ट के नायक के साथ कोई भेदभाव न हो सके :-
इस हीरे पर वैद्यनाथ की नज़र न पड़ी होती तो इंग्लिस्तान के काय-विज्ञानियों के लिए हेमराज जी ने जो मानव शरीर की अंत: आकृतियों की रचना की एनोटोमी के अध्ययन के लिए अद्भुत सृजन भी कतई न हो पाता।
केवल अध्ययन से शरीर की नसों-शिराओं का हू ब हू चित्रांकन , वह भी उस दौर में जब न तो एक्स-रे था,नाही सोनोग्राफी - किसी विशेष अंतर्ज्ञान के बगैर ऐसा कुछ भी सम्भव न होता। मुझे अच्छी तरह से याद है ४ वर्ष पूर्व जब जैन परिवार नया घर बनवा रहा था ..... भवन के आर्किट्रेक्चर को लेकर उनके सवालों से इंजिनियर भी निरुत्तर हो जाते थे। दीवार बीम कालम सभी की स्थिति हेमराज जी केवल छू कर ज्ञात कर लेते थे। जबकि उनकी आंखों ने देखना लग भग बंद ही कर दिया था।
पहली बार मुझे शब्द-भेदी-शर-साधकों के अस्तित्व पर यकीन हुआ
श्री हेमराज जैन के प्रति आदर के साथ आप सबका आभारी हूँ जिननें विस्तार से लेखन के लिए प्रेरित किया।



10 मई 2008

नाम हेमराज जैन



उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले का मुडावरा गाँव जो महरौनी तहसील में है, ७०-७१ बरस पहले वहाँ इक किशोर के जीवन का इक दृश्य
नाम :हेम राज जैन
उम्र :१०-११ वर्ष
काम: पढ़ना ,
शौक : पुराने कागजों पर पेन पेंसिल से चित्र बनाना
यही शौक उसे बनाएगा मशहूर चित्र कार इस बात का गुमान उस किशोर को न था । जीवन के लक्ष्य तय करने उन दिनों विकल्प और सुविधाएं भी कम ही हुआ करतीं थी। कम विकल्पों के साथ जीवन के अगले लक्ष्य नियत करना कितना कठिन रहा होगा "किशोर वय के हेमराज़ "के लिए।
हेमराज कौन है , कहाँ हैं , क्या खूबी थी उनमें इस बात का ज़वाब जानने आप यदि ४० बरस की उम्र के आस पास हो तो कृपया अपने घरों की दीवारों पे टंगे बिटको,अथवा अन्य कंपनियों के केलेंडर्स को याद कीजिए । उन्हीं केलेंडर्स पे सुंदर से अक्षरों में लिखा होता था ....."हेमराज"
यही वो किशोर था जो आगे चल के कैलेंडर बनाता था ।
भारत में पद्म,रत्न,भूषण,विभूषण,जाने कितने पुरूस्कार बंट्तें हैं । इस हीरे पर कम ही लोगों की नज़र पड़ी जिसने इंग्लिस्तान के काय-विज्ञानियों के लिए हेमराज जी ने जो मानव शरीर की अंत: आकृति को रचा एनोटोमी के लिए अद्भुत सृजन था ।
ए० एम० बी० एस० की डिग्री लेकर डाक्टर बने हेमराज जी जिला आयुर्वेद अधिकारी पद से रिटायर्ड हैं। आँखे ज्योति विहीन हैं । जैन धर्म के अनुयायी हेमराज जी आज लगभग ८० वर्ष के हैं । व्रती हैं , कोई भी संकल्प कभी भी नहीं त्यागते। जितेन्द्रिय है । जबलपुर में ही रह रहें है ।

* *हेमराज जी कैसे बने चित्रकार **
बुन्देल खंड आयुर्वेदिक कालेज,झांसी में ए० एम० बी० एस० के अन्तिम वर्ष में पढ़ रहे थे। उसी कालेज में कलकत्ता से वैद्यनाथ के मालिक आए एनाटामी पर छात्रों के काम देख प्रभावित हुए। सबसे ज़्यादा हेमराज जी के चित्र उनको भा गए। डिग्री ख़त्म होते ही कलकत्ता आने का निमंत्रण वो भी कम्पनी में प्रमुख कलाकार के बतौर । जहाँ से बचपन के सपनों को आकार मिला और रोज़गार एनाटॉमी के चित्र नाड़ियों के गुच्छों को बनाना सहज कहाँ बंद कमरे में एकाग्र हो चित्र बनाते हेमराज जी की आंखों की ज्योति कम होने लगी । संस्थान के डाक्टरों ने कहां डाक्टर साब आप तो अब चित्र कारी छोड़ दीजिए वर्ना आंखों से पूरी ज्योति चली जाएगी । लौट आए वापस

तब तक हेमराज जी सैकड़ों चित्र बना चुके थे- पाठ्यक्रमों के लिए ,और साथ ही साथ आम घरों में लगने वाले ईश्वररूपों की तस्वीरें भी।
मडावारा के जैन किराना व्यापारी दया चन्द्र जैन के दो पुत्रों में इनके बड़े भाई प्रताप चन्द्र जैन भी हेमराज जी के समकक्ष डिग्री धारी थे। दोनों ही म० प्र० सरकार के आयुर्वेदिक विभाग के चिकित्सक के रूप में चुने गए ।
मध्यप्रदेश का राजगढ़ जिला इनका कार्य क्षेत्र रहा। सेवानिवृति के समय सागर जिला" सागर जिला हेमराज जी का कार्य स्थल रहा है।
इनके बड़े भाई श्री प्रताप चन्द्र जैन भी रिटायर्ड होकर भोपाल भोपाल में बस गए।
*क्या करते हैं हेमराज़ जी अब ये सवाल आपको परेशान तो कर ही रहे होंगे सो जानिए
"मेरे मित्र धर्मेन्द्र जैन के ससुर हैं श्री हेम राज जी इन पर कई दिनों से फीचर लिखना चाहता था नौकरी की व्यस्तता की चलते देर हुई किंतु पहले लिख भी देता तो अखबारों की कृपा से ही कहीं छप पाता फीचर ब्लॉग से देर तक दुनिया की साथ रहेगा "
हाँ तो हेमराज जी की ज़िंदगी व्यक्तिगत तौर पर संघर्ष का दस्तावेज़ है। शादी के कुछ साल बाद पत्नी की देहावसान की बाद २ बरस की बिटिया अंजना की परवरिश माँ बन के इन्हीं ने की। ब्रह्मचर्य-व्रती श्री जैन अपने बेटे दामाद के परिवार के साथ रहतें हैं ।
उनके साथी हैं धर्मेन्द्र के पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री के० सी० जैन,
"जैन धर्म के मूल सिद्धांतों के मीमांसक हेमराज जी नरसिंहगड़ में जीव दया संस्थान से जुड़े थे . पर पीडा न देखने वाले युग में जब हम कुत्ते बिल्लियाँ ऊँची नस्ल के पशु केवल अपने स्टेटस को साबित कराने के लिए पालतें हैं तब हेमराज जी मूक पशुओं की सेवा को अपना व्रत मानतें हैं. नरसिंहगढ़ से लाए थे वे छोटी को कुत्ते के यह पिल्ली उनको नाली में घायल अवस्था में दिखाई दी, पिछले पैर घायल.थे छोटी के तब ! चिकित्सा और सेवा से इस निरीह पशु को जीवन मिला . अभी भी है उनके साथ . दामाद धर्मेन्द्र बतातें हैं: उनका संकल्प निरीह जीवनों की रक्षा करने का है. गली कूचों में तड़पते किसी भी पशु की रक्षा के लिए उनकी आत्मा द्रवित हो जाती है।

सच भी है मैंने कई पशुओं की सेवा करते उनको देखा है।
  • "इक बार भोजन दो बार पानी "

वर्ष भर के ३६५ दिनों में केवल हेमराज जी ने ७३० बार पानी पीया तथा ३६५ बार सादा भोजन

आप हम ये सब कुछ कर सकतें हैं....!

ज़बाव होगा नहीं

पूरा दिन घर के पीछे लगे छोटे से पेढ़ पोधों की सेवा में लगे रहने वाले


6 मई 2008

आनंद कृष्ण

हिन्दी निकष

साहित्य-समीक्षा ब्लाग'स का मालिकाना हक़ इन श्रीमान जी के पास है.... जबलपुरिया हैं , मजेदार गोलमटोल से आदमीं हैं ये भाई साहब । विनोद प्रिय इतने कि सदैव मुदिता का माहौल बना लेतें हैं अपने आस पास ।
टेलीफून विभाग में अधिकारी हैं , गीत कविता से गहरा नाता रखने वाले आनंद कृष्ण "सांड नरसिंहपुरी " के शहर नरसिंहपुर के मूल निवासी हैं आम लगे हैं इनके नरसिंहपुर में।
आप सोच रहें होंगे कि मैं एग्रीगेटर का काम क्यों करने लगा .....!
सो:-" हे ...! समीरादी [उडन तश्तरी ...., ]गुनी ब्लागरो मुझे सभी जबलपुर : मध्य प्रदेश में है जहाँ : भारत के सर्वाधिक ब्लॉगर नामक जीव पाए जाएंगे ,अगले १० बरस में हर दूसरा व्यक्ति जो अन्तर जाल से जुड़ा होगा ब्लॉगर होगा। इक माह में ४-४ नए ब्लाॅगर Bavaal Much Rahaa Hai भी है
है न कमाल.....

मानस भारद्वाज

MANAS BHARADWAJ --THE LAST POEM IS THE LAST DESIRE ब्लाग http://www.manasbharadwaj.blogspot.com/ पर है । अच्छा लिखतें हैं भावों में the last poem: यानी आरकुट वाला नाम झलकता है, कम उम्र में विचार और लय में ताल मेल भी कम रहता है कभी भावातिरेक के कारण क्रुद्ध सा दीखता है नया कवि
बधाई आज फिर वो पन्ना निकल आया था
आज फिर वह पन्ना निकल आया था
जिसमे पीले गुलाब की वो कली रखी थी
जो किसी ने मांगी थी मैं नही दे पाया था
उस तोहफे को मैं तोड़ लाया था
इसी किताब के उस पन्ने मे मैंने चोरी चोरी छुपाया था

आज उस पन्ने को देखकर आंख भींग जाती है
पर पीले गुलाब की वो कली देखकर
मीठी मीठी याद आती हैं
मैं तो बार बार मर रहा था
इसी पन्ने ने मुझे जीना सिखाया था
इसी कली की तो लेकर प्रेरणा
मैंने जीवन को अपनाया था

आज फिर वो पन्ना निकल आया था
मानस के ब्लाग से साभार ,
मानस को सभी ब्लागर्स के स्नेह की ज़रूरत है

5 मई 2008

रवि पाटिल जी का मेल टिनी तारे मुझे भेजा

If you ever get lost in India and want to find out where you are, thisis the best way of doing just that.

scenario 1two guys are fighting and a third guy comes along,then a fourth andthey start arguing about who s right - you are in Kolkata .

scenario 2two guys are fighting and a third guy comes along,sees them and walks on – that ' s Mumbai.

scenario 3two guys are fighting and a third guy comes along &tries to makepeace. the first two get together & beat him up - that's Delhi . scenario 4two guys are fighting. a crowd gathers to watch. a guycomes along andquietly opens a chai stall - that s Ahmadabad .

scenario 5two guys are fighting and a third guy comes. he writes a software program to solve the issue but the fight does not stopbecause of a bug in the program. that s Bangalore .

scenario 6two guys are fighting. a crowd gathers to watch. a guycomes along and quietly says "anna, dont fight for all this nonsense". peace comes in - thats Chennai.

scenario 7two guys are fighting. both of them take time out andcall their friends on mobile. now 50 guys are fighting. you are in Hyderabad

scenario 8two guys are fighting.,third guys comes try to stop them and get involved and call others too to stop, finally stop them,you r in Rajasthan

scenario 9two guys are fighting. a crowd gathers to watch. someone calls police.the police come and lathi charge all the people crowded there. someonethrows stones at the police. the police throw stones back at thecrowd. some people are arrested. damages to the shops nearby. next day, harthal and holiday declared by government ..You are very much in thiruvananthapuram , the city of Kerala ...

4 मई 2008

छुट्टी के लिए आवेदन

मेरी मित्र टिनी तारे ने कुछ आवेदनों के नमूने भेजे हैं......

· Infosys, Bangalore: An employee applied for leave as follows: "Since I have to go to my village to sell my land along with my wife, please sanction me one-week leave." · This is from Oracle Bangalore: >From an employee who was performing the "mundan" ceremony of his 10 year old son: "as I want to shave my son's head, please leave me for two days.." · Another gem from CDAC. Leave-letter from an employee who was performing his daughter's wedding: "as I am marrying my daughter, please grant a week's leave.." · From H.A.L. Administration Dept: "As my mother-in-law has expired and I am only one responsible for it, please grant me 10 days leave." · Another employee applied for half day leave as follows: "Since I've to go to the cremation ground at 10 o-clock and I may not return, please grant me half day casual leave" · An incident of a leave letter: "I am suffering from fever, please declare one-day holiday." · A leave letter to the headmaster: "As I am studying in this school I am suffering from headache. I request you to leave me today" · Another leave letter written to the headmaster: "As my headache is paining, please grant me leave for the day." · Covering note: "I am enclosed herewith..." · Another one: "Dear Sir: with reference to the above, please refer to my below..." · Actual letter written for application of leave: "My wife is suffering from sickness and as I am her only husband at home I may be granted leave". · Letter writing:- "I am well here and hope you are also in the same well." · A candidate's job application: "This has reference to your advertisement calling for a ' Typist and an Accountant - Male or Female'... As I am both(!! )for the past several years and I can handle both with good experience, I am applying for the post.